शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

भरेह-चकरनग रइटावा गदर1857


भरेह-चकरनगर के राजाओं ने लिया था अंग्रेजों से लोहा
Story Update : Wednesday, August 15, 2012 12:01 AM
Etawah इटावा
इटावा। सन् 1857 के गदर में जिले के आजादी के दीवाने पीछे नहीं रहे। यहां के सपूतों ने सिर पर कफन बांधकर अंग्रेजों से लोहा लिया। भरेह और चकरनगर के राजाओं ने क्रांति में एक साथ कूदकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। चकरनगर के राजा कुंवर निरंजन सिंह और भरेह के राजा रूप सिंह ने 1857 की क्रांति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। चकरनगर के राजा ने अंग्रेजों की बढ़ती गतिविधियों पर सिकरौली के राव हरेंद्र सिंह से मिलकर इटावा में अंग्रेजों के वफादार कुंवर जोरसिंह व सरकारी अधिकारियों को हटाने की मुहिम छेड़ दी थी। दोनों ही राजाओं ने झांसी की रानी को समर्थन देकर अंग्रेजों को खुली चुनौती दी। राजा भरेह कुं. रूप सिंह ने शेरगढ़ घाट पर नावों का पुल बनवाया। इस कार्य में निरंजन सिंह सहित क्रांतिकारी जमीदारों ने उनका साथ दिया। झांसी के क्रांतिकारियों ने शेरगढ़ घाट से यमुना नदी पार कर 24 जून 1857 को औरैया तहसील को लूटा।
कई बार अंग्रेजी सिपाहियों से भरेह व चक
रनगर के राजाओं के बीच लड़ाई हुई। अगस्त 1857 के आखिरी सप्ताह में अंग्रेजी फौज 18 पाउंड की तोपें लेकर व्यापारियों की नावों से यमुना नदी के रास्ते भरेह पहुंची और राजा के किले पर हमला किया। राजा रूप सिंह पहले ही अंग्रेजी सरकार के मंसूबों को भांप चुके थे। उन्होंने किला पहले ही खाली कर दिया था। 5 सितंबर को अंग्रेजी फौज ने भरेह के किले को तहस नहस कर दिया। 6 सितंबर को अंग्रेजी फौज ने भरेह से चकरनगर तक कच्ची सड़क बनाकर चकरनगर किले पर हमलाकर उसे अपने कब्जे में लिया। अंग्रेजों ने चकरनगर में एक स्थाई फौज छावनी बनाई। इस दौरान राजा निरंजन सिंह को रोकने के लिए सहसों में फौजी चौकी स्थापित कराई गई। 1857 की क्रांति ने जिले में यह दर्शा दिया कि देश की स्वतंत्रता के लिए सभी तैयार हैं। 1858 में अंग्रेजों का पुन: राज्य हो गया। अंग्रेजों ने सारी रियासत जब्त कर प्रतापनेर के राजा जोर सिंह को सौंप दी थी। आजादी के 65 साल बाद भी भरेह का ऐतिहासिक किला बदहाल है।

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