मंगलवार, 3 जुलाई 2018

बाल को काला करने और उन्हें बढ़ाने की औषधि के रूप में भृगराज आयुर्वेद जगत की एक प्रसिद्ध वनस्पति है

बाल को काला करने और उन्हें बढ़ाने की औषधि के रूप में भृगराज आयुर्वेद जगत की एक प्रसिद्ध वनस्पति है। इसके पौधे सारे भारत में जलाशयों के निकट की नम भूमि में अकसर पाए जाते हैं। इसके छोटे-छोटे पौधे झाड़ी की तरह जमीन पर फैलकर या थोड़ा उठकर 6 से 8 इंच ऊंचाई के होते हैं। शाखाएं कालापन लिए रोमयुक्त, ग्रंथियों से जड़युक्त होती हैं। पत्तियां आयताकार, भालाकार, 1 से 4 इंच लंबी और आधा से एक इंच चौड़ी, बहुत दन्तुर होती हैं,
जिनको मसलने से हरा कालापन लिए हलका सुगंध युक्त रस निकलता है, जो स्वाद में कडुवा, चरपरा लगता है। पुष्प सफेद, पीले और नीले रंगों में लगते हैं। औषधि प्रयोग के लिए सफेद और पीले फूलों वाले पौधों का उपयोग किया जाता है।
घड़ी के आकार के गोल व सफेद पुष्प छोटे-छोटे पुष्प दंड पर लगते हैं। फल एक इंच लंबे तथा अग्र भाग पर रोम युक्त होते हैं, जिसमें छोटे, लंबे, काले जीरे के समान अनेक बीज निकलते हैं। शरद् ऋतु में पुष्प और फलों की बहार आती है। रंग भेद के अनुसार कुछ जातियों में कृपया शेयर करें व पुण्य कमाएँ डॉ जितेंद्र गिल सदस्य भारतीय चिकित्सा परिषद् के पद चिन्ह पर
भृंगराज के विभिन्न भाषाओं में नाम – Bhringraj Ke Name
संस्कृत (Bhringraj In Sanskrit) – भृगराज।
हिंदी (Bhringraj In Hindi) – भांगरा।
मराठी, गुजराती (Bhringraj In Marathi & Gujarati) – भागरो।
बंगाली (Bhringraj In Bangali) – केसुरिया।
अंग्रेजी (Bhringraj In English) – ट्रेलिंग इकिलप्टा (Tralling Eclipta)
लैटिन (Bhringraj In Latin) – इकिलप्टा (Eclipta alba)
आयुर्वेदिक मतानुसार भृंगराज रस में कटु, तिक्त, गुण में हलका, तीक्ष्ण, प्रकृति में गर्म, वात-कफ नाशक, दीपन, पाचक, यकृत को उत्तेजित करने वाला, वेदना नाशक, नेत्रों और त्वचा के लिए हितकर, केशों को काला करने और बढ़ाने वाला, व्रण शोधक, बलवर्धक, रक्तशोधक, बाजीकारक, रसायन, मूत्रल होता है। यह रक्त विकारों, सिर दर्द, पाण्डु, कामला, सूजन, आंव, दंत रोग, उच्च रक्तचाप, उदर विकार, खांसी, श्वास रोग में गुणकारी है।
वैज्ञानिक मतानुसार भृंगराज की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें प्रचुर मात्रा में एक्लिप्टिन नामक एल्केलाइड और राल के अलावा वेडेलोलेक्टोन अल्प मात्रा में पाया जाता है।
बीजों में विशेष रूप से मूत्रल गुण पाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसकी पत्तियों में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, अतः कुछ लोग इसकी सब्जी बनाकर भी सेवन करते हैं। औषधि प्रयोग के लिए इसके पंचांग का प्रयोग अधिक लाभकारी पाया गया है।
सावधानी : भृंगराज के रस को गर्म करने और उबालने से इसके गुण नष्ट हो जाते हैं।
उपलब्ध आयुर्वेदिक योग
भृगराज घृत, भृगराज तेल, षड्रबिंदु तेल, भृगराजादि चूर्ण आदि।
1. फोड़े-फुसी खत्म करे भृंगराज :-
भृगराज की पत्तियों को पीसकर फोड़े-फुसी पर दिन में 2-3 बार लगाते रहने से कुछ ही दिन में ठीक हो जाएंगी।
2. नए बाल उगाने के लिए भृंगराज :-
उस्तरे से सिर मुड़वा लेने के बाद उस पर भृगराज के पतों का रस दिन में 2-3 बार मलते रहने से कुछ हफ्तों में नए बाल घने निकलेंगे।
3. बाल कालेघने, लंबे बनाने के लिए भृंगराज :-
भृंगराज के पंचांग का चूर्ण और खाने वाले काले तिल सम मात्रा में मिलाकर सुबह खाली पेट 2 चम्मच की मात्रा में खूब चबा-चबाकर रोजाना खाते रहने से 4-6 महीनों में बालों का गिरना रुक कर वे स्वस्थ बन जाते हैं।
4. अनिद्रा को दूर करे भृंगराज :-
सोने से पूर्व भृगराज के तेल की सिर में मालिश करने से अच्छी नींद आ जाएगी।
5. बिच्छू दंश पीड़ा के लिए भृंगराज :-
मूंगराज के पत्तों को पीसकर दंश पर लगाने से आराम मिलेगा।
6. यकृत पीड़ा में इस्तेमाल करे भृंगराज
पत्तों के एक चम्मच रस में आधा चम्मच अजवायन चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से यकृत पीड़ा में लाभ मिलेगा।
7. जीर्ण उदरशूल होने पर भृंगराज :-
2 चम्मच पत्तों के चूर्ण में आधा चम्मच काला नमक मिलाकर जल के साथ सेवन करने से आराम मिलेगा।
8. शक्ति वर्द्धक भृंगराज :-
भृगराज के पत्तों का 100 ग्राम चूर्ण और 50-50 ग्राम खाने वाले काले तिल व आंवला चूर्ण मिलाकर 200 ग्राम मिस्री के साथ पीस लें। एक कप दूध के साथ सुबह-शाम 2 चम्मच की मात्रा में रोजाना सेवन करने से शरीर में शक्ति बढ़ती है और वीर्य में पुष्टता आती है।
9. आग से जलने पर भृंगराज का इस्तेमाल :-
भृगराज और तुलसी के पत्ते बराबर की मात्रा में मिलाकर पीस लें और तैयार लेप को आग के जले स्थान पर लगाएं, तुरंत आराम मिलेगा।
10. भृंगराज उच्च रक्तचाप में :-
भृगराज के पतों का रस 2-2 चम्मच की मात्रा में एक चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार नियमित सेवन करने से हाई ब्लडप्रेशर में कुछ ही दिनों में आराम मिलता है। एक बार बी.पी. नार्मल हो जाए, तो कब्ज़ियत की शिकायत पैदा न होने देंगे, तो वह सामान्य बना रह सकता है।
11. सिर दर्द में लाभकारी भृंगराज :-
सिर में भृगराज के पत्तों का रस लगाकर मालिश करने से सिर दर्द में राहत मिलेगी।माइग्रेन (अधकपाटी) का उपचार करने के लिए इसे नाक आसवन (नस्य) के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इस प्रयोजन के लिए, भृंगराज रस को समान मात्रा में बकरी के दूध में मिलाकर, उसकी 2 से 3 बूंदों को सूर्योदय से पहले दोनों नथुनों में डाला जाता है।

सोमवार, 2 जुलाई 2018

अश्वगंधा आयुर्वेद में उपयोग की जाने वाली एक अदभुत ओषधि है

अश्वगंधा आयुर्वेद में उपयोग की जाने वाली एक अदभुत ओषधि है | कृपया इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें व पुण्य कमाएँ 
इसीलिए अश्वगंधा को प्रयोग करके वीर्य की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है | साथ ही premature ejaculation और दूसरी कामक्रिया सम्बन्धी 
अश्वगंधा रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है जिससे आप बहुत सी बिमारियों से बच सकते हैं | छोटी मोटी समस्याएँ तो अश्वगंधा के प्रयोग से आपको छु भी नहीं पाएंगी
इसमें एंटी ऑक्सीडेंट की मात्रा बहुत अधिक होती है जिससे ये इम्युनिटी को बढाता है
यह हमारे दिल के मसल्स को मजबूत बनाता है | यह cholesterol और triglyceride के levels को कम करता है जो की एक रिसर्च में प्रमाणित हो चूका है
इस तरह यह रक्त में कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम कर आपको हार्ट अटैक जैसी गम्भीर समस्या से बचाता है

अश्वगंधा वेट गेन के साथ height gain करने में भी आपकी मदद कर सकता है | अगर आप सच में हाइट बढ़ाना चाहते है तो आप इसे प्रयोग कर सकते हैं और इसके पत्तों का सेवन करने से वेट कम होता है.
इसके सेवन से ग्रोथ होर्मोनेस ट्रिगर होते हैं जिससे आपकी हाइट बढ़ सकती है | यह bone skeleton को चौड़ा और बड़ा करता है | जिससे हाइट बढ़ाने में मदद मिलती है, इसके साथ आपको कुछ हाइट बढ़ाने वाली एक्सरसाइजेज भी करनी चाहिए

यह थाइरोइड से पीड़ित लोगों की मदद कर सकता है | यह थाइरोइड ग्रंथि की सही कार्य प्रणाली में मदद करता है |

यह शरीर में स्फूर्ति व नयी उर्जा का संचार करता है | थाइरोइड की समस्या की वजह से आई शारीरिक कमजोरी को भी दूर करता है अगर ashwagandha roots (जड़) का प्रयोग लगातार किया जाए तो इससे thyroid hormones के स्त्राव में वृद्धि होती है |
अश्वगंधा में कैंसर से लड़ने के गुण पाए जाते हैं | बहुत सी रिसर्च में ये बात सामने आई है कि अश्वगंधा कैंसर सेल्स को बनने और बढ़ने से रोकता है |
यह शरीर में रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज (ROS) का निर्माण करता है जो कैंसर सेल्स को ख़तम करती हैं |

इसका प्रयोग कैंसर के इलाज के साथ भी किया जा सकता है | यह कीमोथेरपी को प्रभावित किए बिना कीमोथेरपी से होने वाले साइड इफेक्ट्स को भी कम करता है |
इसके प्रयोग से कीमोथेरपी की वजह से शरीर के दुसरे सेल्स को होने वाले नुक्सान से भी बचा जा सकता है | यह कीमोथेरपी व रेडिएशन जैसी प्रक्रियाओं के प्रभाव को भी बढ़ा देता है
अश्वगंधा में मौजूद alkaloids, saponins और steroidal lactones के कारण ये एक एंटी इन्फ्लाम्मेट्री की तरह से काम करता है और सूजन को कम करता है
अपने anti-inflammatory गुणों की वजह से इसे आर्थराइटिस और ओस्टो आर्थराइटिस के इलाज में प्रयोग किया जाता है
यह जोड़ों की सूजन को कम करता है और जोड़ों में होने वाले दर्द से भी राहत दिलाता है | इसके प्रयोग से जोड़ों व शरीर में शक्ति का संचार होता है | जिससे पीड़ित मरीज सामान्य जीवन जी सकता है
अश्वगंधा में एंटी बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं |
यह सामान्य सर्दी जुकाम से लेकर दुसरे बड़े इन्फेक्शन में भी शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है
यह urinogenital, gastrointestinal और respiratory tract infections को दूर करने में गुणकारी तरीके से काम करती है
अश्वगंधा दिमाग को तेज करने की कारगर आयुर्वेदिक ओषधि है | इसे लेने से neural signals को ट्रांसमिट करने वाले acetylcholine की प्रोडक्शन में इजाफा होता है
Alzheimer’s disease से लड़ने में यह एक रिसर्च के अनुसार कारगर साबित हुआ है
अश्वगंधा के इस्तेमाल से सोचने समझने की शक्ति, यादाश्त और कंसंट्रेशन में भी इजाफा होता है | बुढ़ापे में भूलने और दूसरी दिमाग से जुडी समस्याओं में भी अश्वगंधा का प्रयोग फायदेमंद होता है
रात को सोने से पहले गर्म दूध के साथ अश्वगंधा पाउडर का सेवन लाभकारी माना जाता है | इससे नींद भी अच्छी आती है

आप अश्वगंधा चूर्ण को पानी में कुछ देर उबाल कर इसे काढ़ा या चाय के रूप में भी प्रयोग में ला सकते हैं |
किसी भी पदार्थ को अधिक मात्रा में लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही होता है | अगर अश्वगंधा को भी अधिक मात्रा में लिया जाए तो पेट में दर्द, डायरिया और जी घबराने जैसी परेशानी हो सकती है |

रविवार, 1 जुलाई 2018

बच्चो के ह्रदय सम्बन्धी हर तरह की बिमारी के लिए श्री सत्य साईं बाबा की तरफ से देश में कई सुपर स्पेस्लिस्ट अस्पताल बनाए गए है जहां ह्रदय सम्बन्धी सभी बीमारियों का मुफ्त में इलाज एवं आपरेशन किया जाता

बच्चो के ह्रदय सम्बन्धी हर तरह की बिमारी के लिए श्री सत्य साईं बाबा की तरफ से देश में कई सुपर स्पेस्लिस्ट अस्पताल बनाए गए है जहां ह्रदय सम्बन्धी सभी बीमारियों का मुफ्त में इलाज एवं आपरेशन किया जाता , इतना है नहीं मरीज के साथ एक तीमारदार के लिए भी रहने और खाने की मुफ्त व्यवस्था है
Sri Sathya Sai Sanjeevani International
Centre for Child Heart Care & Research
Baghola, NH-2, Delhi-Mathura Road,
Palwal (District), Haryana – 121102
CONTACT
+91 1275 298140
info.palwal@srisathyasaisanjeevani.com

शनिवार, 23 जून 2018

किसी भी तरह केदस्त की शिकायत होने पर सप्तपर्णी की छाल का काढा रोगी को पिलाया जाए, दस्त तुरंत रुक जाते हैं।

अक्सर उद्यानों, सड़कों और घरों के आसपास सुंदर सफेद फूलों वाले मध्यम आकार के सप्तपर्णी के पेड़ देखे जा सकते हैं। यह एक ऐसा पेड़ है जिसकी पत्तियाँ चक्राकार समूह में सात – सात के क्रम में लगी होती है और इसी कारण इसे सप्तपर्णी कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम एल्सटोनिया स्कोलारिस है। सुंदर फ़ूलों और उनकी मादक गंध की वजह से इसे उद्यानों में भी लगाया जाता है और फूलों को अक्सर मंदिरों और पूजा घरों में भगवान को अर्पित भी किया जाता है। आदिवासियों के बीच इस पेड़ की छाल, पत्तियों आदि को अनेक हर्बल नुस्खों के तौर पर अपनाया जाता है। चलिए आज जानते हैं सप्तपर्णी के औषधीय महत्व के बारे में।
आधुनिक विज्ञान इसकी छाल से प्राप्त डीटेइन और डीटेमिन जैसे रसायनों को क्विनाईन से बेहतर मानता है। आदिवासियों के अनुसार इस पेड़ की छाल को सुखाकर चूर्ण बनाया जाए और 2-6 ग्राम मात्रा का सेवन किया जाए, इसका असर मलेरिया के बुखार में तेजी से करता है। मजे की बात है इसका असर कुछ इस तरह होता है कि शरीर से पसीना नहीं आता जबकि क्विनाईन के उपयोग के बाद काफी पसीना आता है।
पेड़ से प्राप्त दूधनुमा द्रव को तेल के साथ मिलाकर कान में ड़ालने से कान दर्द में आराम मिल जाता है। डाँगी आदिवासियों की मानी जाए तो रात सोने से पहले २ बूंद द्रव की कान में ड़ाल दी जाए तो कान दर्द में राहत मिलती है।
पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि प्रसव के बाद माता को यदि छाल का रस पिलाया जाता है तो माता के स्तनों से दुध स्त्रावण की मात्रा बढ जाती है।
जुकाम और बुखार होने पर सप्तपर्णी की छाल, गिलोय का तना और नीम की आंतरिक छाल की समान मात्रा को कुचलकर काढा बनाया जाए और रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है।
दाद, खाज और खुजली में भी आराम देने के लिए सप्तपर्णी की छाल के रस का उपयोग किया जाता है। छाल के रस के अलावा इसकी पत्तियों का रस भी खुजली, दाद, खाज आदि मिटाने के लिए काफी कारगर होता है। आधुनिक विज्ञान भी इन दावों से काफी सहमत है।
पेड़ से प्राप्त होने वाले दूधनुमा द्रव को घावों, अल्सर आदि पर लगाने से आराम मिल जाता है। दूधनुमा द्रव को घावों पर उंगली से लगाया जाए तो जल्दी घाव सूखने लगते हैं। घावों पर द्रव को प्रतिदिन रात सोने से पहले लगाना चाहिए।
डाँग-गुजरात के आदिवासियों के अनुसार किसी भी तरह केदस्त की शिकायत होने पर सप्तपर्णी की छाल का काढा रोगी को पिलाया जाए, दस्त तुरंत रुक जाते हैं। काढे की मात्रा ३ से ६ मिली तक होनी चाहिए तथा इसे कम से कम तीन बार प्रत्येक चार घंटे के अंतराल से दिया जाना चाहिए।
सप्तपर्णी की छाल का काढा पिलाने से बदन दर्द और बुखार में आराम मिलता है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार इसकी छाल को सुखा लिया जाए और चूर्ण तैयार किया जाए। चूर्ण को पानी के साथ उबालकर काढा तैयार किया जाता है और रोगी को दिया जाता है।कृपया इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें व पुण्य कमाएँ आपका अपना डॉ जितेंद्र गिल सदस्य भारतीय चिकित्सा परिषद् हरियाणा!

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

गांवों में इंटरनेट पहुंचा रहे हैं वीएलई

गांवों में इंटरनेट पहुंचा रहे हैं वीएलई
टेलिकॉम मिनिस्ट्री की एक रिसर्च के मुताबिक, अब सीएससी के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की पहुंच हो रही है। इंटरनेट से जुड़ी सर्विस गांवों में भी पहुंच रही हैं। इन सेंटर्स में आईडी कार्ड एवं वेडिंग कार्ड की प्रिंटिंग, लेमिनेशन, डिजाइनिंग, डॉक्‍युमेंट की स्‍कैनिंग व प्रिंटिंग होती है। स्‍टूडेंट्स को कम्प्‍यूटर सिखाया जाता है और वह आसपास के गांवों के युवाओं को जॉब फॉर्म भी देते हैं, जिन्‍हें अलग-अलग वेबसाइट से डाउनलोड किया जाता है।
कितनी हो रही है कमाई
सरकार द्वारा कराए गए अलग अलग सर्वे के मुताबिक, विलेज लेवल एंटरप्रेन्‍योर की कमाई अलग अलग है। कहीं-कहीं ये वीएलई 25 हजार रुपए महीना तक कमा रहे हैं। सरकार का दावा है कि साल 2016-17 में सरकार ने इन वीएलई को कुल 112 करोड़ रुपए कमीशन दी, जो सर्विसेज बढ़ने के साथ और बढ़ रही है। वीएलई प्राइवेट प्रोडक्‍ट्स बढ़ा कर भी अपनी कमाई बढ़ा रहे हैं।
ऐसे कर सकते हैं कमाई
सीएससी में पैन कार्ड, आधार कार्ड, इलेक्‍शन कार्ड, मतदाता सूची में नाम जुड़वाना, पहचान पत्र, पासपोर्ट बनाने की सुविधा दी जा सकती है। इसके अलावा आप मोबाइल रिचार्ज, मोबाइल बिल पेमेंट, डीटीएच रिचार्ज, इंस्टैंट मनी ट्रांसफर, डाटा कार्ड रिचार्ज, एलआईसी प्रीमियम, रेड बस, एसबीआई लाइफ, बिल क्‍लाउड जैसी निजी सेवाएं भी उपलब्ध करा सकते हैं।
यहां बैंकिंग, इन्श्‍योरेंस और पेंशन सर्विस भी दी जा सकती है। सीएससी में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम, डिजिटल लिटरेसी प्रोग्राम, वोकेशनल व स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग दी जा सकती है। किसानों को सीएससी के माध्‍यम से मौसम की जानकारी व मिट्टी की जांच जैसी सर्विस भी दी जाएगी। इतना ही नहीं टेलीमेडिसन सर्विस भी लोगों को उपलब्ध कराई जा सकती है।
कितना करना होगा इन्‍वेस्‍टमेंट
यदि आप सीएससी खोलना चाहते हैं तो आपके पास कम से 100 से 150 वर्ग फुट स्‍पेस होना चाहिए। इसके अलावा कम से एक कम्प्‍यूटर (यूपीएस के साथ), एक प्रिंटर, डिजिटल/वेब कैमरा, जेनसेट या इन्वर्टर या सोलर पैनल, ऑपरेटिंग सिस्‍टम और एप्‍लिकेशन सॉफ्टवेयर, ब्रॉडबैंड कनेक्‍शन होना चाहिए। इन सब पर आपको 2 से 2.5 लाख रुपए का इन्वेस्‍टमेंट करना पड़ सकता है।
वीएलई बनने के लिए क्‍या करना होगा
वीएलई बनने के लिए आपके पास आधार नंबर होना जरूरी है। इसके जरिए आप https://csc.gov.in वेबसाइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं। उसके आधार पर आपको ओटीपी नंबर मिलेगा। इसके जरिए आप सीएससी के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
यदि आप ऑफलाइन आवेदन करना चाहते हैं तो ग्राम पंचायत या नगर पंचायत स्‍तर पर एक कमेटी का गठन किया जा रहा है। आपको इस कमेटी के पास आवेदन करना होगा, जो आपके प्रपोजल की स्‍टडी करने के बाद आपको सीएससी का लाइसेंस देगी।
क्‍या है वीएलई योजना
दरअसल, नेशनल ई-गवर्नेंस प्‍लान के तहत सरकार सभी सरकारी सर्विस सस्‍ती दर पर लोगों तक पहुंचाना चाहती है। इसके लिए डिपार्टमेंट ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड टेक्‍नोलॉजी द्वारा देश भर में कॉमन सर्विस सेंटर खोले जाने हैं। कॉमन सर्विस सेंटर, जिन युवकों को दिया जाता है, उन्‍हें विलेज लेवल एंटरप्रेन्‍योर कहा जाता है।
एक सीएससी में सरकारी, प्राइवेट और सोशल सेक्‍टर जैसे टेलीकॉम, एग्रीकल्‍चर, हेल्‍थ, एजुकेशन, एंटरटेनमेंट, एफएमसीजी प्रोडक्‍ट, बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विस, सभी तरह के प्रमाणपत्र, आवेदन पत्र और यूटिलिटी बिल की पेमेंट की जा सकती है। सरकार सीएससी में मिलने वाले प्रोडक्‍ट्स की सर्विसेज की संख्‍या बढ़ाती जा रही है। जैसे कि अब यहां इंश्‍योरेंस प्रोडक्‍ट भी बेचे जा सकते हैं।

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

खांसी में स्टेरॉयड का भी बाप है कॉफ़ी का ये प्रयोग*

 खांसी में स्टेरॉयड का भी बाप है कॉफ़ी का ये प्रयोग*
क्या आपको अक्सर ही खांसी लगी रहती है ? क्या आपकी खांसी बहुत पुरानी हो चुकी है ?
क्या बार बार दवा लेने के बाद भी आपकी खांसी नहीं जा रही ?
और आप दवा ले ले कर परेशान हो गए हो तो अभी ये जो फार्मूला हम बताने जा रहें हैं ये खांसी के मामले में स्टेरॉयड का भी बाप है. स्टेरॉयड कोई दवा नहीं होती ये डॉक्टर तब दिए जाते हैं जब कोई दवा असर ना करे. और स्टेरॉयड शरीर के लिए बेहद हानिकारक है. इस नुस्खे के बारे में हम ये भी बताना चाहते हैं के अनेक आधुनिक डॉक्टर भी इस का रिजल्ट देख कर चकित हो गए हैं. तो आइये जाने ये बेहतरीन नुस्खा.
*》इस प्रयोग में आवश्यक सामग्री.*
 एक कप बनी हुयी फीकी काली कॉफ़ी (बिना दूध और चीनी के)
 दो चम्मच शहद
 दालचीनी – एक चुटकी (इच्छा अनुसार)
*》इसके उपयोग की विधि*
एक कप गर्म कॉफ़ी में दो चम्मच शहद अच्छे से मिला लीजिये. अब इस कॉफ़ी को धीरे धीरे घूँट घूँट कर पीजिये. यह प्रयोग दिन में दो बार कीजिये. सुबह और शाम को. पुराने से पुरानी और किसी भी प्रकार की खांसी इस प्रयोग के कुछ दिन करने से छू मंतर हो जाती है.
कफ की समस्या वाले 97 रोगियों पर यह प्रयोग किया गया जिसमे इतना चौंकाने वाले रिजल्ट मिले के कई मल्टी नेशनल फार्मा कंपनियों की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ गया. इस ड्रिंक को और शक्तिशाली बनाने के लिए आप इसमें चुटकी भर दालचीनी का पाउडर भी डाल सकते हैं.
आपके सु स्वास्थ्य की कामना रखते हैं. आप जब भी ये प्रयोग करें तो हमको अपने रिजल्ट एक हफ्ते के बाद ज़रूर बताएं. वैसे तो आप पहले ही बता देंगे क्यूंकि ये रिजल्ट ही इतना जल्दी देता है.
*● विशेष जब भी खांसी हो तो ये प्रयोग आजमा लिया कीजिये. आज के बाद कभी खांसी की कोई दवा तुरंत ना लें. पहले ये प्रयोग कर के देख ले.*

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

शक्ति वर्धक उपाय

शक्ति वर्धक उपाय
1. आंवलाः- 2 चम्मच आंवला के रस में
एक छोटा चम्मच सूखे आंवले का चूर्ण
तथा एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाकर
दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।
इसके इस्तेमाल से सेक्स शक्ति धीरे-
धीरे बढ़ती चली जाएगी।
• 2. पीपलः- पीपल का फल और
पीपल की कोमल जड़ को बराबर
मात्रा में लेकर चटनी बना लें। इस 2
चम्मच चटनी को 100 मि.ली. दूध
तथा 400 मि.ली. पानी में मिलाकर
उसे लगभग चौथाई भाग होने तक
पकाएं। फिर उसे छानकर आधा कप
सुबह और शाम को पी लें। इसके
इस्तेमाल करने से वीर्य में तथा सेक्स
करने की ताकत में वृद्धि होती है।
• 3. प्याजः- आधा चम्मच सफेद
प्याज का रस, आधा चम्मच शहद तथा
आधा चम्मच मिश्री के चूर्ण को
मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें। यह
मिश्रण वीर्यपतन को दूर करने के लिए
काफी उपयोगी रहता है।
• 4. चोबचीनीः- 100 ग्राम
तालमखाने के बीज, 100 ग्राम
चोबचीनी, 100 ग्राम ढाक का गोंद,
100 ग्राम मोचरस तथा 250 ग्राम
मिश्री को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें।
रोजाना सुबह के समय एक चम्मच चूर्ण
में 4 चम्मच मलाई मिलाकर खाएं। यह
मिश्रण यौन रुपी कमजोरी, नामर्दी
तथा वीर्य का जल्दी गिरना जैसे
रोग को खत्म कर देता है।
• 5. कौंच का बीजः- 100 ग्राम
कौंच के बीज और 100 ग्राम
तालमखाना को कूट-पीसकर चूर्ण
बना लें। फिर इसमें 200 ग्राम मिश्री
पीसकर मिला लें। हल्के गर्म दूध में
आधा चम्मच चूर्ण मिलाकर रोजाना
इसको पीना चाहिए। इसको पीने से
वीर्य गाढ़ा हो जाता है तथा
नामर्दी दूर होती है।
• 6. इमलीः- आधा किलो इमली के
बीज लेकर उसके दो हिस्से कर दें। इन
बीजों को तीन दिनों तक पानी में
भिगोकर रख लें। इसके बाद छिलकों
को उतारकर बाहर फेंक दें और सफेद
बीजों को खरल में डालकर पीसें। फिर
इसमें आधा किलो पिसी मिश्री
मिलाकर कांच के खुले मुंह वाली एक
चौड़ी शीशी में रख लें। आधा चम्मच
सुबह और शाम के समय में दूध के साथ लें।
इस तरह से यह उपाय वीर्य के जल्दी
गिरने के रोग तथा संभोग करने की
ताकत में बढ़ोतरी करता है।
• 7. बरगदः- सूर्यास्त से पहले बरगद के
पेड़ से उसके पत्ते तोड़कर उसमें से
निकलने वाले दूध की 10-15 बूंदें बताशे
पर रखकर खाएं। इसके प्रयोग से
आपका वीर्य भी बनेगा और सेक्स
शक्ति भी अधिक हो जाएगी।
• 8. सोंठः- 4 ग्राम सोंठ, 4 ग्राम
सेमल का गोंद, 2 ग्राम अकरकरा, 28
ग्राम पिप्पली तथा 30 ग्राम काले
तिल को एकसाथ मिलाकर तथा
कूटकर बारीक चूर्ण बना लें। रात को
सोते समय आधा चम्मच चूर्ण लेकर ऊपर
से एक गिलास गर्म दूध पी लें। यह
रामबाण औषधि शरीर की कमजोरी
को दूर करती है तथा सेक्स शक्ति को
बढ़ाती है।
• 9. अश्वगंधाः- अश्वगंधा का चूर्ण,
असगंध तथा बिदारीकंद को
100-100 ग्राम की मात्रा में लेकर
बारीक चूर्ण बना लें। इसमें से आधा
चम्मच चूर्ण दूध के साथ सुबह और शाम
लेना चाहिए। यह मिश्रण वीर्य को
ताकतवर बनाकर शीघ्रपतन की
समस्या से छुटकारा दिलाता है।
• 10. त्रिफलाः- एक चम्मच त्रिफला
के चूर्ण को रात को सोते समय 5
मुनक्कों के साथ लेना चाहिए तथा
ऊपर से ठंडा पानी पिएं। यह चूर्ण पेट
के सभी प्रकार के रोग, स्वप्नदोष
तथा वीर्य का शीघ्र गिरना आदि
रोगों को दूर करके शरीर को मजबूती
प्रदान करता है।
11. छुहारेः- चार-पांच छुहारे, दो-
तीन काजू तथा दो बादाम को 300
ग्राम दूध में खूब अच्छी तरह से उबालकर
तथा पकाकर दो चम्मच मिश्री
मिलाकर रोजाना रात को सोते
समय लेना चाहिए। इससे यौन इच्छा
और काम करने की शक्ति बढ़ती है।
• 12. उंटगन के बीजः- 6 ग्राम उंटगन के
बीज, 6 ग्राम तालमखाना तथा 6
ग्राम गोखरू को समान मात्रा में लेकर
आधा लीटर दूध में मिलाकर पकाएं।
यह मिश्रण लगभग आधा रह जाने पर
इसे उतारकर ठंडा हो जाने दें। इसे
रोजाना 21 दिनों तक समय अनुसार
लेते रहें। इससे नपुंसकता (नामर्दी) रोग
दूर हो जाता है।
• 13. तुलसीः- आधा ग्राम तुलसी के
बीज तथा 5 ग्राम पुराने गुड़ को
बंगाली पान पर रखकर अच्छी तरह से
चबा-चबाकर खाएं। इस मिश्रण को
विस्तारपूर्वक 40 दिनों तक लेने से
वीर्य बलवान बनता है, संभोग करने
की इच्छा तेज हो जाती है और
नपुंसकता जैसे रोग भी दूर हो जाते हैं।
• 14. गोखरूः- सूखा आंवला, गोखरू,
कौंच के बीज, सफेद मूसली और गुडुची
सत्व- इन पांचो पदार्थों को समान
मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। एक चम्मच
देशी घी और एक चम्मच मिश्री में एक
चम्मच चूर्ण मिलाकर रात को सोते
समय इस मिश्रण को लें। इसके बाद एक
गिलास गर्म दूध पी लें। इस चूर्ण से
सेक्स कार्य में अत्यंत शक्ति आती है।
• 15. सफेद मूसलीः- सालम मिश्री,
तालमखाना, सफेद मूसली, कौंच के
बीज, गोखरू तथा ईसबगोल- इन
सबको समान मात्रा में मिलाकर
बारीक चूर्ण बना लें। इस एक चम्मच
चूर्ण में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम
दूध के साथ पीना चाहिए। यह वीर्य
को ताकतवर बनाता है तथा को ताकतवर बनाता है तथा सेक्स
शक्ति में अधिकता लाता है।
• 16. हल्दीः- वीर्य अधिक पतला
होने पर 1 चम्मच शहद में एक चम्मच
हल्दी पाउडर मिलाकर रोजाना सुबह
के समय खाली पेट सेवन करना
चाहिए। इसका विस्तृत रुप से
इस्तेमाल करने से संभोग करने की
शक्ति बढ़ जाती है।
• 17. उड़द की दालः- आधा चम्मच
उड़द की दाल और कौंच की दो-तीन
कोमल कली को बारीक पीसकर सुबह
तथा शाम को लेना चाहिए। यह
उपाय काफी फायदेमंद है। इस नुस्खे
को रोजाना लेने से सेक्स करने की
ताकत बढ़ जाती है।
• 18. जायफलः- जायफल 10 ग्राम,
लौंग 10 ग्राम, चंद्रोदय 10 ग्राम,
कपूर 10 ग्राम और कस्तूरी 6 ग्राम को
कूट-पीसकर इस मिश्रण के चूर्ण की 60
खुराक बना लें। इसमें से एक खुराक को
पान के पत्ते पर रखकर धीरे-धीरे से
चबाते रहें। जब मुंह में खूब रस जमा हो
जाए तो इस रस को थूके नहीं बल्कि
पी जाएं। इसके बाद थोड़ी सी मलाई
का इस्तेमाल करें। यह चूर्ण रोजाना
लेने से नपुंसकता जैसे रोग दूर होते हैं
तथा सेक्स शक्ति में वृद्धि होती है।
• 19. शंखपुष्पीः- शंखपुष्पी 100
ग्राम, ब्राह्नी 100 ग्राम, असंगध 50
ग्राम, तज 50 ग्राम, मुलहठी 50 ग्राम,
शतावर 50 ग्राम, विधारा 50 ग्राम
तथा शक्कर 450 ग्राम को बारीक
कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर एक-एक चम्मच
की मात्रा में सुबह और शाम को लेना
चाहिए। इस चूर्ण को तीन महीनों
तक रोजाना सेवन करने से नाईट-फाल
(स्वप्न दोष), वीर्य की कमजोरी
तथा नामर्दी आदि रोग समाप्त
होकर सेक्स शक्ति में ताकत आती है।
• 20. गाजरः- 1 किलो गाजर, चीनी
400 ग्राम, खोआ 250 ग्राम, दूध 500
ग्राम, कद्यूकस किया हुआ नारियल
10 ग्राम, किशमिश 10 ग्राम, काजू
बारीक कटे हुए 10-15 पीस, एक
चांदी का वर्क और 4 चम्मच देशी घी
ले लें। गाजर को कद्यूकस करके कडा़ही
में डालकर पकाएं। पानी के सूख जाने
पर इसमें दूध, खोआ और चीनी डाल दें
तथा इसे चम्मच से चलाते रहें। जब यह
सारा मिश्रण गाढ़ा होने को हो
तो इसमें नारियल, किशमिश, बादाम
और काजू डाल दें। जब यह पदार्थ
गाढ़ा हो जाए तो थाली में देशी घी
लगाकर हलवे को थाली पर निकालें
और ऊपर से चांदी का वर्क लगा दें।
इस हलवे को चार-चार चम्मच सुबह और
शाम खाकर ऊपर से दूध पीना
चाहिए। यह वीर्यशक्ति बढ़ाकार
शरीर को मजबूत रखता है। इससे सेक्स
शक्ति भी बढ़ती है।
21. ढाकः- ढाक के 100 ग्राम गोंद
को तवे पर भून लें। फिर 100 ग्राम
तालमखानों को घी के साथ भूनें।
उसके बाद दोनों को बारीक काटकर
आधा चम्मच सुबह और शाम को दूध के
साथ खाना खाने के दो-तीन घंटे पहले
ही इसका सेवन करें। इसके कुछ ही
दिनों के बाद वीर्य का पतलापन दूर
होता है तथा सेक्स क्षमता में बहुत
अधिक रुप से वृद्धि होती है।
• 22. जायफलः- 15 ग्राम जायफल,
20 ग्राम हिंगुल भस्म, 5 ग्राम
अकरकरा और 10 ग्राम केसर को
मिलाकर बारीक पीस लें। इसके बाद
इसमें शहद मिलाकर इमामदस्ते में घोटें।
उसके बाद चने के बराबर छोटी-छोटी
गोलियां बना लें। रोजाना रात को
सोने से 2 पहले 2 गोलियां गाढ़े दूध के
साथ सेवन करें। इससे शिश्न (लिंग)
का ढ़ीलापन दूर होता है तथा
नामर्दी दूर हो जाती है।
• 23. इलायचीः- इलायची के दानों
का चूर्ण 2 ग्राम, जावित्री का चूर्ण
1 ग्राम, बादाम के 5 पीस और
मिश्री 10 ग्राम ले लें। बादाम को
रात के समय पानी में भिगोकर रख दें।
सुबह के वक्त उसे पीसकर पेस्ट की तरह
बना लें। फिर उसमें अन्य पदार्थ
मिलाकर तथा दो चम्मच मक्खन
मिलाकर विस्तार रुप से रोजाना
सुबह के वक्त इसको सेवन करें। यह वीर्य
को बढ़ाता है तथा शरीर में ताकत
लाकर सेक्स शक्ति को बढ़ाता है।
• 24. सेबः- एक अच्छा सा बड़े आकार
का सेब ले लीजिए। इसमें हो सके
जितनी ज्यादा से ज्यादा लौंग
चुभाकर अंदर तक डाल दीजिए। इसी
तरह का एक अच्छा सा बड़े आकार का
नींबू ले लीजिए। इसमें जितनी
ज्यादा से ज्यादा हो सके, लौंग
चुभाकर अंदर तक डाल दीजिए। दोनों
फलों को एक सप्ताह तक किसी बर्तन
में ढककर रख दीजिए। एक सप्ताह बाद
दोनों फलों में से लौंग निकालकर
अलग-अलग शीशी में भरकर रख लें। पहले
दिन नींबू वाले दो लौंग को बारीक
कूटकर बकरी के दूध के साथ सेवन करें।
इस तरह से बदल-बदलकर 40 दिनों तक
2-2 लौंग खाएं। यह एक तरह से सेक्स
क्षमता को बढ़ाने वाला एक बहुत ही
सरल उपाय है।
• 25. अजवायनः- 100 ग्राम
अजवायन को सफेद प्याज के रस में
भिगोकर सुखा लें। सूखने के बाद उसे
फिर से प्याज के रस में गीला करके
सुखा लें। इस तरह से तीन बार करें।
उसके बाद इसे कूटकर किसी शीशी में
भरकर रख लें। आधा चम्मच इस चूर्ण को
एक चम्मच पिसी हुई मिश्री के साथ
मिलाकर खा जाएं। फिर ऊपर से
हल्का गर्म दूध पी लें। करीब-करीब एक
महीने तक इस मिश्रण का उपयोग करें।
इस दौरान संभोग बिल्कुल भी नहीं
करना चाहिए। यह सेक्स क्षमता को
बढ़ाने वाला सबसे अच्छा उपाय है।

रविवार, 1 अप्रैल 2018

(सर्जरी) के पितामह और सुश्रुतसंहिता के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व काशी में हुआ था

शल्य चिकित्सा (सर्जरी) के पितामह और सुश्रुतसंहिता के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व काशी में हुआ था। सुश्रुत का जन्म विश्वामित्र के वंश में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की थी।
सुश्रुतसंहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसमें शल्य चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है। शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे। ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए खोजे गए थे। इन उपकरणों में विशेष प्रकार के चाकू, सुइयां, चिमटियां आदि हैं। सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की। आठवीं शताब्दी में सुश्रुतसंहिता का अरबी अनुवाद किताब-इ-सुश्रुत के रूप में हुआ। सुश्रुत ने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी।
एक बार आधी रात के समय सुश्रुत को दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। उन्होंने दीपक हाथ में लिया और दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही उनकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी। उस व्यक्ति की आंखों से अश्रु-धारा बह रही थी और नाक कटी हुई थी। उसकी नाक से तीव्र रक्त-स्राव हो रहा था। व्यक्ति ने आचार्य सुश्रुत से सहायता के लिए विनती की। सुश्रुत ने उसे अन्दर आने के लिए कहा। उन्होंने उसे शांत रहने को कहा और दिलासा दिया कि सब ठीक हो जायेगा। वे अजनबी व्यक्ति को एक साफ और स्वच्छ कमरे में ले गए। कमरे की दीवार पर शल्य क्रिया के लिए आवश्यक उपकरण टंगे थे। उन्होंने अजनबी के चेहरे को औषधीय रस से धोया और उसे एक आसन पर बैठाया। उसको एक गिलास में शोमरस भरकर सेवन करने को कहा और स्वयं शल्य क्रिया की तैयारी में लग गए। उन्होंने एक पत्ते द्वारा जख्मी व्यक्ति की नाक का नाप लिया और दीवार से एक चाकू व चिमटी उतारी। चाकू और चिमटी की मदद से व्यक्ति के गाल से एक मांस का टुकड़ा काटकर उसे उसकी नाक पर प्रत्यारोपित कर दिया। इस क्रिया में व्यक्ति को हुए दर्द का शौमरस ने महसूस नहीं होने दिया। इसके बाद उन्होंने नाक पर टांके लगाकर औषधियों का लेप कर दिया। व्यक्ति को नियमित रूप से औषाधियां लेने का निर्देश देकर सुश्रुत ने उसे घर जाने के लिए कहा।
सुश्रुत नेत्र शल्य चिकित्सा भी करते थे। सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ऑपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डी का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी। शल्य क्रिया के दौरान होने वाले दर्द को कम करने के लिए वे मद्यपान या विशेष औषधियां देते थे। सुश्रुत श्रेष्ठ शल्य चिकित्सक होने के साथ-साथ श्रेष्ठ शिक्षक भी थे।
उन्होंने अपने शिष्यों को शल्य चिकित्सा के सिद्धांत बताये और शल्य क्रिया का अभ्यास कराया। प्रारंभिक अवस्था में शल्य क्रिया के अभ्यास के लिए फलों, सब्जियों और मोम के पुतलों का उपयोग करते थे। मानव शरीर की अंदरूनी रचना को समझाने के लिए सुश्रुत शव के ऊपर शल्य क्रिया करके अपने शिष्यों को समझाते थे। सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा में अद्भुत कौशल अर्जित किया तथा इसका ज्ञान अन्य लोगों को कराया। उन्होंने शल्य चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेद के अन्य पक्षों जैसे शरीर संरचना, काया-चिकित्सा, बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग आदि की जानकारी भी दी। कई लोग प्लास्टिक सर्जरी को अपेक्षाकृत एक नई विधा के रूप में मानते हैं। प्लास्टिक सर्जरी की उत्पत्ति की जड़ें भारत की सिंधु नदी सभ्यता से 4000 से अधिक साल से जुड़ी हैं। इस सभ्यता से जुड़े श्लोकों को 3000 और 1000 ई.पू. के बीच संस्कृत भाषा में वेदों के रूप में संकलित किया गया है, जो हिन्दू धर्म की सबसे पुरानी पवित्र पुस्तकों में में से हैं। इस युग को भारतीय इतिहास में वैदिक काल के रूप में जाना जाता है, जिस अवधि के दौरान चारों वेदों अर्थात् ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद को संकलित किया गया। चारों वेद श्लोक, छंद, मंत्र के रूप में संस्कृत भाषा में संकलित किए गए हैं और सुश्रुत संहिता को अथर्ववेद का एक हिस्सा माना जाता है।
सुश्रुत संहिता, जो भारतीय चिकित्सा में सर्जरी की प्राचीन परंपरा का वर्णन करता है, उसे भारतीय चिकित्सा साहित्य के सबसे शानदार रत्नों में से एक के रूप में माना जाता है। इस ग्रंथ में महान प्राचीन सर्जन सुश्रुत की शिक्षाओं और अभ्यास का विस्तृत विवरण है, जो आज भी महत्वपूर्ण व प्रासंगिक शल्य चिकित्सा ज्ञान है। प्लास्टिक सर्जरी का मतलब है- शरीर के किसी हिस्से की रचना ठीक करना। प्लास्टिक सर्जरी में प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता है। सर्जरी के पहले जुड़ा प्लास्टिक ग्रीक शब्द प्लास्टिको से आया है। ग्रीक में प्लास्टिको का अर्थ होता है बनाना, रोपना या तैयार करना। प्लास्टिक सर्जरी में सर्जन शरीर के किसी हिस्से के उत्तकों को लेकर दूसरे हिस्से में जोड़ता है। भारत में सुश्रुत को पहला सर्जन माना जाता है। आज से करीब 2500 साल पहले युद्ध या प्राकृतिक विपदाओं में जिनकी नाक खराब हो जाती थी, आचार्य सुश्रुत उन्हें ठीक करने का काम करते थे।

सोमवार, 26 मार्च 2018

शीशम को आयुर्वेद में जड़ी-बूटी के रूप में प्रयोग

शीशम को आयुर्वेद में जड़ी-बूटी के रूप में प्रयोग किया जाता है। शीशम के पत्तों से निकलने वाले चिपचिपे पदार्थ को कई रोगों के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल को दर्दनाशक, अवसादरोधी, सड़न रोकने वाले, जीवाणु रोधक, कीटनाशक और स्फूर्तिदायक आदि के तौर पर प्रयोग किया जाता है।इस का प्रयोग गर्मी के मौसम में अधिक लाभदायक होता है क्योंकि यह पित शामक है तथा शरीर में ठंडक महसूस करती हैं! कृपया इसे जनहित में शेयर करें व पुन्‍य के भागी बने आपका अपना डॉ जितेंद्र गिल सदस्य भारतीय चिकित्सा परिषद्.

मूत्रकृच्छ : मूत्रकृच्छ (पेशाब करते समय परेशानी) की ज्यादा पीड़ा में शीशम के पत्तों का 50-100 मिलीलीटर काढ़ा दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से लाभ मिलता है।

लालामेह और पूयमेह : लालामेह और पूयमेह में 10-15 मिलीलीटर शीशम के पत्तों का रस दिन में 3 बार रोगी को देने से लाभ होता है।

हैजा या विसूचिका : सुगंधित और चटपटी औषधियों के साथ शीशम की गोलियां बनाकर विसूचिका (हैजा) में देने से आराम मिलता है।

आँखों का दर्द : शीशम के पत्तों का रस और शहद मिलाकर इसकी बूंदें आंखों में डालने से दु:खती आंखें ठीक होती है।

वक्ष सूजन : शीशम के पत्तों को गर्म करके स्तनों पर बांधने से और इसके काढ़े से वक्षो को धोने से सूजन दुुर हो जााती है।

पेट की जलन और पीलिया : उदर (पेट) की जलन में 10-15 मिलीलीटर शीशम के पत्तों का रस रोगी को देने से लाभ होता है। पीलिया के रोग में भी शीशम के पत्तों का रस 10-15 मिलीलीटर सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।

हर तरह का बुखार : हर तरह के बुखार में 20 मिलीलीटर शीशम का सार, 320 मिलीलीटर पानी, 160 मिलीलीटर दूध को मिलाकर गर्म करने के लिए रख दें। दूध शेष रहने पर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से लाभ होता है।

गृघसी या जोड़ों का दर्द : शीशम की 10 किलोग्राम छाल का मोटा चूरा बनाकर साढ़े 23 लीटर पानी में उबालें, पानी का 8वां भाग जब शेष रह जाए तब इसे ठंडा होने पर कपड़े में छानकर फिर इसको चूल्हे पर चढ़ाकर गाढ़ा करें। इस गाढ़े पदार्थ को 10 मिलीलीटर की मात्रा में घी युक्त दूध पकाने के साथ 21 दिन तक दिन में 3 बार लेने से गृधसी रोग (जोड़ों का दर्द) खत्म हो जाता है।

रक्त विकार : शीशम के 1 किलोग्राम बुरादे को 3 लीटर पानी में भिगोकर रख लें, फिर उबाल लें, जब पानी आधा रह जाए तब इसे छान लें, इसमें 750 ग्राम बूरा (पिसी हुई मिश्री या शक्कर) मिलाकर शर्बत बना लें, यह शर्बत खून को साफ करता है। शीशम के 3 से 6 ग्राम बुरादे का शर्बत बनाकर रोगी को पिलाने से खून की खराबी दूर होती है।

कष्टार्त्तव या मासिक धर्म का कष्ट का आना : 3 से 6 ग्राम शीशम का चूर्ण या 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा कष्टार्त्तव रोग में दिन में 2 बार सेवन करने से लाभ होता है।

कफ : 10 से 15 बूंद शीशम का तेल सुबह-शाम गर्म दूध में मिलाकर सेवन करने से बलगम समाप्त हो जाता है।

आंवरक्त या पेचिश : 6 ग्राम शीशम के हरे पत्ते और 6 ग्राम पोदीना के पत्तों को पानी में ठंडाई की तरह घोंटकर पीने से पेचिश के रोग में लाभ होता है।

घाव में : शीशम के पत्तों से बने तेल को घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है। यहां तक की कुष्ठ (कोढ़) के घाव में भी इसका उपयोग लाभकारी होता है।

माता-बहनो में प्रदर रोग : 40-40 ग्राम शीशम के पत्ते और फूल, 40 ग्राम इलायची, 20 ग्राम मिश्री और 16 कालीमिर्च को एक साथ पीसकर पीने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।

पौरुष शक्ति में : रात में एक मिट्टी के बर्तन में पानी रखें शीशम के हरे और कोमल पत्तों को रखकर ढक दें। सुबह इन्हें निचोड़कर छान लें और ताल मिश्री मिलाकर खाने से लाभ होता है।

कुष्ठ (कोढ़) : कुष्ठ रोग में शीशम के तेल को लगाने से या शीशम के पत्तों से बने तेल को लगाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग में आराम आता है।

नाड़ी का दर्द : शीशम की जड़ व पत्तें और बराबर मात्रा में सैंधा नमक लेकर कांजी में इसका लेप बनाकर लगाने से नाड़ी रोग जल्द ठीक होता है।

हृदय रोग में फायदेमंद : यदि आपका कोलेस्ट्राल बढ़ गया है और आप हृदय रोग से ग्रस्त हैं तो शीशम के तेल का सेवन आपके लिए रामबाण साबित हो सकता है। शीशम के तेल का सेवन रक्त प्रवाह को बेहतर रखता है। इस तेल से बना खाना खाने से पाचन शक्ति भी मजबूत होती है।

अवसाद से दूर रखने में सहायक : शीशम के तेल का सेवन करने से अवसाद ग्रस्त रोगियों को कुछ ही देर में आराम मिल जाता है। इसका सेवन आपको उदासी और निराशा से दूर रखता है। साथ ही जिंदगी में सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने में मदद करता है। खाने में इसका प्रयोग उन लोगों के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है जो हाल-फिलहाल ही अपने किसी लक्ष्य को नहीं पा सके।

चोट का घाव : यदि आपके शरीर के किसी हिस्से में चोट का घाव है तो इसे भरने में शीशम का तेल सहायक है। घाव वाली जगह पर आप शीशम के तेल में हल्दी मिलाकर बांध लें। इससे घाव जल्द भर जाएगा। इसके अलावा फटी हुई एडियों (बिवाई) पर शीशम का तेल लगाने से एडियों की रंगत लौट आती है।

सोमवार, 19 मार्च 2018

मेरा कुछ शुरुआती चिकित्सकीय अनुभव

मेरा कुछ शुरुआती चिकित्सकीय अनुभव 

अब मैं एक चिकित्सक के रूप में अपना अनुभव मैं आप के बीच बांटता हूं…
1-दिनांक 16-10-2001. रोगी-श्रीमती क देवी, पति-ख मंडल. पता-बंगाली टोला, कल्याणपुर. जिला-मुंगेर (बिहार). 
क देवी की मां ग देवी अपनी बेटी के साथ मेरे पास आकर कहने लगीं. डॉ साहब, मेरी बेटी की शादी के 12 वर्ष बीत गये हैं, लेकिन अभी तक मां नहीं बन पायी. काफी इलाज कराया, झाड़-फूंक, जादू-टोना भी कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ… अब आप दवा दें कि मेरी बेटी मां बन जाये. मैंने जांच की तो देखा, क देवी के बाल उलझ कर चिपके हुए थे, मासिक स्राव में प्रसव पीड़ा की तरह दर्द, बांझपन एवं बराबर सर्दी का रहना. मैंने लक्षण के अनुसार बोरेक्स-30 सुबह-शाम एवं बायो कांबिनेशन-5, 4×4 दिया. इसी प्रकार दो माह तक समय के अनुसार बोरेक्स-30, सेकलेक एवं बी.सी-5 देता रहा. 20/12/2001 को सर्दी एवं मासिक स्राव में शत-प्रतिशत आराम मिल गया. 20/12/2001 को यौन संबंध के आधा घंटा पहले एवं आधा घंटा बाद बोरेक्स-6x दिया. सत्यव्रत सिद्धांलंकार मां तथा बच्चा पृष्ठ संख्या-6, 28-01-2002 को क देवी की मां ग देवी ने मुस्कुराते हुए आयीं और बोली- डॉक्टर साहब, 10 दिन बीत गये, मेरी बेटी मासिक धर्म नहीं आया है. सेकलेक तीन बार मैंने लेने के लिए दिया. 26-03-2002 को उल्टी-मितली की शिकायत पर इपिकाक-30 एवं बी.सी.-26 4×4 समय के अनुसार चलाता रहा. क देवी को 10-10-2003 को नार्मल ढंग से बेटा हुआ.
2- श्री क राम, उम्र 60 साल, ग्राम-रूतपय, पत्रालय- शंभूगंज, जिला भागलपुर (बिहार). सुल्तानगंज से 15 किलोमीटर दक्षिण. ससुराल मेरे गांव कल्याणपुर में है.
-दिनांक 12-06-2002 को अपने दोनों पैर मे सफेद दाग दिखाते हुए बताया कि पहले दोनों पैर में सफेद दाग के स्थान लसलसा स्राव बहने वाला एक्जिमा थआ, जो छूटने का नाम नहीं लेता था, बहुत दिनों तक एलोपैथ की सूई दवा एवं मलहम लगाने के बाद एक्जिमा ठीक हो गया, लेकिन तीन वर्ष पहले उसी स्थान पर सफेद दाग हो गया, जो धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. हाथ-पैर का नाखून अपने आप टूट रहा है.
मैंने इन लक्षणों के आधार पर एवं डॉ विनय कुमार राय (सफेद दाग) पृष्ठ संख्या -23 के आधार पर ग्रेफाइटिस 200 का एक एक डोज के साथ सेकलेक दिया. 24-06-2002 को रोगी जगत राम घबराते हुए निराशा भाव से दोनों पैर दिखाते हुए बोला-पहले वाला एक्जिमा हो गया. सफेद दाग के स्थान से लसलसा शहद के समान स्राव निकल रहा था. मैंने उसे समझाया कि यह होमियोपैथ का शुभ लक्षण है. आप का सफेद दाग ठीक हो जायेगा. सेकलेक देकर 15 दिन बाद बुलाया. 10-07-2002 को जब वह मेरे पास आया तो  सफेद दाग एवं एक्जिमा में 30 प्रतिशत का आराम हो गया. ग्रेफाइटिस -200 का एक डोज के साथ सेकलेक. तीन माह तक सेकलेक देता रहा. सफेद दाग धीरे-धीरे गायब हो गया. ग्रेफाइटिस -200 की केवल दो मात्रा से सफेद दाग पूरी तरह ठीक हो गया.
3- रोगी का नाम- क कुमारी. पिता- ख सिंह. उम्र-18 साल. ग्राम-घोसैठ, पोस्ट आफिस-अभयपुर, जिला-मुंगेर (बिहार).
दिनांक- 16-04-2004 को दोनों हाथ-पैर में सफेद दाग दिखाते हुए बोली- वर्षों पहले हाथ-पैर में एक्जिमा हुआ था, एलोपैथ सूई-दवा, मलहम उपयोग करने से एक्जिमा ठीक हो गया, लेकिन चार साल से सफेद दाग हो गया है. ये धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है. भागलपुर एवं पटना में एलोपैथ इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला. इतना बताते-बताते क कुमारी अनेक बार अपने मुंह पर हाथ फेरती रही. मैंने पूछा –मुंह पर हाथ क्यों फेरती हो.
क ने बताया- मुझे चेहरे पर मकड़ी का जाला जैसा अनुभव होता है.
डॉ. सत्यव्रत होमियोपैथी औषधियों का सजीव चित्रण पृष्ठ संख्या-321 इस लक्षण पर ग्रेफाइटिस-200 का एक डोज साथ में सेकलेक. 26-04-2004 को कुछ लाभ नहीं. क के साथ क के पिता भी आये थे, जो खांसते रहते थे. मैंने पिता से पूछा आप को दमा है क्या. तब उन्होंने बताया कि मुझे पहले क्षय रोग था. इसी आधार पर मैंने क को बैसीलिनम-1M का एक डोज एवं दूसरे दिन ग्रेफाइटिस-200 का एक डोज.
20-05-2004 को सफेद दाग के स्थान पर एक्जिमा उभर आया. एक्जिमा से लसलसा पानी चल रहा था. सेकलेक एक डोज. 30-05-2004 को सफेद दाग एवं एक्जिमा में आराम. बेसीलिनम-1M एक डोज. 16-06-2004 को काफी राहत. सेकलेक 26-06-2004 को 75 प्रतिशत सफेद दाग से राहत. बेसीलिनम-1M. दूसरे दिन ग्रेफाइटिस-1M. 10-07-2004 को 10 प्रतिशत राहत, सेकलेक 30-07-2004. सफेद दाग से पूरी तरह आराम. परंतु अभी 15 दिन ही बीते थे कि क देवी को फिर दिक्कत शुरू हुई. इसके बाद तीन महीने तक सेकलेक का डोज दिया. तब जाकर क देवी को सफेद दाग से पूरी तरह राहत मिली.
4- रोगी का नाम-क देवी. उम्र-22 वर्ष. पति-ख सिंह. तिलकामांझी, जिला-भागलपुर. माता-पिता का घर-कल्याणपुर (मुंगेर).
दिनांक-10-05-2004 को क देवी अपने पिता के साथ आकर बोलीं- मेरी गर्दन एवं गाल पर सफेद दाग हो गया है. मुझे नीचे की गति से काफी भय लगता है. श्वेत प्रदर गर्म पानी की धार की तरह बहता है. इसके सफेद दाग में लाल धब्बा देख कर मुझे डॉ दरबारी की लेखनी याद आयी. बोरेक्स-30 सुबह-शाम दे दिया. 25-05-2004 सफेद दाग मलिन. 13-06-2004 को सफेद दाग 50 फीसदी गायब, सेकलेक. 27-06-2004 को सफेद दाग से पूर्ण लाभ. फिर भी मैंने कुछ माह लगातार क देवी को सेकलेक देता रहा. अब जाकर क देवी पूरी तरह से ठीक हैं.
5- रोगी का नाम-क कुमार (कारीगर वेल्डिंग शॉप), स्थान- जमालपुर रेल कारखाना, मुंगेर.
मैं जमालपुर रेल कारखाना में 20 वर्षों से बीमार, रेल इंजन एवं 140 टन क्रेन का इलाज तकनीशियन के रूप में करते-करते अब रेल कर्मी एवं अधिकारियों का होमियोपैथ से इलाज करने वाला चिकित्सक बन चुका था. दिनांक 02-02-2002 को क कुमार दायें-बायें गले पर एवं होंठ पर सफेद दाग की शिकायत लेकर मुझसे मिले और बोले- पांच साल से एलोपैथ, होमियोपैथ एवं आयुर्वेद का इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं मिला.
मैंने तमाम बातें पूछीं, लेकिन कुछ भी लक्षण स्पष्ट नहीं हुआ, केवल पिता को खुजली एवं एक्जिमा के इतिहास के. मैंने सोरिनम-1M 15 दिन पर एवं एचसी-85, दो गोली चार बार शुरू कर दिया. 10-04-2002 को सफेद दाग में कुछ अंतर आने लगा. इसी दवा को लगभग आठ माह तक चलाता रहा. 17-10-2002 को सफेद दाग पूर्ण रूप से ठीक हो गया. रोगी मेरे साथ ही कार्यरत हैं. अभी वो पूरी तरह ठीक हैं.
6- रोगी का नाम-क देवी, ग्राम-भदौड़ा, पोस्टआफिस-लोहची, जिला-मुंगेर. कल्याणपुर से पांच किमी दक्षिण.
दिनांक 06-01-2001 को आठ वर्षों से एक पैर में फील पांव था. कुछ दिन आयुर्वेद इलाज कराया, फायदा नहीं मिलने पर मेरे पास आयीं. मैंने डॉ सत्यव्रत साहब की रोग तथा होमियोपैथी चिकित्सा पृष्ठ संख्या 270 के अनुसार हाइड्रोकोटाइल-1M एवं डॉ राजेश दीक्षित के कंप्लीट बायोकैमी पृष्ठ संख्या 207 के अनुसार कैलि सल्फ-3X, नेट्रम सल्फ 3X तथा साइलिशिया 12X का मिश्रण एक वर्ष तक देता रहा. मरीज पूरी तरह ठीक हो गयी.
7- रोगी का नाम- क कुमारी. उम्र-30 साल. पति ख कुमार. स्थान-रेलवे अस्पताल-जमालपुर में नर्स के पद पर कार्यरत.
इनकी शिकायत थी कि जुकाम के साथ लगातार छींक आना. छींकते-छींकते आंखों में पानी भर आना. छींक-जुकाम के साथ बेहद सिर दर्द.
दिनांक 04-10-2002 को सेवाडिल्ला-30 एवं बी.सी.-5 दवा देते रहने के बाद वर्षों का रोग एक माह में ही ठीक हो गया.
8- रोगी का नाम-श्री क चटर्जी, वरीय अभियंता-स्टील फाउंड्री, रेलवे वर्कशॉप जमालपुर कारखाना.
चटर्जी साहब ने 22-06-2004 को मुझसे बताया कि मेरे दायें पैर की जांघ से घुटने तक दर्द रहता है. आराम करने पर दर्द बढ़ जाता है. सूई चुभने सा दर्द रहता है. कभी कभी दर्द इतना अधिक होता है कि जैसे चाकू से मेरे पैर को कोई काट रहा है. एलोपैथ दवा से कुछ आराम मिलता है, लेकिन पेट में जलन होने लगती है. मैंने लक्षण जानकर कैलि कार्ब-30 की एक पुड़िया खिला कर मैग फॉस -6X, 4X4 का निर्देश देते हुए एक सप्ताह के बाद बुलाया. चटर्जी साहब तीन दिन बाद मिले और बोले- आप तो जादू की पुड़िया दिये, मेरा दर्द पहली ही खुराक से गायब हो गया.

9- रोगी का नाम- क राय, अनुभाग अभियंता-वेल्डिंग शॉप, रेलवे वर्कशॉप, जमालपुर कारखाना, जिला –मुंगेर.
दिनांक 02-02-03. राय जी ने मुझसे शिकायत की कि गड़गड़ाहट के साथ बार-बार पैखाना होता है. इसका इलाज मैं रेलवे अस्पताल जमालपुर में कराया. भागलपुर के मशहूर फिजीशियन डॉ हेमशंकर शर्मा और पटना के मशहूर फिजीशियन डॉ बीके अग्रवाल को भी दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. दवा बंद करता हूं, तो मर्ज शुरू हो जाता है. मैंने होमियोपैथ इलाज शुरू करने से पहले उनसे पूछताछ शुरू की, तो पता चला कि उनका पैखाना अत्यंत बदबूदार, सुबह से दोपहर तक रोग में वृद्धि, पैखाना होने के बाद पांव में ऐठन, कभी कब्ज, कभी दस्त बना रहता है. सारा का सारा लक्षण पोडोफाइलम दवा से मिलता लगा. मैंने राय जी को पोडोफाइलम-30 दिन में तीन बार लेने का निर्देश दिया. लगभग एक सप्ताह में उनका सारा कष्ट दूर हो गया. मैं उन्हें तीन माह तक सेकलैक देता रहा. अभियंता साहब का पुराना मर्ज हमेशा के लिए गायब हो गया.
10- रोगी का नाम- श्री क कुमार, सेक्शन आफिसर, ब्वायलर शॉप, रेलवे कारखाना जमालपुर, मुंगेर.
दिनांक 16-04-03 को अपने शरीर में जहां-तहां ग्रंथियों में कड़ा पन दिखाते हुए बोले- महीनों से एलोपैथ इलाज करा रहा हूं, ठीक नहीं हो रहा है. मैंने उन्हें कार्बो एनीमल-200 का डोज एक सप्ताह के लिए दिया. तीन सप्ताह में उनका सारा कष्ट दूर हो गया.
11- रोगी का नाम- क गोस्वामी, उम्र-28 साल, स्थान- कुमारपुर (कल्याणपुर), जिला-मुंगेर.
दिनांक 07-07-2003 को अपने पिता के साथ ट्राली पर लदे कराहते हुए आये और बोले- मेरे कमर के पिछले भाग से पैर की एड़ी तक जोर का दर्द होता है, कभी सुन्न हो जाता है. मैं बहुत दिनों से एलोपैथ दवा खा कर इसे दबा देता रहा, लेकिन अब एलोपैथ दवा का कुछ भी असर नहीं रहता है. मैंने नेफेलियम दवा की 30 शक्ति की दवा तीन बार खाने का निर्देश देकर एक सप्ताह के बाद बुलाया. परंतु गोस्वामी जी अगली बार साइकिल चलाते हुए आये और बोले- आप की दवा ने तो जादू कर दिया. मुझे अब किसी तरह का दर्द नहीं है.

कब्ज का होमियोपैथी में इलाज

कब्ज का होमियोपैथी में इलाज

होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति में इलाज के लिए दवाओं का चयन व्यक्तिगत लक्षणों पर आधारित होता है. यही एक तरीका है जिसके माधयम से रोगी के सब विकारों को दूर कर सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है. होमियोपैथी का उद्देश्य कब्ज (Constipation) करने वाले कारणों का सर्वमूल नाश करना है न की केवल कब्ज (Constipation) का. जहां तक चिकित्सा सम्बन्धी उपाय की बात है तो होमियोपैथी में कब्ज (Constipation) के लिए अनेक दवाइयां ( Drugs) उपलब्ध हैं. व्यतिगत इलाज़ के लिए एक योग्य होम्योपैथिक (Qualified Homeopathic) डॉक्टर की सलाह जरूर लें.
नक्स-वोमिका, ग्रैफाइटिस, प्लम्बम, ओपियम तथा ब्रायोनिया आदि इस रोग की श्रेष्ठ औषधियां मानी जाती हैं.
नक्स-वोमिका 30, 200 – जिन लोगों को अधिक पढ़ना-लिखना पड़ता है, जो आलसी की भांति बैठे-बैठे दिन बिताते हैं, जो जरा-सी बात में ही चिढ़ जाते हैं, खिन्न रहते हैं तथा जिनके पेट में कब्ज और गड़बड़ी रहती है, उनके लिए इस औषधि को 30 क्रम में देना अच्छा रहा है. यदि बारंबार पाखाने की हाजत हो, परन्तु हर बार थोड़ा पाखाना ही हो तथा पेट भली-भांति साफ न हो, बार-बार पाखाना हो जाने पर ही कुछ आराम का अनुभव होता हैं – ऐसे विशेष लक्षणों में ही इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए. यदि दस्त की हाजत बिल्कुल न हो तो इसे नहीं देना चाहिए. डॉ० कार्टियर के मतानुसार कब्ज दूर करने के लिए ‘नक्स’ को निम्नक्रम में तथा बार-बार देना वर्जित है. इसका प्रयोग उच्च-शक्ति में ही करना चाहिए.
मर्क-डलसिस 1x वि० – यदि पाखाना न आता हो तथा उसे लाना आवश्यक हो तो इस औषधि को 2 से 3 ग्रेन की मात्रा में हर एक घंटे बाद देते रहने से पाखाना आकर पेट साफ हो जाता है, परन्तु इसे उचित होमियो-चिकित्सा नहीं माना जाता है.
ब्रायोनिया 6, 30, 200- सिरदर्द, यकित में दर्द, सिहरन का अनुभव, वात से उत्पन्न कब्ज, गर्भावस्था एवं गर्मी के दिनों का कब्ज, बच्चों का कब्ज, सूखा-बड़ा-लंबा लेंड़ एवं आंतों का काम न करना – आदि लक्षणों में यह दवा कारगर है. इस औषधु का रोगी गरम प्रकृति का होने के कारण सूर्य की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर पाता. नक्स तथा ब्रायोनिया में यह अंतर है कि पाखाने की बारंबार हाजत होना नक्स का लक्षण है तथा पाखाने की हाजत न होना ब्रायोनिया का लक्षण है.
ग्रैफाइटिस 6, 30- यदि मल बड़ा तथा निकलने में कष्ट देता हो तो इस दवा को दिन में दो बार के हिसाब से कई महीने सेवन करते रहना चाहिए. महिलाओं के मासिक धर्म में विलंब होने के साथ ही लंबा, गांठों अथवा गोलियों वाला मल हो तथा उस पर आंव चिपकी हो, जो कठिनाई से निकले तथा कई दिनों तक पाखाना न आता हो, तो इस औषधि का उपयोग लाभकारी है
प्लम्बम 6- कब्ज के साथ शूल-वेदना हो तो इसका प्रयोग हितकर है.
ओपियम 30, 200- सिर में भारीपन, सिर में चक्कर आना, लगातार तंद्रा की स्थिति, चेहरे का लाल पड़ जाना, पेशाब कम मात्रा में होना, कुछ दिनों तक लगातार कोठा साफ न होना, आंखों का खुश्क होना, छोटी-छोटी कठोर काली तथा कठोर गोलियों की तरह मल निकले तो ये दवा फायदेमंद है.
हाईड्रैस्टिस Q, 2x,30- डॉ आर ह्यूजेज के मुताबिक कब्ज के लिए यह औषधि नक्स से भी अधिक लाभकारी है. सुबह नाश्ते से पूर्व इस दवा के मूल अर्क को 1बूंद की मात्रा में कई दिनों तक सेवन कीजिए, तो कब्ज में निश्चित लाभ होगा. यदि रोगी को केवल कब्ज की ही शिकायत हो, तो नक्स की अपेक्षा इसे देना अधिक अच्छा है. 2x शक्ति में भी यह औषधि बहुत लाभ करती है.
सल्फर 30- बार-बार पाखाना करने जाना, पेट का पूरी तरह साफ न होना, गुदा द्वार में भारीपन और गर्मी लगना, खुलजी या अन्य तरह का चर्म रोग हो, बेहोशी आती हो तथा अत्यधिक कमजोरी महसूस होती है, तो यह दवा अत्यंत गुणकारी है.
सीपिया 30, 200- मल-द्वार में दर्द, पाखाना होने के बाद गुदा में डाट सी लगी हुई अनुभव होना तथा मुलायम टट्टी का भी कठिनाई से निकलना आदि लक्षणों में यह दवा लाभ करती है. किंतु ध्यान रहे यह दवा स्त्रियों के कब्ज में ज्यादा फायदा पहुंचाती है क्योंकि इसके कब्ज में जरायु संबंधी कई रोग भी शामिल होते हैं.
मैग्नेशिया-म्यूर 30- यह औषधि बच्चों के दांत निकलते समय कब्ज में हितकर है. बच्चों का बकरी के मैंगनी के समान बहुत थोड़ी टट्टी करना, जो कि गुदा के किनारे पर आकर टूट-टूट कर गिरती हो, तो यह दवा लाभ करती है. बड़े लोगों में ऐसी कब्ज प्रायः जिगर के रोगियों को होती है.
एल्युमिना 30, 200- बहुत तेज कब्ज, पाखाना जाने की इच्छा न होना, कई दिनों के बाद पाखाने के लिए जाना, पाखाना निकालने के लिए गुदा पर बहुत जोर लगाना तथा कांखना, नरम टट्टी का भी सरलता से न निकलना, सख्त, सूखी, छोटी तथा बकरी की लेंड़ी  के समान लाल, काली, काली एवं खुश्क टट्टी होना, जिसे निकालने के लिए गुदा में अंगुली डालनी पड़े- इन लक्षणों में यह औषधि विशेष लाभ करती है. इस तरह के कब्ज का मरीज आलू को हजम नहीं कर पाता.
एलू 30- एल्युमिना से विपरीत लक्षणों में यह औषधि लाभ करती है. हर समय टट्टी की हाजत बने रहना तथा अनजाने में ही सख्त टट्टी का निकल जाना- जैसे लक्षणों में इसका प्रयोग करना चाहिए
फास्फोरस 3, 30- खूब संकरा तथा लंबा लेड़ निकलने के लक्षण में यह लाभकारी है.
नेट्रम-म्यूर 12X वि 200- यह भी कब्ज की उत्तम दवा है. लगातार पाखाना लगना, परन्तु कोठे का साफ न होना, बड़ा तथा मोटा लेंड़ अत्यंत कष्ट से निकलना तथा थोड़ा सा पतला पाखाना भी होना, तलपेट में दबाव, सिर में भारीपन तथा अरुचि के लक्षणों में यह फायदेमंद है.  
लाइकोपोडियम 30- मुंह में पानी भर आना, पाखाने की हाजत होते हुए भी पाखाना न होना तथा बड़े कष्ट से सूखा तथा कड़ा मल थोड़ी मात्रा में निकलना, पेट में आवाज होना, पेट का फूल जाना तथा पेट में गर्मी का अनुभव होना आदि लक्षणों में लाभकारी है.

यहां हम कुछ होम्योपैथिक दवाइयां कब्ज के उपचार के और बता रहे हैं, जो लाभकारी होती है…
गरिकस ( Agaricus), ऐथूसा (Aethusa), अलुमन (Alumen), एलुमिना (Alumina),
ब्रयोनिआ अलबा (Bryonia alba),  एलो सोकोट्रिना (Aloe socotrina), ऐन्टिम क्रूड (Antim crude), असफ़ोइतिदा (Asafoitida),बाप्टेसिआ (Baptesia), कालकरिअ कार्ब (Calcaria carb), चाइना (China),
कोलिन्सोनिआ (Collinsonia), ग्रैफाइटिस (Graphites).
कौन-सी होमियोपैथ दवा किस तरह के कब्ज में फायदेमंद
1.बच्चों का मलावरोध : अल्युमिना 30,नक्सवोमिका 200,ब्रायोनिया – 30
2. रेचक या दस्तावर औषधियां : हाइड्रास्टिस 30,नक्सवोम 200 के दुरुपयोग के बाद कब्ज
3. अधिक खाने वालों का कब्ज : नक्स वोम, सल्फर
4. बैठे रहने की आदत के कारण मलावरोध : अलेट्रिस, कॉलिन्सोनिया, नक्सवोभिका (लगातार कई घंटों तक बैठना)
5. गर्भावस्था के दौरान कब्ज : सीपिया 30, पोडो 30
6. वृद्धावस्था में कब्ज : प्लाटि., एल्युमिना, ओपियम, ऐवेना
7. यात्रियों का कब्ज : एल्यु., हाइड्रास्टिस, नक्स वोम
8. आंतों और मलाशय की दुर्बलता के कारण कब्ज, दर्द निवारक और अन्य आंतों की दुर्बलता : इस्क्युलस 30, एलोज 30, अल्फा Q + , एवेना Q + अलेट्रिस Q 10-15 बूंद  सुबह-शाम एलोपैथिक औषधियों के सेवन से उत्पन्न भोजन के बाद.
9. बवासीर के कारण कब्ज : जो एंटासिड इस्क्यूलस, कॉलिंसोनिया आदि औषधियों के सेवन से उत्पन्न हुआ है.
10. नर्वस, संवेगशील दुर्बल एवं अम्लीय मनोवृति के कारण उत्पन्न मलावरोध : अंब्रा 30 और अर्जेटम नाइट्रिक 30 पर्यायक्रम से दिन में 2-3 बार
11. वर्षों से चला आ रहा जीर्णकालिक कब्ज (जल्दी थक अवसाद मानों मल आंतों के निचले भाग में जा रहा है, भोजन के बाद. आंतों की दुर्बल क्रमाकुचन (पेरिस्टालसिस) क्रिया : हाइड्रास्टिस 30, अलेट्रिस Q सुबह शाम.

हमने ऐसे किया इलाज, आइए जानें

हरिओम होमियो से कब्ज के हजारों मरीज अब तक ठीक हुए होंगे, लेकिन यहां मैं एक बड़े अफसर का विवरण दे रहा हूं, जो कई वर्षों से कब्ज से पीड़ित थे. उन्होंने एलोपैथी से लेकर आयुर्वेदिक यहां तक कि त्रिफला चूर्ण आदि का भरपूर सेवन किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. थक-हार कर अंततः मेरे पास आये तो मैंने उनके जिद्दी कब्ज को काफी जांचने-परखने के बाद इन दवाओं से ठीक किया.
मैंने उन्हें लाइकोपोडियम 200 एक दिन का अंतर देकर, हाइड्रास्टिस Q 5 बूंद सुबह-शाम भोजन के बाद दिया. इसके साथ रोग के स्थायी निवारण के लिए मुझे सल्फर 200 सप्ताह में एक खुराक देना पड़ा. करीब एक महीने के इलाज के बाद ही उनका जिद्दी कब्ज ऐसा भागा कि आज तक वो पूरी तरह स्वस्थ हैं.

matke ka panee

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एलर्जी का होमियोपैथिक उपचार

होमियोपैथिक औषधियों से लक्षणों की समानता के आधार पर अनेकानेक औषधियां प्रभावकारी रहती हैं.
  • खाद्य पदार्थों से एलर्जी होने पर ‘आर्सेनिक’ 30 शक्ति में व ‘नक्सवोमिका’ 30 शक्ति में.
  • तम्बाकू व धुएं से एलर्जी होने पर ‘इग्नेशिया’ 30 या 200 शक्ति में.
  • धूल से एलर्जी होने पर ‘ब्रोमीन’ 30 शक्ति में.
  • अत्यधिक छींक आने पर नाक टपकने पर ‘नेट्रमम्यूर’ 200 की एक खुराक व ‘एलियम सीपा’ 30 शक्ति में.
  • चेहरा लाल पड़ने पर ‘बेलाडोना’ 30 शक्ति में.
  • कीट-पतंगों से एलजीं होने पर ‘एपिस’ 30 शक्ति में.
  • शरीर पर पित्ती उछलने पर ‘डल्कामारा’ 30 शक्ति में .
  • सूजन आने पर ‘एपिस’ 30 शक्ति में.
  • शरीर पर चकत्ते पड़ने पर ‘आर्टिका यूरेंस’ औषधि मूल अर्क में लें. शैल फिश (एक प्रकार की मछली) खाने से होने वाली एलर्जी में भी यह लाभकारी है.

गुरुवार, 15 मार्च 2018

रसटॉक्स की तारीफ में पढ़ें डॉ अंजू कुमारी प्रसाद की ये कविता…

रसटॉक्स की तारीफ में पढ़ें डॉ अंजू कुमारी प्रसाद की ये कविता…
सुनो-सुनो रसटॉक्स की अद्भुत कहानी,
लगातार हरकत से आराम है, इनकी पहचान अपनी…
लेकिन प्रथम हरकत होती है कष्टकर,
विश्राम से भी रोग वृद्धि होती है भयंकर…
नमी, ठंड, सीलन से होती और बढ़ती बीमारी,
गर्म सेंक से आराम पाता रोगी का रोग बीमारी…
मन में घबराहट और बेचैनी लाती शाम और रात,
खुली हवा में घूमने से आराम की बनी थोड़ी बात…
घबराहट में रोने को है उनका दिन चाहता,
पुराने रसटॉक्स में है ना उमेदी और मानसिक दुर्बलता…
दिमागी परिश्रम में है बेचारा वह अयोग्य,
चाह आत्महत्या की पर साहस नहीं उसके योग्य…
बेचैनी ही उसे चैन दिलाये,
आराम इसे न बिलकुल भाये…
जीभ पर दिखा ज्योमितिक निशान,
अग्रभाग बना जीभ का बना लाल तिकोन…
मांसपेशियों में रहता है अकड़न,
अत्यधिक श्रम करता है रोग उत्पन्न…
मोच के अलावे मिल जाता है सुन्नपन,
पक्षाघात में भी दो यदि कारण सीलन…
हरपीस, जोस्टर, चर्मरोग, खुजली और पित्ती उछलना,
मुख के आसपास बुखार के छाले पड़ना…
इन सबको मिटा सकता है रसटॉक्स नामोनिशान,
यदि आप कर लोग, इसके माइंड की पहचान…

शनिवार, 10 मार्च 2018

आइए जानते हैं सफेद दाग के बारे में…

होमियोपैथी में इलाज
सफेद दाग के इलाज के लिए दो तरह की दवाएं होमियोपैथी में दी जाती हैं. सफेद दाग रोकने वाली और स्किन कलर वापस लाने वाली. इनमें भी खानेवाली और लगानेवाली, दो-दो अलग-अलग तरह की दवाएं दी जाती हैं. होमियोपैथी में सफेद का दाग का सबसे बेहतर इलाज उपलब्ध है. हां, इसमें समय लगता है. शुरुआती कुछ दिनों में दवा के असर से पता चल जाता है कि मरीज को ठीक होने में कितना समय लगेगा. याद रहे होमियोपैथी में इम्युन सिस्टम को मॉडरेट करने की दवाएं दी जाती हैं. बीमारी की वजह जानकर उसके मुताबिक दवाएं दी जाती हैं. एक चीज बताऊं, मैं तो सफेद दाग के मरीजों को होमियोपैथी दवाओं के साथ-साथ घरेलू उपचार भी बताता हूं. होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति में सफेद दाग के मरीजों को प्रायः ये दवाएं दी जाती हैं.
एक बात और ध्यान रखें- अगर सफेद दाग आटो-इम्यून डिसआर्डर (Auto- immune disorders) की वजह से हुआ है, तो शऱीर की बीमारी से लड़ने की क्षमता बढ़ा कर इलाज शुरू करना चाहिए. आटो इम्यून डिसआर्डर के कई कारणों में से एक स्ट्रेस और इमोशनल सेट बैक (Emotional set back) भी हो सकता है. इसके लिये जो दवाइयां हम देते हैं, वे इस प्रकार हैं…
1-इग्नेशिया-30 (Ignatia-30)
2- नेट्रम म्यूर-30 (Natrum mur-30
3- पल्सेटिल्ला-30 (Pulsatilla-30)
4- नक्स वोमिका-30 (Nux vomica-30) (खासतौर से स्ट्रेस की वजह से सफेद दाग पनपने पर)
अगर केमिकल एक्सपोजर से सफेद दाग हुआ है, तो ये दवाइयां देते हैं..
1-सल्फर-30 (Sulphar-3)
2-आर्सेनिक अल्बम-30 (Arsenic album-30)
अगर जेनेटिक या वंशानुगत कारणों से हुआ है, तो दवा आजमाएं
1-सिफलिनम-200 (Syphllinum-200), 
2-आर्सेनिक सल्फ फ्लेवम-6 (arsenic sulph flevum-6) 
3-फॉस्फोरस-30 (phosphorus-30), मर्क सोल (merc sol) आदि. 
कोई दवा डॉक्टर बीमारी वजह जानकर उसके मुताबिक ही देते हैं. हम भी सफेद दाग के मामले पूरी हिस्ट्री जांचने के बाद दवाएं घटाते-बढ़ाते हैं.
क्या हैं कारण
शरीर की इम्युनिटी खराब होने के कारण त्वचा का रंग बनाने वाली कोशिकाएं धीरे-धीरे मरने लगती हैं, जिससे शरीर पर छोटे-छोटे दाग पड़ने लगते हैं. 
  • लिवर रोग की वजह से सफेद दाग रोग हो सकते हैं.
  • शरीर में कैल्शियम की कमी से.
  • पाचन तंत्र लगातार खराब रहने से.
  • आनुवाशिंक (फैमिली हिस्ट्री यानी अगर माता-पिता सफेद दाग से पीड़त रहे हैं, तो बच्चों में इसके होने की आशंका रहती है). हालांकि ऐसा सबके साथ नहीं होता. 
  • एलोपेशिया एरियाटा (Alopecia Areata) यानी वह बीमारी, जिसमें छोटे-छोटे गोले के रूप में शरीर से बाल गायब होने लगते हैं.
  • सफेद दाग मस्से या बर्थ मार्क (Halo Nevus) से. मस्सा या बर्थ मार्क बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ आस-पास की त्वचा का रंग बदलना शुरू कर देता है.
  •  केमिकल ल्यूकोडर्मा (Chemical Leucoderma) यानी खराब क्वालिटी की चिपकाने वाली बिंदी या खराब प्लास्टिक की चप्पल आदि इस्तेमाल करने से.
  • ज्यादा केमिकल एक्सपोजर यानी प्लास्टिक, रबर या केमिकल फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों को खतरा ज्यादा. कीमोथेरेपी से भी इसकी आशंका रहती है.
  • थॉयराइड संबंधी बीमारी होने पर.
  • पेट संबंधी बीमारियों की वजह से.
  • कैल्शियम की कमी से भी सफेद हो सकता है.
  • जलने या चोट लगने का दाग भी कभी-कभी सफेद होकर सफेद दाग बन जाता है.
  • अत्यधिक चिंता-तनाव अथवा विपरीत भोजन की वजह (जैसे मछली के साथ दूध का सेवन) से भी सफेद दाग की संभावना बढ़ जाती है.
कैसे करें पहचान

मंगलवार, 6 मार्च 2018

अनार के फायदे(Pomegranate benefits)

अनार के फायदे(Pomegranate benefits)कृपया जनहित में शेयर करें व पुन्‍य के भागी बने डॉ जितेंद्र गिल सदस्य भारतीय चिकित्सा परिषद्! 1. नाक से खून आना या नकसीर :
अनार के रस को नाक में डालने से नाक से खून आना बंद हो जाता है।
अनार के फूल और दूर्वा (दूब नामक घास) के मूल रस को निकालकर नाक में डालने और तालु पर लगाने से गर्मी के कारण नाक से निकलने वाले खून का बहाव तत्काल बंद हो जाता है।
100 ग्राम अनार की हरी पत्तियां, 50 ग्राम गेंदे की पत्तियां, 100 ग्राम हरा धनिया और 100 ग्राम हरी दूब (घास) को एक साथ पीसकर पानी में मिलाकर शर्बत बना लें। इस शर्बत को दिन में 4 बार पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
100 मिलीलीटर अनार का रस नकसीर (नाक से खून बहना) के रोगी को कुछ दिनों तक लगातार पिलाने से लाभ होता है।
आधे कप खट्टे-मीठे अनार के रस में 2 चम्मच मिश्री मिलाकर रोजाना दोपहर के समय पीने से गर्मी के मौसम की नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
नथुनों में अनार का रस डालने से नाक से खून आना बंद हो जाता है। 7 दिन से अधिक रहने वाला बुखार, एपेन्डीसाइटिस में अनार लाभदायक है।
अनार की कली जो निकलते ही हवा के झोंकों से नीचे गिर पड़ती है, अतिसंकोचन और गीलेपन को दूर करने वाली होती है। इनका रस 1-2 बूंद नाक में टपकाने से या सुंघाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है। यह नकसीर के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि है।
अनार के छिलके को छुहारे के पानी के साथ पीसकर लेप करने से सूजन में तथा इसके सूखे महीन चूर्ण को नाक में टपकाने से नकसीर में लाभ होता है।
अनार के पत्तों के काढ़े को या 10 ग्राम रस पिलाने से तथा मस्तक पर लेप करने से नकसीर में लाभ होता है।
2. गर्मी के कारण नाक से खून आना : अनार के फूल और दूब की जड़ का रस निकालकर नाक में डालना चाहिए अथवा केवल अनार के फूल का रस नाक में डालना और मस्तिष्क पर लगाना चाहिए। इससे नाक से खून आना बंद हो जाता है।
3. पेशाब का अधिक मात्रा में आना (बहुमूत्र) :
1 चम्मच अनार के छिलकों का चूर्ण एक कप पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इससे बहुमूत्र का रोग नष्ट हो जाता है।
अनार के छिलकों को छाया में सुखाकर बारीक चूर्ण बना लें। 3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से बार-बार पेशाब जाने से छुटकारा मिलता है।
4. चेहरे का सौंदर्य :
गुलाब जल में अनार के छिलकों के बारीक चूर्ण को मिलाकर अच्छी तरह लेप बनाएं। इस लेप को सोते समय नियमित रूप से लगाकर सुबह चेहरा धो लें। इससे दाग के निशान, झांइयों के धब्बे दूर हो जाएंगे और चेहरे में चमक आ जायेगी।
अनार के ताजे हरे 100 मिलीलीटर पत्तों के रस को 1 किलो सरसों में मिला लेते हैं। चेहरे पर इस तेल की मालिश करने से चेहरे की कील, झांईयां और काले धब्बे नष्ट हो जाते हैं।
5. शरीर की गर्मी : अनार का रस पानी में मिलाकर पीने से गर्मी के दिनों में बढ़ी शरीर की गर्मी दूर होती है।
6. अजीर्ण :
3 चम्मच अनार के रस में 1 चम्मच जीरा और इतना ही गुड़ मिलाकर भोजन के बाद सेवन करने से अजीर्ण का रोग नष्ट हो जाता है।
छाया में सुखाया हुआ अनार के पत्ते का चूर्ण 40 ग्राम और सेंधानमक 10 ग्राम दोनों को महीन पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 4-4 ग्राम सुबह-शाम भोजन से पहले पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण दूर होता है।
अनार का रस, शहद और तिल का तेल समान मात्रा में लेकर, कुल मिश्रण 50 ग्राम की मात्रा में तैयार करते हैं। इसमें 6 ग्राम जीरा और 6 ग्राम खांड मिलाकर मुंह में भरे और थोड़ी देर तक मुंह को चलाते रहे। जब आंख नाक से पानी निकलने लगे तो कुल्ला कर दें और फिर दुबारा नया रस मुंह में भरें। दिन में 8-10 बार ऐसा करें। इसके अलावा जब बिल्कुल भूख न हो तथा यकृत में विकार हो तब उस अवस्था में भी लाभ होता है।
खट्टे मीठे अनार का रस 1 ग्राम मुंह में भरकर धीरे-धीरे चलाकर पीयें। इस प्रकार 8 या 10 बार करने से मुंह का स्वाद सुधरकर आंत्रदोषों (आंतों के विकारों) का पाचन होता है तथा बुखार के कारण से हुई अरुचि भी दूर होती है।
मीठे अनार के रस में शहद मिलाकर पिलाने से अरुचि में लाभ होता है।
7. दांत से खून आना : अनार के फूल छाया में सुखाकर बारीक पीस लेते हैं। इसे मंजन की तरह दिन में 2 या 3 बार दांतों में मलने से दांतों से खून आना बंद होकर दांत मजबूत हो जाते हैं।
8. उल्टी :
अनार के बीज को पीसकर उसमें थोड़ी-सी कालीमिर्च और नमक मिलाकर खाने से पित्त की वमन और घबराहट में आराम मिलता है।
अनार का रस पीने से गर्भवती स्त्रियों की वमन विकृति (उल्टी) नष्ट होती है।
अनार के रस में शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाता है।
सूखे अनारदाने को पानी में भिगो दें। थोड़ी देर के बाद इस पानी को पीने से उल्टी आने के रोग मे लाभ होता है।
खट्टे-मीठे अनार के 200 मिलीलीटर रस में 25 ग्राम मुरमुरे का आटा और 25 ग्राम शर्करा मिलाकर सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है। इसके प्रयोग से शारीरिक गर्मी भी दूर होती है और पित्तज्वर को शांत करने हेतु भी यह प्रयोग गुणकारी है। लू लगने से आए हुए बुखार की जलन, व्याकुलता, उल्टी और प्यास भी इसके सेवन से मिट जाता है।
9. बच्चों की खांसी : बच्चों को खांसी होने पर अनार की छाल खाने के लिए देनी चाहिए अथवा अनार के रस में घी, शक्कर, इलायची और बादाम मिलाकर देना चाहिए।
10. बच्चों की दस्त एवं पेचिश : बच्चों को दस्त या पेचिश की शिकायत होने पर अनार की छाल को घिसकर पिलाने से लाभ मिलता है।
11. पेट के कीड़े :
अनार की जड़ और तने की छाल का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए अथवा अनार की छाल के काढ़े में तिल का तेल मिलाकर 3 दिन तक पिलाना चाहिए। इससे पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
यदि कद्दू दाना कृमि ही हो तो 50 ग्राम अनार के जड़ की छाल दरदरा कूटकर 2 लीटर पानी में उबालते हैं जब आधा पानी शेष बचे तो इसे उतार लें। इसके बाद 50 ग्राम सुबह खाली पेट, आधा-आधा घंटे के अंतर से 4 बार सेवन करें। फिर एक बार एरंड तेल का सेवन करें। बालकों को काढे़ की 10 मिलीलीटर तक की मात्रा देनी चाहिए।
छाया में सुखाये हुए अनार के पत्तों को बारीक पीस छानकर 6 ग्राम की मात्रा में सुबह गाय की छाछ के साथ या ताजे पानी के साथ प्रयोग करें। इससे पेट के सभी कीड़े दूर हो जाते हैं।
अनार की जड़ की छाल 10 ग्राम, वायबिडंग और इन्द्रजौ 6-6 ग्राम कूटकर काढ़ा तैयार कर लेते हैं। इसके बाद काढ़े का सेवन करने से पेट के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
खट्टे अनार के छिलके और शहतूत की 20-20 ग्राम मात्रा को 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
अनार के पेड़ की जड़ की तरोताजा छाल 50 ग्राम लेकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर लें। इसमें पलास बीज का चूर्ण 5 ग्राम, बायविडंग 10 ग्राम को एक लीटर पानी में उबालें। आधा पानी शेष रहने तक उसे उबालते रहें। उसके बाद नीचे उतारकर ठंडा होने पर छान लें। यह जल दिन में चार बार आधा-आधा घंटे के अन्तराल पर 50-50 ग्राम की मात्रा में पिलाने से और बाद में एरंड तेल का जुलाब देने से सभी प्रकार के पेट के कीड़े निकल जाते हैं।
अनार के सूखे छिलकों का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करें। इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। यही प्रयोग खूनी दस्त, खूनी बवासीर, स्वप्नदोष, अत्यधिक मासिकस्राव में भी लाभकारी होता है।
अनार के फल की छाल को उतार लें, फिर इससे काढ़ा बनाकर उसमें 1 ग्राम तिल का तेल मिलाकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
अनार की जड़ की छाल, पलास बीज और वायविंडग को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ को शहद के साथ पीने से पेट के अंदर के सूती, चपटे और गोल आदि कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकाल जाते हैं।
अनार की जड़ के काढ़े में मीठे तेल को मिलाकर 3 दिन तक सेवन करने से आंतों के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
50 ग्राम अनार की जड़ की छाल को 250 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, जब पानी 100 ग्राम की मात्रा में बचे, तब इस बने काढे़ को दिन में 3-4 दिन बार पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
3 ग्राम अनार के छिलकों का चूर्ण दही या छाछ (मट्ठे) के साथ सेवन करें।
अनार की छाल को 24 घंटे पानी में भिगोकर रख दें, फिर उसी पानी को उबालकर खाली पेट सुबह पीने से पेट की फीताकृमि (कीड़) मर जाते हैं।
12. उष्णपित्त : शक्कर की चाशनी में अनार-दानों का रस डालकर कपडे़ से छान लें। आवश्यकता होने पर 20 ग्राम शर्बत, 20 मिलीलीटर पानी के साथ पी लें। इससे उष्णपित्त नष्ट हो जाता है।
13. नेत्र की गर्मी : अनार के दानों का रस आंख में डालना चाहिए। इससे आंखों की गर्मी नष्ट हो जाती है।
14. छाती का दर्द :
अनार के दानों के रस में एक ग्राम सोनामक्खी का चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए। इससे छाती का दर्द नष्ट हो जाता है।
अनार के दानों का रस 10 मिलीलीटर में इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर पीने से हृदय को लाभ होता है तथा छाती का दर्द भी दूर होता है। छाती के दर्द में अनार के दानों के रस में 1 ग्राम सोनामुखी का चूर्ण डालकर पीना भी छाती के दर्द में लाभकारी होता है।
15. पित्त-रोग : पके हुए अनार के रस में शक्कर मिलाकर पीना चाहिए। इससे पित्त का रोग नष्ट हो जाता है।
16. रक्तातिसार (दस्त में खून का आना) : अनार की छाल और कुरैया (इन्द्रजव) की छाल का काढ़ा शहद के साथ पीने से रक्तातिसार नष्ट हो जाता है।
17. अनार पाक : धनिया, सोंठ, नागरमोथा, खस, बेल का गूदा, आंवले, कुरैया की छाल, जायफल, अतिविषा, खैर की छाल, अजमोदा, एरंड की जड़, जीरा, लौंग, पीपल, कर्कटश्रृंगी, खुरासानी अजवाइन, धाय के फूल और लोघ्रा सभी को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण कर लेते हैं और अनार में भरकर आटे से बंद कर दे और चूल्हे में सेंककर आटा निकाल दें। इसके बाद सभी को मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खाने से अतिसार (दस्त), संग्रहणी (ऑव रक्त) का आना, मंदाग्नि (अपच), अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना) और दर्द का नाश होता है।
18. अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना) :
अनार के दाने चबाकर उनका रस निगलने से अरुचि नष्ट हो जाती है।
कालीमिर्च आधा चम्मच, सेंका हुआ जीरा 1 चम्मच, सेंकी हुई हींग चने की दाल के बराबर, सेंधानमक स्वादानुसार, अनारदाना 70 ग्राम इन सबको पीस लें। यह स्वादिष्ट अनारदाने का चूर्ण बन जाएगा। इसके खाने से अरुचि नष्ट हो जाती है और मन प्रसन्न हो जाता है।
14 मिलीलीटर अनार के रस में 1 ग्राम कालानमक मिलाकर अथवा भुना जीरा मिलाकर शहद या चीनी के साथ सेवन करें। इससे अजीर्ण और अरुचि नष्ट हो जाती है।
19. प्यास :
अधिक प्यास की शिकायत होने पर अनारदाने खाने चाहिए अथवा उनका रस निकालकर तुरन्त ही थोड़ा-थोड़ा पीना चाहिए।
60 ग्राम अनारदाने को 2 लीटर पानी में डालकर मिट्टी के बर्तन में भिगो दें। 2 से 3 घंटे बाद थोड़े-थोड़े पानी में मिश्री मिलाकर पिलाने से प्यास और गले की जलन मिट जाती है।
20. बुखार से या किसी भी कारण से मुख की अरुचि : पके हुए अनार के 10 ग्राम रस में 7 ग्राम शहद और 4 ग्राम गाय का घी मिलाकर सुबह-शाम देना चाहिए। दूसरी किसी औषधि का बार-बार सेवन करने से जी घबड़ा जाता है, पर इस औषधि से ऐसा नहीं होता, बल्कि इसे बार-बार खाने की इच्छा होती है।
21. अतिसार :
10 ग्राम अनार की छाल, 10 ग्राम पुराना गुड़ और 5 ग्राम जीरा मिलाकर देना चाहिए। इससे 1-2 दिन में ही अतिसार में लाभ होता है।
3-6 ग्राम अनार के जड़ की छाल या अनार के छिलके का चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार देना चाहिए। इससे अतिसार नष्ट हो जाता है।
लगभग 14-28 मिलीलीटर अनार के छिलके तथा कोरैया की छाल का काढ़ा दिन में 2 बार सेवन करने से अतिसार नष्ट हो जाता है।
अनार फल के छिलके के 2-3 ग्राम चूर्ण का सुबह-शाम ताजे पानी के साथ प्रयोग करने से अतिसार तथा आमातिसार में लाभ होता है।
अनार की ताजी कलियों के साथ छोटी इलायची के बीज और मस्तंगी को पीसकर शक्कर मिलाकर अवलेह तैयार कर लें, इसे चटाने से बालकों के पुराने अतिसार और प्रवाहिका में विशेष लाभ होता है।
अनार को छिलके सहित कूटकर रस निचोड़कर 30-50 मिलीलीटर तक पिलायें। इसमें शक्कर मिलाकर पिलाने से पित्त के कारण होने वाली उल्टी, खुजली और थकान में लाभ होता है।
अनार का छिलका 20 ग्राम को 1 लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने काढ़े को छानकर पीने से अतिसार (दस्त, पतली ट्टटी लगना) में खून का आना बंद हो जाता है।
अनार के पत्तों को पानी में पीसकर लेने से अतिसार में लाभ मिलता है।
अनार की कली 1 ग्राम, बबूल की हरी पत्ती 1 ग्राम, देशी घी में भुनी हुई सौंफ 1 ग्राम, खसखस या पोस्त के दानों की राख आदि 3 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में 1 दिन में सुबह, दोपहर और शाम को मां के दूध के साथ पीने से बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है।
अनार के छिलके 50 ग्राम को लगभग 1.2 मिलीलीटर दूध की मात्रा में डालकर धीमी आग पर रख दें, जब दूध 800 मिलीलीटर बच जाये इसे एक दिन में 3 से 4 बार खुराक के रूप में पीने से अतिसार यानी दस्त समाप्त हो जाते हैं।
अनार की छाल का काढ़ा बनाकर 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन करने से लाभ मिलता है।
अनार के फल, सौंफ, सोंठ, आम की गुठली यानी गिरी, खसखस की डोडी और भुना हुआ सफेद जीरा को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, इस बने चूर्ण को लगभग 5 ग्राम की मात्रा में लेकर 10 ग्राम मिश्री के साथ हर 2 घंटे के बाद खाकर ताजा पानी को पीने से अतिसार यानी दस्त की बीमारी से रोगी को छुटकारा मिलता है।
अनार की छाल का 100 ग्राम चूर्ण, 50 ग्राम जीरा, 3 ग्राम सेंधानमक को बारीक पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में चूर्ण को लेकर 1 दिन में सुबह, दोपहर और शाम को पीने से पतले दस्तों का आना बंद हो जाता है।
अनार के फल के छिलकों को उतारकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, इसी बने चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लगभग 400 मिलीलीटर पानी में, 2 लौंग को डालकर अच्छी तरह से उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से पेट में होने वाली मरोड़ या ऐंठन और दस्त बंद हो जाते हैं।
अनार के रस को लगभग 2 से 3 ग्राम की मात्रा में 4 या कुछ दिनों तक पीने से अतिसार का आना रुक जाता है।
अनार के छिलकों को सुखाकर 15 ग्राम की मात्रा में लेकर 2 लौंग को डालकर पीसकर 1 गिलास पानी में डालकर उबाल लें, जब पानी आधा रह जाये तब इसका सेवन 1 दिन में लगभग 3-3 घंटे के बाद पिलाने से दस्त, पेचिश और पेट में से मल के द्वारा आने वाली आंव समाप्त हो जाती है।
22. अजीर्ण से उत्पन्न अतिसार : आधा ग्राम अनार की छाल का चूर्ण, आधा ग्राम जायफल और 1 ग्राम का चौथा भाग केसर को मिलाकर उसका चूर्ण बनाकर शहद के साथ देना चाहिए। इससे एक ही बार में लाभ होगा। यदि न हो, तो दुबारा देना चाहिए।
23. पाण्डुरोग (पीलिया) :
अच्छे अनार के 20 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम देना चाहिए। इससे थोड़े दिनों में ही पीलिया ठीक हो जाता है।
अनार खाने और रस पीने से शारीरिक कमजोरी नष्ट होती है और खून की कमी (एनीमिया) के रोग से मुक्ति मिलती है।
50 मिलीलीटर अनार के रस में रात को साफ लोहे का टुकड़ा डुबो दें। सुबह लोहे का टुकड़ा निकालकर, छानकर स्वादानुसार मिश्री और 25 मिलीलीटर पानी मिलाकर पी जायें। इससे पीलिया में लाभ होगा।
लगभग 250 मिलीलीटर उत्तम अनार के रस में 750 ग्राम चीनी मिलाकर चाशनी बना लें। इसका सेवन दिन में 3 या 4 बार करने से पीलिया रोग दूर हो जाता है।
छाया में सुखाए हुए अनार के पत्ते के महीन चूर्ण की 6 ग्राम मात्रा को सुबह गाय की छाछ तथा शाम को उसी छाछ के पनीर के साथ सेवन कराने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
अनार का रस मल बंध की शिकायत दूर करता है और पीलिया रोग में फायदा करता है।
24. क्षय (टी.बी) के रोग :
पके हुए स्वादिष्ट अनार के 200 मिलीलीटर रस में 40 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण, 40 ग्राम जीरे का चूर्ण, 40 ग्राम सोंठ का चूर्ण, 40 ग्राम दालचीनी का चूर्ण और 10 ग्राम शुद्ध केसर डालकर 200 ग्राम उत्तम पुराना गुड़ मिलाएं, फिर सबको एकत्र करके जलाकर उसमें 10 ग्राम इलायची का चूर्ण डालें और 5-5 ग्राम वजन की गोलियां बनाएं फिर रोज सुबह-शाम 250 मिलीलीटर दूध के साथ अपनी पाचन शक्ति के अनुसार लेना चाहिए। इससे टी.बी का रोग नष्ट हो जाता है।
अनार के 200 मिलीलीटर स्वादिष्ट रस में पीपल, सफेद जीरा, सोंठ और दालचीनी का चूर्ण 40-40 ग्राम, उत्तम केशर 10 ग्राम, पुराना गुड़ 200 ग्राम, हल्की आंच पर पकायें, जब गोली बनने योग्य गाढ़ा हो जाये, तो नीचे उतारकर 10 ग्राम छोटी इलायची का चूर्ण डालकर 6-6 ग्राम की गोलियां बनाकर, सुबह-शाम 1-1 गोली बकरी के दूध के साथ सेवन करें।
यदि कमजोरी अधिक हो, परन्तु दस्त और खांसी न हो तो, ताजे अनार का रस जितना पी सकें पिलायें। इससे टी.बी का रोग नष्ट हो जाता है।
यदि खांसी हो तो अनार का रस 2-2 चम्मच दिन में 3-4 बार पिलायें।
25. अधिक बोलने से स्वर बिगड़ने पर : अच्छा पका हुआ एक अनार रोज खाना चाहिए। इससे गले की बिगड़ी हुई आवाज कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है।
26. आंख की फूली (गुहेरी) :
अनार का फल जो अच्छी तरह पका हो, उसकी छाल को पके हुए अनार फल के रस में घिसे। फिर इसे लाल घोंगची के ऊपर के छिलके निकालकर घिसना चाहिए और आंख की फूली पर अंजन करना चाहिए।
अनार का फल जो अच्छी तरह पका हो, उसकी छाल को पके हुए अनार फल के रस में घिसे। फिर इसमें एक या दो लाल गुंजा का छिलका निकालकर घिसें। इसे फूली पर दिन में तीन बार लगावें।
27. कोढ़ के घाव, :
अनार के पत्तों को पीसकर लगाने से कोढ़ के जख्म, दाद और बर्र या बिच्छू दंश आदि में लाभ होता है।
अनार के पत्तों को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर 6 ग्राम से 10 ग्राम तक रोजाना पानी के साथ खाने से सफेद कोढ़ ठीक हो जाता है।
28. हिस्टीरिया, पागलपन : 15 अनार के पत्ते, 15 ग्राम गुलाब के ताजे फूल 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। चौथाई पानी शेष रहने पर छानकर 20 ग्राम देशी घी मिलाकर रोजाना पीने से हिस्टीरिया और पागलपन के दौरों में लाभ होता है।
29. गर्भस्राव : लगभग 100 ग्राम अनार के ताजा पत्तों को पीसकर पानी में छानकर पिलाने से और पत्तों का रस पेडू पर लेप करने से गर्भस्राव रुक जाता है।
30. अत्यधिक मासिक स्राव (अत्यार्तव) : अनार के सूखे छिलके पीसकर छान लें। इस चूर्ण को 1 चम्मच भर की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से रक्तस्राव बंद हो जाता है। नोट : शरीर के किसी भी भाग से खून निकल रहा हो, उसे रोकने में भी इस विधि का उपयोग किया जा सकता है।
31. मुंह की दुर्गन्ध : मुंह से दुर्गन्ध आती हो अथवा मुंह से पानी आता हो तो 4 ग्राम अनार के पिसे हुए छिलकों को सुबह-शाम ताजा पानी से लेने तथा छिलका उबालकर कुल्ले करने से लाभ होता है।
32. खांसीनाशक गोलियां : 80 ग्राम अनार का छिलका 10 ग्राम सेंधानमक में थोड़ा पानी डालकर गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली दिन में 3 बार चूसने से खांसी ठीक हो जाती है।
33. खूनी बवासीर :
खूनी बवासीर में सुबह-शाम अनार के पिसे छिलके के चूर्ण को 8 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी से फंकी लेना चाहिए। इससे खूनी बवासीर नष्ट हो जाता है।
12 ग्राम अनार के फल के छिलके का चूर्ण समान मात्रा में चीनी के साथ दिन में 2 बार दें। इससे खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
10 मिलीलीटर अनार के रस को मिसरी के साथ दिन में सुबह-शाम 2 बार लेना चाहिए। इससे खूनी बवासीर नष्ट हो जाती है।
10 ग्राम अनार के सूखे छिलकों के चूर्ण को बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर दिन में 2 बार लेना चाहिए। इससे खूनी बवासीर नष्ट हो जाती है।
मीठे अनार का छिलका शीतल तथा खट्टे फल का छिलका शीतल रूक्ष होता है इसलिए यह अर्श (बवासीर) के लिए विशेष उपयोगी होता है।
अनार की जड़ के 100 मिलीलीटर काढे़ में 5 ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर दिन में 2-3 बार पीने से रक्तार्श यानी खूनी बवासीर में लाभ होता है।
अनार के पत्तों का लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग रस सुबह-शाम पीने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
अनार के 8-10 पत्तों को पीसकर टिकिया बनाकर गर्म घी में भूनकर बांधने से अर्श (बवासीर) के मस्सों में लाभ होता है।
34. कामशक्तिवर्धक : प्रतिदिन मीठा अनार खाने से पेट मुलायम रहता है तथा कामेन्द्रियों को बल मिलता है।
35. यकृत के रोग : यकृत रोगों में अनार का रस सेवन करना लाभकारी होता है।
36. क्षुधावर्द्धक (भूख बढ़ाने वाली) : कालीमिर्च आधा चम्मच, सिंका हुआ जीरा 1 चम्मच, सेंकी हुई हींग चने की दाल के बराबर, सेंधानमक स्वादानुसार, अनारदाना 70 ग्राम लें। इन सबको पीस लें। यह स्वादिष्ट अनारदाने का चूर्ण बन जाएगा। इसको खाने से अरुचि नष्ट हो जाती है तथा मन प्रसन्न रहता है।
37. गर्मी के मौसम में सिर दर्द होना : गर्मियों में सिर दर्द हो, लू लग जाए और आंखें लाल-लाल हो जाए तो अच्छे, पके अनार के दानों का रस निकालें। रस में डेढ़ गुनी शर्करा डालकर रस को उबालें और चासनी बनाकर शर्बत तैयार करें। उसमें 5 ग्राम केसर और 10 ग्राम इलायची दोनों का कपड़छन चूर्ण मिला लें। 20 से 25 मिलीलीटर शर्बत में उतना ही पानी मिलाकर पीने से उष्णपित्त में शीघ्र ही लाभ होता है। गर्मी के मौसम में मस्तिष्क को शांत रखने, आंखों की जलन मिटाने और धूप में घूमने के कारण आई हुई बेचैनी को दूर करने हेतु प्रयोग करें। यह शर्बत रुचिकर एवं पित्तशामक होता है।
38. पित्तप्रकोप : ताजे अनार के दानों का रस निकालकर उसमें मिश्री मिलाकर पीने से हर प्रकार का पित्तप्रकोप शांत हो जाता है।
39. दबी हुई आवाज के लिए : पका अनार खाने से दबी हुई गले की आवाज खुल जाती है।
40. हठीली खांसी : अनार की सूखी छाल पांच ग्राम बारीक पीसकर कपड़े से छानकर उसमें 0.10 ग्राम कपूर भी मिला लें। यह चूर्ण दिन में 2 बार पानी में मिलाकर पीने से भयंकर बिगड़ी हुई हठीली खांसी भी दूर हो जाती है।
41. गर्भवती स्त्री की शारीरिक शक्ति की वृद्धि हेतु :
अनार के पत्तों की चटनी, घिसा हुआ चंदन, थोड़ा-सा दही और शहद मिलाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भस्थ शिशु व गर्भवती स्त्री की बल वृद्धि होती है।
खट्टे-मीठे अनार के रस या शर्बत के सेवन से गर्भावस्था की उल्टी शांत हो जाती है तथा मीठे अनार के दाने खाने से गर्भवती स्त्री के कमजोर रहने वाले हृदय और शरीर में सुधार होता है तथा गर्भवती महिला की दुर्बलता भी दूर होती है।
42. नई पेचिश : अनार का छिलका 5 ग्राम, लौंग का अधकुटा चूर्ण लगभग 8 ग्राम और 500 मिलीलीटर पानी को ढंककर उबालें। 15 मिनट बाद इसे नीचे उतारकर ठंडा होने पर कपड़े से छान लें। यह जल दिन में 25 से 50 मिलीलीटर तक की मात्रा में सेवन कराने से नया अतिसार, नई पेचिश और आमातिसार की शिकायत दूर हो जाती है तथा आंते बलवान बनती हैं।
43. पेचिश : अनार का छिलका और इन्द्रजौ प्रत्येक 20-20 ग्राम लेकर उन्हें चार गुने पानी में मिलाकर चतुर्थांश काढ़ा तैयार कर लेते हैं। उसकी 3 खुराक बनाकर 1-1 मात्रा सुबह, दोपहर शाम दिन में 3 बार प्रयोग करने से 1-2 दिन में ही रक्तातिसार (पेचिश में खून गिरना) बंद होता है। यदि पेचिश के कष्ट के साथ पेट में दर्द भी हो तो काढे में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में अफीम भी मिला लें।
44. संग्रहणी :
कच्चे अनार के रस में माजूफल, लौंग और सोंठ को घिसकर शहद के साथ पीना चाहिए। यदि अनार न मिले तो अनार की छाल को घिसकर पिलाना चाहिए। इससे संग्रहणी नष्ट हो जाती है।
अनार के 50 मिलीलीटर रस में लौंग, सोंठ और जायफल का 3 ग्राम चूर्ण मिलाकर, शहद डालकर सेवन करने से संग्रहणी रोग नष्ट हो जाता है।
अनार के दानों को कूटकर रस निकाल लेते हैं। इसके बाद उसमें जायफल, लौंग और सोंठ का थोड़ा-सा चूर्ण और शहद मिलाकर पीने से संग्रहणी रोग मिटता है। सूखे अनार के छिलकों को पीसकर उसमें पानी मिलाकर पीने से भी संग्रहणी का रोग दूर हो जाता है।
10 ग्राम अनारदाना, 2 ग्राम सोंठ, 2 ग्राम कालीमिर्च, 5 ग्राम मिश्री आदि सभी को कूट-पीसकर कपड़छन कर लें। इस प्राप्त चूर्ण का सेवन करने से संग्रहणी अतिसार के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
20 से 40 मिलीलीटर अनार की छाल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से संग्रहणी अतिसार ठीक हो जाते हैं।
45. आंखों की थकावट : अनार के वृक्ष के पत्तों को पीसकर आंखें बंद करके उन पर यह लुग्दी बनाकर रखने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
46. आंखों की चिरमाहट : अनार के दानों का रस आंखों में डालने से आंखों की गर्मी दूर होती है।
47. स्त्रियों के स्तन को सुडौल, सख्त और आकर्षक करना :
एक तरोताजा अनार को पीस लें। इसे 200 या 250 मिलीलीटर सरसों के तेल में डालकर गर्म कर लें। इस तेल की मालिश नियमित रूप से स्तनों पर करते रहने से स्त्रियों के स्तन उन्नत, सुडौल, सख्त और सौंदर्ययुक्त बन जाता है।
अनार की छाल लगभग एक किलो और माजूफल 125 ग्राम को 2 लीटर पानी में डालकर पकायें जब पानी आधा बच जाये तब इसे छानकर रख लें, फिर इसी में 125 मिलीलीटर तिल्ली का तेल डालकर पकाकर स्तनों पर लेप करने से स्तन कठोर होते हैं।
48. हृदय के रोग :
अनार के ताजे पत्तों का रस 10 मिलीलीटर, 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पीने से हृदय की तेज धड़कन में बहुत लाभ होता है। इसे सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।
अनार का शर्बत 20-25 मिलीलीटर का नित्य सेवन करें। इससे हृदय के रोग नष्ट हो जाते हैं।
छाया में सुखाये हुए अनार के महीन पत्तों के चूर्ण को ताजे पानी के साथ सेवन करने से दाद, रक्तविकार (खून के रोग), कुष्ठ, प्रमेह (वीर्य विकार), दिल की धड़कन, नासूर, घाव, पित्तज्वर, वातकफज्वर में लाभ होता है।
49. मूत्राघात (पेशाब के साथ धातु का जाना) :
लगभग 50 ग्राम अनार के रस में छोटी इलायची के बीजों का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण आधा-आधा ग्राम मिलाकर पीने से मूत्राघात में बहुत लाभ होता है।
अनार के रस में छोटी इलायची के बीज और सोंठ का चूर्ण मिलाकर पिलाने से मूत्राघात में बहुत लाभ मिलता है।
अनार के पत्ते 10 ग्राम और हरा गोखरू 10 ग्राम दोनों को 150 मिलीलीटर पानी में पीस-छानकर सेवन करने से मूत्राघात की शिकायत दूर हो जाती है।
50. गर्भधारण की क्षमता में वृद्धि : अनार की ताजी, कोमल कलियां पीसकर पानी में मिलाकर, छानकर पीने से गर्भधारण की क्षमता में वृद्धि होती है।
51. अम्लता (एसीडिटी) : 10 मिलीलीटर अनार का रस दिन में 2 बार पीने से भी लाभ होता है।
52. मुंहासे : अनार के बीजों का लेप बनाकर मुंहासों पर लगाना चाहिए। इससे मुंहासे नष्ट हो जाते हैं।
53. हृदयरोग, उच्चरक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) : अनार का रस उच्च रक्तचाप कम करता है। यह धमनियों के सिकुड़ने को कम करता है। रोज अनार का रस पीने से बाईपास सर्जरी से बचा जा सकता है।
54. रक्तपित्त : लगभग 7-14 मिलीलीटर अनार के फलों का रस दिन में 2 बार देना चाहिए। इससे रक्तपित्त में लाभ मिलता है।
55. कब्ज :
अनार में शर्करा (शुगर) और सिट्रिक अम्ल काफी मात्रा में होता है। यह अत्यंत पौष्टिक, स्वादिष्ट और लौह-तत्व से भरपूर होता है। कब्ज से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बीज समेत अनार का सेवन करना अच्छा रहता है और इसके रस के सेवन से उल्टी आना बंद हो जाती है।
अनारदाना 100 ग्राम, दालचीनी 20 ग्राम, इलायची 20 ग्राम, तेजपत्ता 20 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, कालीमिर्च 40 गाम, पीपल 40 ग्राम को मिलाकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें 250 ग्राम पुराना गुड़ मिला दें। इसे 4 ग्राम रोजाना सुबह लें। इससे कब्ज दूर हो जाती है।
56. दांतों के रोग :
अनार तथा गुलाब के सूखे फूल, दोनों को पीसकर मंजन करने से मसूढ़ों से पानी आना बंद हो जाता है। केवल अनार की कलियों के चूर्ण का मंजन करने से मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है।
मुख और मसूढ़ों के विकार में अनार के जड़ के काढ़े से कुल्ले कराने से लाभ होता है।
मीठे अनार के छाया में सूखे 8-10 पत्तों के चूर्ण के मंजन से दांतों का हिलना, मसूढ़ों से खून और पीव का आना या सूजन होना आदि दांतों के विकार नष्ट हो जाते हैं।
57. अनिद्रा या नींद न आना : अनार के ताजे पत्ते 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष रह जाये तो इसमें गर्म दूध मिलाकर पीयें। इससे शारीरिक व मानसिक थकावट मिटती है और अनिद्रा रोग भी मिटता है।
58. मुंह के छाले : अनार के 25 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह एक चौथाई भाग शेष बचे तो उस पानी से कुल्ले करने से मुंह के छाले तथा मुंह के अन्य रोग नष्ट हो जाते हैं।
59. आंखों के रोग :
अनार के 5-6 पत्तों को पानी में पीसकर दिन में दो बार लेप करने तथा पत्तों को पानी में भिगोकर पोटली बनाकर आंखों पर फेरने से आंखों के दर्द में लाभ होता है।
अनार के 8-10 ताजे पत्तों का रस किसी चीनी मिट्टी के बर्तन में कपड़े से छानकर रख दें और सूख जाने पर इसे सुबह-शाम किसी तिल्ली या सलाई द्वारा आंखों में लगायें, इससे खुजली, आंखों से पानी बहना, पलकों की खराबी, आदि रोग दूर होते हैं।
अनार के पत्तों को पीसकर आंखों के ऊपर लेप करना चाहिए। इससे आंखों का दर्द नष्ट हो जाता है।
60. कर्ण विकार (कानों के रोग) :
अनार के ताजे पत्तों का रस 100 मिलीलीटर, गौमूत्र (गाय का पेशाब) 400 मिलीलीटर और तिल का तेल 100 मिलीलीटर, तीनों को धीमी आंच पर उबालते हैं जब केवल तेल शेष ही रह जाए तो इसे छानकर रख लें। इसकी कुछ बूंदें थोड़ा गर्म कर सुबह-शाम कान में डालने से कान की पीड़ा, कर्णनाद और बहरेपन में लाभ होता है।
अनार के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में बेल के पत्तों का रस और गाय का घी मिलाकर गर्म कर लेते हैं। इसे लगभग 20 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर उसमें 250 मिलीलीटर मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम लेने से बहरापन में लाभ होता है।
खट्टे अनार के रस में शहद मिलाकर कान में डालने से कान का पैत्तिक दर्द दूर हो जाता है।
थोड़े से अनार के छिलके और 2 लौंग को लेकर सरसों के तेल में डालकर अच्छी तरह से पका लें। पकने के बाद इस तेल को छानकर एक शीशी में भर लें। इस तेल को कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
61. गले के रोग :
अनार के ताजे पत्तों के 1 मिलीलीटर रस में मिश्री मिलाकर, शर्बत बना लें, 20-20 मिलीलीटर दिन में 2-3 बार चाटने से आवाज का भारीपन, खांसी, नजला तथा जुकाम दूर होता है।
अनार के छाया में सूखे पत्तों के महीन चूर्ण में शहद या गुड़ मिलाकर झरबेरी जैसी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इन गोलियों को मुंह में रखकर चूसना चाहिए। इससे गले के रोग नष्ट हो जाते हैं।
एक लीटर अनार के पत्तों का रस, 1 लीटर सत्यानाशी (पीला धतूरा) का रस, 1 लीटर गोमूत्र (गाय का पेशाब), 2 लीटर किलो काले तिलों का तेल, 500 मिलीलीटर अनार के पत्तों की लुगदी (चटनी) को मिलाकर आग पर पकाने के लिये रख दें, जब पकते-पकते केवल तेल रह जाय, तब इसे उतारकर ठंडा कर लें और छान लें। यह तेल लगाने से कण्ठमाला (गले की गांठे), भगन्दर, कोढ़ के दाग (निशान), दाद और चेहरे के काले निशान मिट जाते हैं।
अनार के छिलकों को 10 गुना पानी में मिलाकर काढ़ा बना लें। और इसमें लौंग और फिटकरी को पीसकर मिला लें। इसके गरारे करने से गले की खरास (गले का सूखना) और स्वर-भंग (आवाज का बैठना) रोग ठीक हो जाता है।
62. बालों का झड़ना : अनार के ताजे हरे पत्तों के 100 मिलीलीटर काढे़ में आधा किलो सरसों का तेल मिलाकर गर्म कर लेते हैं। इस तेल को सिर में लगाने से सिर का गंजापन दूर होता है तथा बालों का झड़ना रुकता है।
63. सिर का दर्द :
अनार के छाया में सुखाये हुए आधा किलो पत्तों में आधा किलो सूखा धनिया मिलाकर महीन चूर्ण कर लें, इसमें 1 किलो गेहूं का आटा मिलाकर, 2 किलो गाय के घी में भून लें, ठंडा होने पर 4 किलो चीनी मिला लें। सुबह-शाम गर्म दूध के साथ 50 ग्राम तक सेवन करने से सिर दर्द और सिर चकराना दूर होता है।
अनार की छाल को घिसकर सिर पर लेप करें, इससे सिर का दर्द तथा आधाशीशी (माइग्रेन) में भी लाभ होता है।
लगभग 20 ग्राम अनार की कली और 10 ग्राम शर्करा को मिलाकर बारीक पीस लें। इस चूर्ण को सूंघने से सिर दर्द ठीक हो जाता है।
अनार के फूलों के रस और आम के बौर के रस को मिलाकर सूंघने से रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) के कारण होने वाला सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
अनार के पत्तों और सफेद चंदन को पानी में घिसकर माथे पर लगाने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
63. उन्माद (पागलपन या मिर्गी) :
अनार के पत्ते और गुलाब के ताजे फूल 10-10 ग्राम (ताजे फूलों के अभाव में सूखे फूल 5 ग्राम) लें। इसे 500 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 250 मिलीलीटर शेष बचे तो इसमें 10 ग्राम गाय का घी मिलाकर गर्म ही गर्म सुबह-शाम पिलाने से उन्माद और मिर्गी में लाभ होता है।
अनार के 20 मिलीलीटर पत्तों के काढे़ में 10-10 ग्राम गाय का घी और चीनी मिलाकर पिलाने से मिर्गी या अपस्मार में लाभ होता है।
64. उर:क्षत (सीने में घाव) : दिन में 2-3 बार अनार के पत्तों का काढ़ा 10-20 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से उर:क्षत में लाभ होता है।
65. हिक्का (हिचकी) : 20 ग्राम अनार के शर्बत में छोटी इलायची के बीज, वंशलोचन, सूखा पोदीना, जहरमोहरा खताई और अगुरू 1-1 ग्राम तथा पीपल लगभग आधा ग्राम का बारीक चूर्ण मिलाकर चटनी बना लेते हैं। आवश्यकतानुसार थोड़ी-थोड़ी चटनी चाटने से हिचकी शीघ्र दूर होती है।
66. शरीर में झुर्रियां या मांस का ढीलापन :
अनार के पत्ते, छिलका, फूल, कच्चे फल और जड़ की छाल सबको एक समान मात्रा में लेकर, मोटा, पीसकर, दुगना सिरका, तथा 4 गुना गुलाबजल में भिगायें। 4 दिन बाद इसमें सरसों का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकायें। तेल मात्र शेष रहने पर छानकर बोतल में भरकर रख लें। इस तेल को रोज स्तनों पर मालिश करें तो स्तनों की शिथिलता में इससे लाभ होता है। इसके साथ ही जिनके शरीर में झुर्रियां पड़ गई हों, मांसपेशियां ढीली पड़ गई हो उन्हें भी इस तेल की मालिश से निश्चित लाभ होता है।
अनार के पत्तों को कुचलकर 1 लीटर रस निकाल लें, इसमें 500 मिलीलीटर मीठा तेल (तिल का तेल) मिलाकर धीमी आंच पर पकायें। केवल तेल शेष बचने पर तेल को छानकर बोतलों में भर कर रख लें। दिन में 2-3 बार मालिश करने से मांसपेशियों के ढीलेपन में लाभ होता है।
अनार के फल के 1 किलो छिलके को 4 लीटर पानी में डालकर उबाल लें, जब पानी 1 लीटर शेष रह जाये तो उसमें 250 मिलीलीटर सरसों का तेल डालकर तेल गर्म कर लें। इस तेल की मालिश करने से कुछ ही दिनों में शरीर की मांसपेशियों का ढीलापन दूर हो जाता है और चेहरे की झुर्रियां मिटती हैं तथा त्वचा में निखार आ जाता है।
67. खांसी :
अनारदाना सूखा 100 ग्राम, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात, इलायची 50-50 ग्राम को चूर्ण कर उसमें बराबर मात्रा में चीनी मिला लें। इसे दिन में दो बार शहद के साथ 2-3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से खांसी, श्वास, हृदय तथा पीनस आदि रोग दूर होते हैं। यह पाचनशक्तिवर्द्धक और रुचिकाकर होता है।
अनार के छिलकों को पीसकर 3-4 दिन तक 1-1 चम्मच बच्चों को सुबह-शाम देने से खांसी ठीक हो जाती है।
10-10 ग्राम अनार की छाल, काकड़ासिंगी, सोंठ, कालीमिर्च पीपल और 50 ग्राम पुराना गुड़ लेते हैं। इन सभी को एक साथ पीसकर और छानकर 1-1 ग्राम की छोटी-छोटी गोलियां बना लेते हैं। इस गोली को मुंह में रखकर चूसने से खांसी के रोग मे लाभ मिलता है।
80 ग्राम अनार के छिलके और 10 ग्राम सेंधानमक में पानी डालकर गोलियां बना लेते हैं। इस 1-1 गोली को दिन में 3 बार चूसने से खांसी ठीक हो जाती है।
अनार के फल के छिलके को मुंह में रखकर नमक या केवल चूसने से भी खांसी में लाभ होता है।
अनार का छिलका चूसने से, या पानी में भिगोकर बच्चों को पिलाने से खांसी में लाभ होता है।
अनार का छिलका 40 ग्राम, पीपल और जवाखार 6-6 ग्राम तथा गुड़ 80 ग्राम की चाशनी बनाकर उसमें सभी का महीन चूर्ण मिलाकर लगभग आधा ग्राम की गोली बनाकर 2-2 गोली दिन में 3 बार गर्म पानी से सेवन करें। इसमें कालीमिर्च 10 ग्राम मिला लेने से और भी उत्तम लाभ होता है।
68. खूनी दस्त :
अनार की छाल और कड़वे इन्द्रजौ 20-20 ग्राम को यवकूट कर 640 मिलीलीटर पानी मिलाकर उबाल लें चौथाई शेष रहने पर इसे उतार लें और दिन में 3 बार पिलायें। यदि पेट में ऐंठन हो तो 30 मिलीग्राम अफीम मिलाकर लेने से तुरन्त लाभ होगा।
कुड़ाछाल 80 ग्राम को कूटकर 640 मिलीलीटर पानी में पकायें। चौथाई शेष रहने पर उतारकर छान लें। अब इसमें 160 मिलीलीटर अनार का रस मिलाकर पुन: पकावें। पानी राब के समान गाढ़ा हो जाये तो उतारकर रख लें। 20 मिलीलीटर तक्र (मट्ठे) के साथ सेवन करने से तेज खूनी दस्त (रक्तातिसार) में लाभ होता है।
सौंफ, अनारदाना और धनिये का चूर्ण मिश्री में मिलाकर 3-3 ग्राम दिन में 3 से 4 बार लेने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
69. रक्तवमन (खूनी की उल्टी) : अनार के पत्तों के लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग रस को दिन में 2 बार पिलाने से, रक्तवमन, रक्तातिसार, रक्तप्रमेह, सोमरोग, बेहोशी और लू लगने में लाभ होता है।
70. हैजा :
अनार के 6 ग्राम हरे पत्तों को 20 मिलीलीटर पानी के साथ पीस छानकर उसमें 20 ग्राम चीनी का शर्बत मिलाकर 1-1 घंटे बाद तब तक पिलायें जब तक हैजा पूर्णरूप से ठीक न हो जाए।
खट्टे अनार का रस 10-15 मिलीलीटर नियमित रूप से सेवन करना हैजे में गुणकारी है। रोग शांत होने पर अनार, नींबू या मिश्री का शर्बत, फलों का रस, बर्फ डालकर दही की पतली लस्सी, साबूदाना, अनन्नास का जूस आदि देना चाहिए।
71. गर्भाशय भ्रंश (गर्भाशय का बाहर आना) : गर्भाशय के बाहर निकल आने पर भी अनार गुणकारी है। छाया में सुखाये अनार के पत्तों का चूर्ण 6-6 ग्राम सुबह-शाम ताजे पानी के साथ सेवन कराने से स्त्रियों को लाभ होता है।
72. आग से जल जाना : अनार के पत्तों को पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से दर्द समाप्त हो जाता है।
73. व्रण (घाव) :
अनार के फूलों की कलियां, जो निकलते ही हवा के झोकों से नीचे गिर पड़ती हैं, इन्हें जलाकर क्षतों (जख्मों, घावों) पर बुरकने से वे शीघ्र ही सूख जाते हैं।
अनार के 50 ग्राम पत्तों को 1 लीटर पानी में उबालकर चौथाई शेष रहने पर व्रणों (घावों) को धोने से विशेष लाभ होता है।
अनार के 8-10 पत्तों के पेस्ट का लेप उपदंश के घावों पर करने से बहुत लाभ होता है। साथ ही साथ इसके पत्तों का चूर्ण 10 से 20 ग्राम का सेवन भी करना चाहिए।
यदि नाक, कान में घाव हो या पीड़ा हो तो अनार की जड़ का काढ़ा 2-2 बूंद डालने से या पिचकारी देने से लाभ होता है।
अनार के जड़ की छाल का 5-10 ग्राम सूखा चूर्ण बुरकने से उपदंश के घावों में लाभ होता है।
अगर फोड़े में जलन हो रही हो तो उसे दूर करने के लिए अनार की पत्तियों को पीसकर लगाने से भी जलने से बना घाव सही हो जाता है।
74. दाह (जलन) :
अनार के 10-12 ताजे पत्तों को पीसकर हथेली और पांव के तलुवों पर लेप करने से हाथ-पैरों की जलन में आराम मिलता है।
250 ग्राम अनार के ताजे पत्तों को पांच लीटर पानी में उबालें तथा 4 लीटर पानी शेष रहने पर नहाने के लिए प्रयोग करने से गर्मी के सीजन की पित्ती शांत होती है।
अनार और इमली को एक साथ पीसकर शरीर पर लगाने से जलन समाप्त हो जाती है।
75. कंडूरोग (खुजली) : मीठे अनार के 8-10 ताजे पत्तों को पीसकर, थोड़ा सरसों का तेल मिलाकर मालिश करने से कंडू रोग में आराम हो जाता है।
76. आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) : अनार के पत्तों के काढे़ में 500 मिलीग्राम सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से आंत्रिक ज्वर में लाभ होता है।
77. मुंह के छाले (खुनाक) :
लगभग 10 ग्राम अनार के पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह एक चौथाई शेष बचे तो इस काढे़ से कुल्ले करने से खुनाक रोग और मुंह के छालों में लाभ होता है।
अनार फल के छिलके को पीसकर छालों पर लगाने से कुछ ही दिन में छाले सूख जाते हैं। इस पिसी हुई मलहम को रोजाना 2 बार लगाएं।
78. नाखून पीड़ा :
अनार के फूलों के साथ धमासा और हरड़ को बराबर मात्रा में पीसकर नख में भरने से, नाखून के भीतर की सूजन और पीड़ा में लाभ होता है।
नाखून के जख्म को ठीक करने के लिए अनार के पत्तों को पीसकर नाखून पर बांधें।
अनार के पत्ते पीसकर बांधने से नाखून टूटने पर हुआ दर्द ठीक हो जाता है।
79. पेट के विभिन्न रोग : आमाशय, तिल्ली और यकृत की कमजोरी, संग्रहणी, दस्त और उल्टी तथा पेट दर्द आदि रोग अनार खाने से ठीक हो जाते हैं। अनार खट्टी मीठी होने से पाचनशक्ति बढ़ाती है तथा मूत्र लाती है।
80. आंव (एक तरह का सफेद चिकना पदार्थ जो मल के द्वारा बाहर निकलता है) : लगभग 15 ग्राम अनार के सूखे छिलके और दो लौंग, दोनों को पीसकर 1 गिलास पानी में दस मिनट तक उबालें, फिर छान कर आधा-आधा कप प्रतिदिन तीन बार पीयें। दस्त और पेचिश में लाभ होगा। जिन व्यक्तियों के पेट में आंव की शिकायत बनी रहती है, उन्हें इसका नियमित सेवन विशेष रूप से लाभकारी होता है।
81. मोटापा :
अनार रक्तवर्धक होता है। इसके सेवन से त्वचा चिकनी बनती है। रक्त का संचार बढ़ता है। शरीर को मोटा करती है। अनार मूर्च्छा में लाभदायक, हृदय बल-कारक और खांसी नष्ट करने वाली होती है। इसका शर्बत हृदय की जलन और बेचैनी, आमाशय की जलन, मूत्र की जलन, उल्टी, जी मिचलाना, खट्टी डकारें, हिचकी, घबराहट, प्यास आदि शिकायतों को दूर करता है। अनार का रस निकालकर पीने से शरीर की शक्ति बढ़ती है। और रक्त की वृद्धि होती है।
अनार को खाने से खून साफ होता है, खून का संचार बढ़ता और शरीर मोटा हो जाता है।
82. गंजापन : अनार के पत्ते पानी में पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन दूर हो जाता है। प्रतिदिन मीठा अनार खाने से पेट मुलायम रहता है तथा कामेन्द्रियों को बल मिलता है।
83. श्वास या दमा रोग :
अनार के दानों को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार खाने से अस्थमा रोग ठीक हो जाता है।
अनार के फूल 10 ग्राम, कत्था 10 ग्राम, कपूर 2 ग्राम और लौंग के 4 पीस आदि सभी को पान के रस में घोंटकर चने के बराबर आकार की गोलियां बना लेते हैं। 2-2 गोली सुबह-शाम को चाटनी चाहिए।
अनार पकी हुई लेकर उसमें सात जगह चाकू से गहरे चीरे (1 इंच लम्बे) लगाकर प्रत्येक चीरे में एक बादाम अंदर दबा देते हैं। उस अनार को फिर मलमल के कपड़े से बांधकर गर्म राख में दबा देते हैं। इसे पूरी रात राख में ही दबा रहने देते हैं। सुबह अनार को वापस निकालकर 2 ग्राम मिश्री के साथ सातों बादामों को पीसकर 7 दिनों तक खाने से दमा के रोगी को राहत मिलती है।
84. बुखार : अनार का शर्बत पीने से प्यास, बेचैनी, जी मिचलाना, वमन (उल्टी) और दस्त के रोगों में देने से लाभ होता हैं।
85. पोथकी, रोहे : 100 मिलीलीटर अनार के हरे पत्तों के रस को खरल करके पीसकर शुष्क कर लें। इस शुष्क चूर्ण को आंखों में सूरमे की तरह दिन में 2-3 बार लगाने से पोथकी की बीमारी समाप्त हो जाती है।
86. रतौंधी (रात में न दिखाई देना) : अनार का रस निकालकर किसी साफ कपड़े में छानकर 2-2 बूंदे आंखों में डालने से 2 से 3 हफ्तों में ही रतौंधी रोग कम होने लगता है।
87. कांच निकलना (गुदाभ्रंश) :
अनार के 100 ग्राम पत्तों को 1 लीटर जल के साथ मिलाकर उबाल लें। उबले पानी को छानकर रोजाना 3 से 4 बार गुदा को धोने से गुदाभ्रश (कांच निकलना) का निकलना बंद हो जाता है।
अनार के छिलके 5 ग्राम, हब्ब अलायस 5 ग्राम और माजूफल 5 ग्राम को मिलाकर कूट लें। इस कूट को 150 मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबालें, एक चौथाई पानी रह जाने पर छानकर गुदा को धोएं। इससे गुदाभ्रश (कांच निकलना) बंद हो जाता है।
88. कैन्सर या कर्कट के रोग में : अनार दाना और इमली को रोजाना सेवन करते रहने से कैंसर के रोगी को आराम मिलता है और उसकी उम्र 10 वर्ष के लिए और बढ़ सकती है।
89. जुकाम : जुकाम के साथ अगर नाक से खून भी आता हो तो घी में अनार के फूल मिलाकर उपलों की आग पर रखकर नाक से उसका धुंआ लेने से लाभ होता है।
90. नामर्दी (नपुंसकता) : मीठे अनार के 100 ग्राम दाने दोपहर के समय नित्य खायें। यह शक्ति को बढ़ाता है।
91. पेशाब की बीमारी में (मूत्ररोग) में :
सूखे अनार के छिलकों को सुखाकर पीस लें। उसमें से 1 चम्मच चूर्ण ताजे पानी के साथ खाने से लाभ होता है।
अनार की कली, सफेद चंदन की भूसी, वंशलोचन, बबूल का गोंद सभी 10-10 ग्राम, धनिया और मेथी 10-10 ग्राम, कपूर 5 ग्राम। सबको आंवले के थोड़े-से रस में घोट लें। फिर बड़े चने के बराबर की गोलियां बना लें। 2-2 गोली रोज सुबह-शाम पानी से लेने से मूत्ररोग ठीक हो जाता है।
92. बहरापन :
आधा लीटर अनार के पत्तों का रस, आधा लीटर बेल के पत्तों का रस और 1 किलो देशी घी को एक साथ मिलाकर आग पर पकने के लिये रख दें। पकने के बाद जब केवल घी ही बाकी रह जायें तो इसमें से 2 चम्मच घी रोजाना दूध के साथ रोगी को खिलाने से बहरेपन का रोग दूर हो जाता है।
20-20 मिलीलीटर अनार और बेल के पत्तों के रस को 50 ग्राम घी में डालकर बहुत देर तक गर्म कर लें। फिर इसे छानकर लगभग 10 ग्राम घी या 200 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह और शाम को पीने से बहरापन दूर हो जाता है।
93. आमातिसार :
आमातिसार के रोगी को 20 से 40 मिलीलीटर अनार की छाल का काढ़ा सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
अनार के पके फल को (हल्का भूनकर) कूटकर रस निकालकर सेवन करने से आमातिसार के रोगी को रोग दूर हो जाता है।
94. बवासीर (अर्श) :
अनार के छिलके का चूर्ण बनाकर इसमें 100 ग्राम दही मिलाकर खाने से बवासीर ठीक हो जाती है या अनार के छिलकों का चूर्ण 8 ग्राम, ताजे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम प्रयोग करें।
अनार का रस, गूलर के पके फलों का रस तथा बाकस के ताजे पत्तों का रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर पीने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) ठीक होती है।
अनार के छालों का काढ़ा बनाकर उसमें सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से बवासीर रोग ठीक होता है तथा खून का गिरना बंद होता है।
अनार के पत्ते पीसकर टिकिया बना लें और इसे घी में भूनकर गुदा पर बांधें। इससे मस्सों के जलन, दर्द तथा सूजन मिट जाती है।
अनार के छिलकों का चूर्ण नागकेशर के साथ मिलाकर सेवन करने से बवासीर में खून का बहना बंद होता है। अनार का रस पीने से भी बवासीर में लाभ होता है।
95. मासिक-धर्म सम्बन्धी परेशानियां : अनार के थोड़े से छिलकों को सुखा लेते हैं। फिर उसका चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रखें, फिर इसमें से एक चम्मच चूर्ण खाकर ऊपर से पानी पीने से बार-बार खून आने की शिकायत दूर हो जाती है।
96. आंवयुक्त पेचिश :
अनार का जूस पेचिश के रोगी को पिलाने से पेचिश में आंव, खून आदि आना बंद हो जाता है।
रोगी को अगर पेचिश हो तो उसे अनार के जूस में गन्ने का जूस मिलाकर पिलाने से रोगी को लाभ मिलता है।
अनार के पेड़ की छाल के काढ़े में सोंठ और चंदनचूरा डालकर पीने से खूनी पेचिश के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
97. भगन्दर :
अनार के पेड़ की छाल 10 ग्राम लेकर उसे 200 मिलीलीटर जल के साथ आग पर उबाल लें। उबले हुए जल को किसी वस्त्र से छानकर भगन्दर को धोने से जख्म नष्ट होते हैं।
मुट्ठी भर अनार के ताजे पत्ते को दो गिलास पानी में मिलाकर गर्म करें। आधा पानी शेष रहने पर इसे छान लें। इस उबले मिश्रण को पानी में हल्का गर्म करके सुबह-शाम गुदा को सेंकने और धोने से भगन्दर ठीक होता जाता है।
98. स्त्रियों का प्रदर रोग :
20 ग्राम अनार के पत्ते, 5 पीस कालीमिर्च, 1 ग्राम सौंफ को एक साथ लेकर पानी के साथ सेवन करने से प्रदर, गर्भाशय की बीमारी की सूजन ठीक हो जाती है।
20 ग्राम अनार के पत्ते, 3 ग्राम कालीमिर्च, 2 कली नीम की पत्तियां तीनों को पीसकर इसका 2 खुराक बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर में लाभ होता है।
अनार के फूलों को मिश्री के साथ पीसकर प्रदर रोग में सेवन करने से लाभ होता है।
अनार के ताजे हरे पत्ते 30 पीस तथा 10 पीस कालीमिर्च पीसकर आधा गिलास पानी में घोल-छानकर रोजाना सुबह-शाम पीने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
10 ग्राम अनार के कोमल पत्ते और 7-8 दाने कालीमिर्च को लेकर 200 मिलीलीटर पानी में देर तक उबालें। फिर पानी को छानकर पी लें। इसे कुछ सप्ताह तक सेवन करने से श्वेतप्रदर मिट जाता है।
अनार के छिलके के चूर्ण को चावल के धोवन में मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ होता है।
99. अम्लपित्त : 100 ग्राम अनारदाना, 50 ग्राम दालचीनी, 2 लाल इलायची, 50 ग्राम तेजपत्ता, 100 ग्राम मिश्री, 10 ग्राम जीरा और 10 ग्राम धनिया के बीज को पीसकर चूर्ण बना लें, इस मिश्रण को 5-5 ग्राम की मात्रा में दिन में सुबह, दोपहर और शाम (3 बार) ठंडे पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
100. लू का लगना : लगभग 30 से 50 मिलीलीटर पानी के साथ अनार का रस 3 से 4 घंटे के अंतर पर पिलाने से लू से छुटकारा पाया जा सकता है। रोगी के ठीक होने पर भी अनार का रस दिन में 3 बार देना चाहिए।
101. रक्तप्रदर :
10-10 ग्राम अनार के फूल, गोखरू और शीतलचीनी लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम चूर्ण रोजाना पानी के साथ सेवन करने से रक्तप्रदर में बहुत फायदा होता है।
3 ग्राम अनार को शहद में मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से रक्तप्रदर मिट जाता है।
102. पक्वाशय का जख्म : अनार का रस और आंवले का मुरब्बा पीने से लाभ होता है।
103. पेट के अंदर की सूजन और जलन : अनार के दाने 60 ग्राम को 1 लीटर पानी में डालकर मिट्टी के बर्तन में रख लें, फिर 2 से 3 घंटे के बाद मिश्री मिलाकर पानी में मिलाकर पीने से पेट की जलन कम हो जाती है।
104. स्वप्नदोष :
अनार के सूखे पीसे हुए छिलके के बारीक चूर्ण को 1 चम्मच की मात्रा में रात को सोने से पहले ठंडे पानी के साथ फंकी के रूप में लेने से सोते समय पुरुष के शिश्न से धातु का आना (स्वप्नदोष) बंद हो जाता है।
अनार का पिसा हुआ छिलका 5-5 ग्राम सुबह-शाम पानी से लें।
अनार के छिलके का रस शहद के साथ रोजाना सुबह-शाम लेने से स्वप्नदोष दूर हो जाता है।
105. पेट के सभी प्रकार के रोग : अनार के खट्टे और मीठे फल का सेवन करने से आमाशय, तिल्ली, यकृत (जिगर) की कमजोरी, संग्रहणी (पेचिश), दस्त, उल्टी और पेट के दर्द में लाभ होता है। यह पाचन-शक्ति को बल देती है और पेशाब खुलकर लाती है।
106. पेट में दर्द :
अनार के दानों पर कालीमिर्च और नमक डालकर चूसें। इससे पेट दर्द बंद हो जाता है। सुबह लेने से भूख लगती है और पाचनशक्ति बढ़ती है।
नमक और कालीमिर्च का पाउडर अनार के दानों में मिलाकर सेवन करने से पेट का दर्द नष्ट हो जाता है।
अनार के 30 मिलीलीटर रस में थोड़ी-सी भुनी हुई हींग और कालानमक डालकर सेवन करने से पेट के दर्द की बीमारी में आराम मिलता है।
आधा चम्मच अनार के छिलकों के बारीक चूर्ण को शहद के साथ चाटने से लाभ होता है।
पके अनार के दानों पर नमक और कालीमिर्च डालकर चाटने से पेट के दर्द में लाभ होगा।
107. सभी प्रकार के दर्द : एक अनार को निचोड़कर प्राप्त हुए रस में त्रिकुटा और सेंधानमक का चूर्ण मिलाकर पीने से `त्रिदोषज शूल´ यानी वात, कफ और पित्त के कारण होने वाली पीड़ा समाप्त हो जाती है।
108. उपदंश (सिफिलिस) :
अनार के 100 ग्राम ताजे पत्ते कुचलकर 1 लीटर पानी में उबालें, जब आधा लीटर रह जाये तो छानकर 2 से 3 बार उपदंश के घाव पर लगायें। इससे उपदंश के घाव ठीक हो जाते हैं।
अनार के पत्ते छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें। 10-10 ग्राम चूर्ण को सुबह-शाम पानी के साथ खाने से उपदंश में लाभ होता है।
109. मूर्च्छा (बेहोशी) : अनार, दही का पानी, राख, धान की खीलें, चीनी और श्वेत कमल इन सबका ठंडा काढ़ा पिलाने से बेहोशी खत्म हो जाती है।
110. योनि का संकोचन : अनार की छाल, कूठ, धाय के फूल, फिटकरी का फूला, माजूफल, हाऊबेर, और लोधा को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर बने चूर्ण को शराब में मिलाकर योनि पर लेप करने से योनि सिकुड़ जाती है।
111. दिल की धड़कन :
अनार के ताजे पत्तों को 10 ग्राम में पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर, उस पानी को छानकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से तेज धड़कन की समस्या समाप्त होती है।
अनार के ताजे 50 पत्ते पीस कर आधा कप पानी में घोल कर छान लें। इस तरह तैयार किया अनार के पत्ते का घोल सुबह-शाम पीने से हृदय की धड़कन में लाभ होता है।
112. हृदय की निर्बलता : अनार का रस पीने से हृदय की निर्बलता नष्ट होती है।
113. सिर चकराना : गर्मी के दिनों में अनार खाने और इसका रस (जूस) पीने से गर्मी से होने वाले रोगों से बचा जा सकता है।
114. हृदय की दुर्बलता (कमजोरी) :
अनार के ताजे पत्ते 150 मिलीलीटर पानी में घोटकर छान लें। इस रस को सुबह-शाम नियमित सेवन करने से दिल की धड़कन शांत हो जाती है।
छाया में सुखाये हुए अनार के छिलके, दही, नीम के पत्ते, छोटी इलायची और गेरू इन सबका चूर्ण बना लें। इसे पानी के साथ 50 ग्राम की मात्रा में लेने से हृदय की धकड़न तथा धूप की जलन में लाभ होता है।
चीनी के शर्बत में अनारदाने के रस को मिलाकर सेवन करें। यह शर्बत हृदय की जलन, आमाशय की जलन, घबराहट, मूर्च्छा आदि को दूर करता है।
115. गुल्यवायु हिस्टीरिया : लगभग 10 ग्राम अनार के पत्ते और 10 गुलाब के फूलों को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनायें और 100 मिलीलीटर शेष रह जाने पर छानकर, उसमें 10 ग्राम घी मिलाकर सुबह और शाम को लेने से हिस्टीरिया का रोग खत्म हो जाता है।
116. मिरगी (अपस्मार) :
लगभग 100 ग्राम अनार के हरे पत्तों को 500 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब चौथाई पानी रह जाये, तो इसे छानकर 60 ग्राम घी और 60 ग्राम चीनी मिलायें। इसे सुबह-शाम पीने से मिरगी का रोग ठीक हो जाता है।
अनार के पत्तों का गुलाब के फूलों के साथ मिलाकर बनाया गया काढ़ा 14-28 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में दो बार मिर्गी के रोगी को देना चाहिए। इससे मिर्गी ठीक हो जाती है।
117. दाद :
अनार के पत्तों को पीसकर दिन में 2 बार दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
अनार के पत्तों को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रोजाना 6 ग्राम ताजे पानी के साथ पीने से दाद और खून के रोग ठीक हो जाते हैं।
118. सफेद दाग :
अनार का सेवन इस रोग में बहुत ही लाभदायक है। अनार के पत्तों के रस को शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
10 ग्राम लाल चंदन और 10 ग्राम अनारदाना को पीसकर सहदेवी के रस में मिलाकर गोलियां बना लें। इन गोलियों को घिसकर पानी के साथ लेप करने से बहुत लाभ होता है। कृपया इसे जनहित में शेयर करें व पुन्‍य के भागी बने!