बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

आज के परिवेश में ज्यादातर लोग मन एवं आत्मा के विरुद्ध कार्य करते रहने के कारण ही रोगी बनते जा रहे हैं.

आज के परिवेश में ज्यादातर लोग मन एवं आत्मा के विरुद्ध कार्य करते रहने के कारण ही रोगी बनते जा रहे हैं. 
उदाहरण के लिए आइए समझते हैं कि लोग रोगी कैसे बनते जा रहे हैं…
  • क्रोध, शोक, मानसिक उत्तेजना या अप्रसन्नता के कारण लिवर का रोग.
  • सत्य को झूठ प्रमाणित करने वाले वकील एवं कोर्ट में झूठी गवाही देनेवाले गोलू-गवाहों को आंख का रोग.
  • घोटालेबाज अधिकारी, मंत्री से लेकर संतरी तक एवं गलत जजमेंट लिखने वाले जजों को हाथ-पैर कापते रहने वाला रोग (पार्किंसन).
  • अहंकारी, घमंडी व्यक्ति जो गरीब एवं कमजोर व्यक्तियों पर तानाशाही रवैया अपनाते हैं, उन्हें गठिया या वात रोग.
  • पड़ोसी की तरक्की पर मन ही मन चिढ़ने रहने वाले को दाद-खाज-खुलजी, दिनाय, अपरस का रोग.
  • मिलावटी सामान के बिक्रेता एवं रोगी को बार-बार अल्ट्रासाउंड का राउंड लगवाने वाले, केवल दवा से ठीक होने वाले रोगियों का आपरेशन करने वाले डॉक्टरों को दिल का रोग.

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