शनिवार, 1 सितंबर 2012

नरोड़ा पाटिया जाँच सच का


आज कुछ सीनियर वकीलों और पत्रकार मित्रों से नरोड़ा पाटिया पर आये विशेष कोर्ट के फैसले को लेकर चर्चा हुई |

मित्रों, इस केस के पीछे केन्द्र सरकार ने कई सौ करोड रूपये खर्च किये | कुल चालीस वकीलों की फ़ौज खड़ी की गयी जिन्हें सीनीयरीटी के हिसाब से 40000 रूपये प्रतिदिन से लेकर 8000 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया गया |

इतना ही नही तीस्ता जावेद और मुकुल सिन्हा ने भी अपने तरफ से खाड़ी के देशो के लिए ग
ए पैसे इस मुकदमे मे झोक दिये |

मोबाईल वाइस स्पेक्ट्रोस्कोपी के लिए कई बार केन्द्र की टीम अमेरिका मे एफबीआई के लैब मे भी गयी |

कानूनविदों का मानना है कि विशेष कोर्ट के फैसले मे कई कोंट्राडिक्शन है जैसे :-

१- अगर किसी के मोबाईल लोकेशन को उसके गुनाहगार होने का आधार माना जाये तो क्या अगर कोई अपना मोबाईल घर पर ही छोड़ दे और किसी अपराध को अंजाम दे तो क्या उसे सिर्फ इस आधार पर कोर्ट अपराधी नही मानेगी कि उसके मोबाईल का लोकेशन और क्राइम के लोकेशन आपस मे मैच नही है ?

२- क्या मोबाईल को शरीर का अंग माना जा सकता है कि मोबाईल हर समय किसी के साथ ही हो ?

३- तहलका के स्टिंग ऑपरेशन मे बाबू बजरंगी ने कई बाते कही, लेकिन उसमे से कुछ बाते जाँच मे झूठ साबित हुयी | जैसे बाबू बजरंगी ने कहा कि दंगो के बाद खुद मोदी जी उसे अपने घर पर बुलाकर शाबाशी दी थी | लेकिन जो तारीख बाबू ने तहलका को बताई उस तारीख को मोदी जी गांधीनगर मे क्या गुजरात मे ही नही थे |
फिर कोर्ट ने बाबू बजरंगी के दूसरी सारी बातों को सच कैसे मान लिया ?

४- जिस अपराध मे पूरी भीड़ शामिल हो तो उसमे से ४० लोगो को यदि कोर्ट बेनिफिट ऑफ डाउट देती है तो फिर दूसरों को क्यों नही ? आखिर उनको बेनिफिट ऑफ डाउट देने का आधार क्या है ? जबकि चार्जशीट मे उनका नाम भी बराबर के गुनाह मे शामिल था ?

५- इस केस मे सभी गवाह मरने वालो के सगे सम्बन्धी ही थे और सगे सम्बन्धी के गवाही को सुप्रीम कोर्ट अपने कई फैसलों मे विश्वसनीय नही माना है | जाहिर सी बात है रिश्तेदार हर हाल मे अभियुक्तों को सजा चाहेंगे इसलिए उनकी गवाही को सुबूतो के साथ मैच होना चाहिए |

मायाबेन और बाबू बजरंगी दोनों एक रजनीतिक फिगर है | मायाबेन कोर्पोरेटर से लेकर विधायक और मंत्री रही है | बाबू बजरंगी विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल से जुड़े रहे है | ऐसे मे उनका शिनाख्त परेड मे पहचाना जाना कोई बड़ी बात नही है |

मित्रों विशेष अदालतों के ९९% फैसले हाईकोर्ट या सुप्रीमकोर्ट मे बदल जाते है

(जितेन्द्र प्रताप सिंह)
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