शुक्रवार, 31 अगस्त 2012
'चुगलची का मकबरा(श्रद्धालु) चप्पल-जूतों से मकबरे में बनी कब्र को पीटते हैं
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के एक मकबरे में जियारत के लिए लोग चप्पल-जूतों का इस्तेमाल करते हैं। यहां आने वाले जायरीन (श्रद्धालु) चप्पल-जूतों से मकबरे में बनी कब्र को पीटते हैं। लोगों की मान्यता है कि इस अनोखी जियारत के जरिए वे सभी संकटों से मुक्त रहेंगे। लेकिन अब यह मकबरे वक्त की मार झेलते झेलते टूट रहा है भले है यह मकबरा चुगलखोरी की याद दिलाता हो लेकिन दुनिया मे इकलोता होने की वजह से इसके टूटने का दर्द जरुर है l इटावा के बाहरी इलाके दतावाली में स्थित 'चुगलची का मकबरा' में जियारत का यह अनोखा तरीका एक परंपरा बन गई है। सैकड़ों वर्षो से यहां यह अनोखी परंपरा चली आ रही है। करीब 500 साल पुराना यह मकबरा सुनसान जगह पर है, वहां आस-पास आबादी नहीं है। वह चारों तरफ से ऊंची नक्कासीदार दीवारों से घिरा है लेकिन ऊपर छत नहीं है।
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के एक मकबरे में जियारत के लिए लोग चप्पल-जूतों का इस्तेमाल करते हैं। यहां आने वाले जायरीन (श्रद्धालु)...
काली देवी का मंदिर
जनपद इटावा के कस्बा लखना में स्थित काली देवी का मंदिर अपना एक विशेष महत्व है। इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1857 में की गई थी। मालूम हो कि 1857 का स्वाधीनता आन्दोलन में अपना अलग ही महत्व है। इस मंदिर की लम्बाई करीब 400 फुट और चौड़ाई करीब 200 फुट है। इस देवी मंदिर की खास विशेषता ये है कि ठीक बगल में सैयद बाबा का कच्चा थान है। जो मुसलमानों के लिए श्रद्धा का केन्द्र तो है ही, साथ ही हिन्दुओं के लिए देवी मॉ के साथ ही बाबा के प्रति भी समान आस्था का केन्द्र है। हजारों लोग एक साथ दोनों की पूजा अर्चना करते है। लखना के इस कालका देवी मंदिर में वर्ष में दो मेले लगते है। एक चैत्र सुधि पूर्णमा को और दूसरा क्वार की नवरात्र में लगता है। दूर-दूर स्थानों से आने वाले लोग अपनी मनोतियां मानते है और पूरी होने पर झण्डा और घंटा चढ़ाते है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजाराव जसवन्त सिंह ने कराया था। ऐसा सुना जाता है कि राजा नियमित यमुना नदी पार कर घार में स्थित देवी मंदिर के दर्शन करने जाते थे। एक दिन यमुना नदी में बहाव अधिक होने के कारण मल्लाओं
ने भी नाव पार होना असुरक्षित बताया तो राजा बड़े मायूस हो गये और एक पेड़ की छांव में बैठकर दुखी होकर सोच-विचार करने लगे। अचानक देवीय रूप से आग जली और राजा जसवंत सिंह ने उसी स्थान पर देवी मंदिर का निर्माण शुरू करा दिया। सैयद बाबा के बगल में देवी की स्थापना के बाद एक और देवी मंदिर की स्थापना करने का मन बनाया लेकिन इससे पूर्व ही राजा का देहावसान हो गया और स्थापना के लिए मंगबाई गई मूर्ति ऊपर के कमरे में रखी हुई है, जिसकी पूजा अर्चना परिवारी जन करते है। मंदिर परिसर में ही सैयद बाबा की मजार है जिस पर चादर और कौढ़िया बताशे चढ़ाते है। चढ़ावा मुस्लिम खिदमतगार देता है। ऐसा मान्यता है कि महामाया तब तक मंनत मंजूर नहीं करती है जब तक सैयद बाबा को चढ़ावा नहीं मिलता है। मंदिर की देख-रेख लखना राज परिवार के लोग करते आ रहे है। इस मंदिर में दलित पुजारी ही वर्षों से पूजा करते आ रहे है। साथ ही मंदिर में बधाई डालने और ढोलक बजाने का कार्य दलित और कोरी जाति की महिलायें करती आ रही है। इसी प्रकार सैयद बाबा की मजार पर भी दूदे खान और गफफार खान की कई पीड़ियां इवादत करती आ रहीं है। इस मंदिर के प्रति जितनी आस्था जिले और आस-पास के जनपदों के लोगों की है उतनी ही आस्था डकैतों में भी रही है। पूर्व में अनेकों नामी गिरामी डकैतों ने पुलिस से बचते-बचाते झंडा चढ़ाने में कामयाब भी रहे। देवी मॉ की ऐसी कृपा रही कि पुलिस की व्यापक किले बन्दी भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। वेष बदलकर दस्यु मोहर सिंह गुर्जर, मलखान सिंह, छवि राम, घनश्याम उर्फ घन्सा बाबा, निर्भय गूजर और महिला दस्यु सुन्दरी फूलन देवी सभी यहां आकर झंडा और घंटा चढ़ा चुके है।
ने भी नाव पार होना असुरक्षित बताया तो राजा बड़े मायूस हो गये और एक पेड़ की छांव में बैठकर दुखी होकर सोच-विचार करने लगे। अचानक देवीय रूप से आग जली और राजा जसवंत सिंह ने उसी स्थान पर देवी मंदिर का निर्माण शुरू करा दिया। सैयद बाबा के बगल में देवी की स्थापना के बाद एक और देवी मंदिर की स्थापना करने का मन बनाया लेकिन इससे पूर्व ही राजा का देहावसान हो गया और स्थापना के लिए मंगबाई गई मूर्ति ऊपर के कमरे में रखी हुई है, जिसकी पूजा अर्चना परिवारी जन करते है। मंदिर परिसर में ही सैयद बाबा की मजार है जिस पर चादर और कौढ़िया बताशे चढ़ाते है। चढ़ावा मुस्लिम खिदमतगार देता है। ऐसा मान्यता है कि महामाया तब तक मंनत मंजूर नहीं करती है जब तक सैयद बाबा को चढ़ावा नहीं मिलता है। मंदिर की देख-रेख लखना राज परिवार के लोग करते आ रहे है। इस मंदिर में दलित पुजारी ही वर्षों से पूजा करते आ रहे है। साथ ही मंदिर में बधाई डालने और ढोलक बजाने का कार्य दलित और कोरी जाति की महिलायें करती आ रही है। इसी प्रकार सैयद बाबा की मजार पर भी दूदे खान और गफफार खान की कई पीड़ियां इवादत करती आ रहीं है। इस मंदिर के प्रति जितनी आस्था जिले और आस-पास के जनपदों के लोगों की है उतनी ही आस्था डकैतों में भी रही है। पूर्व में अनेकों नामी गिरामी डकैतों ने पुलिस से बचते-बचाते झंडा चढ़ाने में कामयाब भी रहे। देवी मॉ की ऐसी कृपा रही कि पुलिस की व्यापक किले बन्दी भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। वेष बदलकर दस्यु मोहर सिंह गुर्जर, मलखान सिंह, छवि राम, घनश्याम उर्फ घन्सा बाबा, निर्भय गूजर और महिला दस्यु सुन्दरी फूलन देवी सभी यहां आकर झंडा और घंटा चढ़ा चुके है।
सोमवार, 27 अगस्त 2012
पिलुआ के हनुमान जी
इटावा के बीहड़ क्षेत्र मैं स्थित ये धार्मिक स्थान इटावा वासिओ के लिए आस्था का अनूठा स्थान है,वीर बजरंग वलि की ये लेटी हुई प्रतिमा बेहद सिध्य और ऐतिहासिक है,महाभारत काल के दौरान पांडवो ने अपना अज्ञातवास इटावा के आस पास के क्षेत्रो मैं ही व्यतीत किया,कहावत है की भीम को अपनी शक्ति का बेहद घमंड हो गया था,इसी स्थान पर पिलुआ के पेड़ के नीचे हनुमान जी एक वृद्ध के रूप मैं बैठ गए,और अपनी पूछ को रास्ते मैं डाल दिया,जब भीम वही से निकले तो उन्होंने पूछ को हटाने को कहा,हनुमान बोले आप स्वं हटा लो मैं वृद्ध हू,काफी ताक़त लगाने के बाद भीम पूछ को टश से मश भी न कर सके,तब भीम ने वृद्ध से क्षमा मागी,हनुमान अपने असली रूप मैं आगये,तभी से यहाँ जमीन पर लेटी प्रतिमा बेहद सिध्य है,और एक बात और मूर्ति को कितना भी पानी पिलाओ वो कम नहीं होता,आज के वैज्ञानिक युग मैं ये मूर्ति लोगो के लिए एक पहेली है,लेकिन हम इटावा वासिओ के लिए तो अटूट आस्था का प्रतीक,,,,,,,,,,,,
रविवार, 26 अगस्त 2012
NEIL ARMSTRONG PASSES AWAY
" NEIL ARMSTRONG PASSES AWAY "
He died on August 25, at a hospital in Columbus, Ohio, following complications resulting from these cardiovascular procedures. Hours later, President Barack Obama released a statement on Armstrong's death describing him as "among the greatest of American heroes – not just of his time, but of all time - Wiki
शनिवार, 25 अगस्त 2012
बुढापे के रोगों का होम्योपैथिक ईलाज
: बुढापे के रोगों का होम्योपैथिक ईलाज
ption |
1. Insomania - Baryta carb 200. 2 doses only, once daily.
2. Weakness - Withenia somnifera 30, once daily , for 2 weeks.
3. Vertigo- Baryta carb 200, 1 or 2 doses only.
5. Flatulance , loss of appetite- Take LYCOPODIUM 200, 2 DOSES.
7. ANAEMIA - Vanadium 6 ,1 dose daily for 15 days.
9. Cough of old - psorinum 30, 4 doses weekly.
10. Costipation - Agale folia 30 daily for 7 days.
11. For joining broken bones after plaster - Calcarea phos 200, 4/6 doses, 3 days after, and symphytum 30 daily for 14 days.
12. Atrophy of brain - Kali phos 30 , 7 doses , alternate days.
13. Dysentery in old - Baptisia 200, 2 doses, alternate days.
14. Diarrhoea with much weakness - Nitric acid 200 1/2 doses.
15. Can not do mental work - Baryta carb 200, 2 doses, weekly.
16. Can not tolerate a new person - Sepia 200, 2 doses, weekly.
17. Behaving Shamelessly - Lycopodium 200, 2 doses, weekly.
18. Unable to enjoy or laugh - Arsenic alb 200, 1 dose.
19. Can not remember name Sulp 200 , 1 dose.
21. Forget things they have purchased or forgetfulness - Anacardium orient 200, 2 doses, weekly.
23. Speak like a child - Argentum nit 200, 2 doses, weekly.
25. Frequent urination in night - Baryta carb 200, 3 doses, weekly.
26. Problems after taking allopathic or herbal medicine - Kali phos 30 , once daily for 1 week.
28. Apathous mouth - Kali mur 30 , 3/4 days, once daily.
29. Can not open eyes and if does cannot recognise anyone -Gelsimium 30 1 dose, return his nerve power.
30. Vertigo, totering walk. - Kali carb , 4 doses, alternate days.
note:
31. Walk like a drunken man - Phos 200, 1 dose.
32. Headache, vertigo with hard stool - Calcarea phos 200, 2 doses, weekly.
33. Mistakes in speaking and spelling or writing - Ammon carb 200, 1 dose.
34. Always sleepy - Antim crude 200, 2 doses.
35. L.D.L. lipid high - beta vul 6 for 15 days .
36. Breathing difficulty with heart diseases , much troublesome 2 a.m. after- Kali carb 200 , 1 dose.
note: your doctor's advice will be important berore you use these remedies.
अडूसा टी.बी.का बेहद असरकारी इलाज
अब थोड़ा काम की बातें करें ---- अडूसा अर्थात वासा दो तरह का होता है, इनमें हम फूलों से भेद करते हैं- एक पीले फूल वाले और एक सफ़ेद फूलों वाले.
सफ़ेद फूलों वाले अडूसा को मालाबार नट भी कहते हैं. ये पांच से लेकर आठ फिट की ऊंचाई वाले अनेक शाखाओं वाले झाडीदार पेड़ होते हैं. जिसके पत्ते दोनों तरफ से नोंकदार होते हैं. ये हमेशा हरे रहने वाले पेड़ हैं. इनके पत्ते, फूल ,जड़, तना सभी औषधीय दृष्टि से बेहद उपयोगी हैं .
इसके पत्ते कफ विकारों में बहुत काम आते हैं. टी.बी.का तो ये बेहद असरकारी इलाज है. हमारे देश में चालीस प्रतिशत रोगी टी.बी.से ग्रसित होते हैं, और इसी रोग के साथ जिन्दगी बिता देते हैं. हालांकि सरकार की तरफ से काफी प्रयास किये जा रहे हैं. लेकिन छः महीने का एलोपैथ का कोर्स सचमुच हमारे देश की जनता के लिए कठिन है. उसमें भी अगर गैप हो जाए तो फिर से शुरू कीजिये. जबकि किसी आयुर्वेदिक औषधि के साथ ऐसा नहीं है. आयुर्वेदिक औषधियों को लेने का एक ही नियम है कि वे खाली पेट सुबह ही ले ली जाएं. १० दिन लेने के बाद दो चार दिन का गैप भी हो जाए तो कोई परेशानी नहीं है. लेकिन आयुर्वेदिक दवा कम से कम २१ या ज्यादा दिनों का रोग हो तो ४१ दिन लेने का नियम शास्त्र सम्मत है.
***अडूसा या वासा के पत्तो को आप सुखा कर रख भी सकते हैं किन्तु फिर उसकी मियाद तीन महीने तक ही होती है. इन पत्तो का चूर्ण मलेरिया में बहुत तेज काम करता है. १० ग्राम सुबह और १० ग्राम शाम को दीजिये.
***अगर खून में पित्त की मात्रा ज्यादा हो गयी है अर्थात पीलापन शरीर में बढ़ गया है या आपको पित्त की अधिकता का एहसास हो रहा है तो पत्तो का एक कप(६० ग्राम) रस निकालिए और उसमें तीन चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार पिलाइए. हर बार एक कप रस ताजा निकालिए,ज्यादा फ़ायदा करेगा. ये प्रक्रिया पांच दिन तक कीजिये.
*** अगर श्वांस से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो वासा के पत्तों के रस में अदरक का रस तथा शहद मिला कर कम से कम ५ दिन तक पिलाइए. जितना पत्तों का रस हो उसका आधा अदरक का रस और अदरक के रस का आधा शहद. दिन में एक बार खाली पेट.
*** शरीर में कही खाज-खुजली की शिकायत हो तो पत्तों के रस में हल्दी मिलाकर लेप कर लीजिये. तीन- चार दिन में कीड़े ही ख़त्म हो जायेंगे.
*** पेट में कीड़े पड़ गये हो तो पत्तो के रस में शहद मिलाकर दिन में एक बार लीजिये
***मूत्रत्याग में कोई परेशानी हो या मूत्राशय से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो गन्ने के रस में २५ ग्राम वासा के पत्तो का रस मिलाकर पी कर देखिये.
*** हैजा हो गया हो तो इसके फूलों का रस शहद मिलाकर दीजिये.
*** जुकाम में २५ ग्राम पत्तो के रस में १३ ग्राम तुलसी के पत्तो का रस और १० ग्राम शहद मिला कर दिन में दो बार पीजिये. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लेंगे तो जादू जैसा असर दिखाई देगा.
***वीर्यपतन में इसके पत्तो के रस में जीरे का चूर्ण मिलाकर १० दिन तक पीयें
वासा के पत्तों में वेसिनिन, आधाटोदिक अम्ल, वसा, राल, शर्करा, गोंद, उड़नशील तेल, पीत्रन्जक तत्व, एल्केलायड, एनाएसोलिन, वेसिसीनोन आदि तत्वों की भरमार होती है.
दूसरा पीले फूलों वाला पौधा या झाडी होती है, इसकी ऊँचाई चार फिट के अन्दर ही देखी गई है. इसका एक नाम कटसरैया भी है. कहीं-कहीं पियावासा भी बोलते हैं. ये झाड़ियाँ कंटीली होती हैं. इसके पत्ते भी ऊपर वाले वासा से मिलते जुलते होते हैं. किन्तु इस पौधे के पत्ते और जड़ ही औषधीय उपयोग में लिए जाते हैं. इसके चित्र सबसे ऊपर दिए गए हैं, आप ठीक से पहचान लीजिये.
इसमें पोटेशियम की अधिकता होती है इसी कारण यह औषधि दाँत के रोगियों के लिए और गर्भवती नारियों के लिए अमृत मानी गयी है.
****गर्भवती नारियों को इसके जड़ के रस में दालचीनी, पिप्पली, लौंग का २-२ ग्राम चूर्ण और एक चौथाई ग्राम केसर मिलाकर खिलाने से अनेक रोगों और कष्टों से मुक्ति मिलती है, तन स्वस्थ और मन प्रसन्न रहता है, पैर सूजना, जी मिचलाना, मन खराब रहना, लीवर खराब हो जाना, खून की कमी, ब्लड प्रेशर, आदि तमामतर कष्ट दूर ही रहते हैं. बस सप्ताह में दो बार पी लिया करें.
****कुष्ठ रोग में इसके पत्तो का चटनी जैसा लेप बनाकर लगा लीजिये.
****मुंह में छले पड़े हों या दाँत में दर्द होता हो या दाँत में से खून आ रहा हो या मसूढ़े में सूजन /दर्द हो तो बस इसके पत्ते चबा लीजिये,उसका रस कुछ देर तक मुंह में रहने दीजिये फिर चाहें तो निगल लें, चाहें तो बाहर उगल दें. कटसरैया की दातुन भी कर सकते हैं.
****मुंहासों में इसके पत्तों के रस को नारियल के तेल में खूब अच्छे तरीके से मिला लिजिये, दोनों की मात्रा बराबर हो, बस रात में चेहरे पर रगड़ कर लगा कर सो जाएं, चार दिनों में ही असर दिखाई देगा. मुंहासे वाली फुंसियां भी इससे नष्ट होती हैं.
**** शरीर में कहीं सूजन हो तो पूरे पौधे को मसल कर रस निकाल लीजिये और उसी रस का प्रयोग सूजन वाले स्थान पर बार-बार कीजिये.
****पत्तो का रस पीने से बुखार नष्ट होता है, पेट का दर्द भी ठीक हो जाता है. रस २५ ग्राम लीजियेगा .
**** घाव पर पत्ते पीस कर लेप कीजिये. पत्तो की राख को देशी घी में मिलाकर जख्मों में भर देने से जख्म जल्दी भर जाते हैं,कीड़े भी नहीं पड़ते और दर्द भी नही होता.
इस पौधे में बीटा-सिटोस्तीराल, एसीबार्लेरिन, एरीडोइड्स बार्लेरिन, स्कूतेलारिन रहामनोसिल ग्लूकोसैड्स जैसे तत्वों की उपस्थिति है. इसका वैज्ञानिक नाम है- बार्लेरिया प्रिओनितिस .
शुक्रवार, 24 अगस्त 2012
शहीद राजगुरु
नौजवान क्रान्तिकारी शहीद राजगुरु की जयन्ती के शुभ अवसर पर ...
आइये भारत की बिकाऊ मीडिया को छोड़ कर हम सब अपने क्रान्तीवीर भारत माँ को क्रूर अंग्रेजों से आज़ाद कराने के लिए अपने मित्र भगत सिंह , सुखदेव के साथ मिलकर अंग्रेजों की भ्रष्ट नीतियों और क्रूर शासन के विरुद्ध लड़ते लड़ते भरी जवानी में अपने देश पर बलिदान हो गए ऐसे अमर जवान शहीद शिवराम हरी राजगुरू जी का आज हम सब जन्मदिवस मनाते हैं ... ...शहीद शिवराम हरी राजगुरू जयन्ती -24 August 1908
(भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु 23 मार्च 1931 ) को इन तीनों भारत माँ के सच्चे सपूतों ने अंग्रेजी कानून व्यवस्था जो भारत में आज भी चल रही है उसके अनुसार दी गयी फाँसी की सजा मिलने के बाद जब उन्हें फांसी पर लटकाया जा रहा था तब इन्कलाब जिन्दाबाद जैसे क्रान्ति और जोश पैदा करने वाले नारों के साथ बस यही कहते हुए कि तेरा वैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहे न रहे ... हँसते -हँसते फाँसी का फन्दा चूम लिया था ...
शत शत नमन ऐसे महान शहीदों भारत माँ के सच्चे सपूतों को जो भारत माँ की आन , बान , शान के लिए अपना सर्वत्र हमारे समृद्ध , ब्रिटिश शासन से मुक्त , उज्जवल भविष्य के लिए कुर्बान कर गए ... भारत माता की जय , देश पर मर मिटने वाले हमारे महान क्रान्तिवीरों, शहीदों की जय हो , वन्दे मातरम् , इन्कलाब जिन्दाबाद
शत शत नमन ऐसे महान शहीदों भारत माँ के सच्चे सपूतों को जो भारत माँ की आन , बान , शान के लिए अपना सर्वत्र हमारे समृद्ध , ब्रिटिश शासन से मुक्त , उज्जवल भविष्य के लिए कुर्बान कर गए ... भारत माता की जय , देश पर मर मिटने वाले हमारे महान क्रान्तिवीरों, शहीदों की जय हो , वन्दे मातरम् , इन्कलाब जिन्दाबाद
गुरुवार, 23 अगस्त 2012
जनपद इटावा का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल- आसई
जनपद इटावा का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व दर्शनीय स्थल- आसई
आसई में पांचाल नरेश ने किया था अश्वमेघ यज्ञ आसई को आशानगरी भी कहा जाती है। आसई का अस्ितत्व बस्तुकत इटावा की प्राचीनता का द्योतक है। यमुना के बीहड़ों को काटकर बनाई गई पक्की सड़क एक सकरे से रास्ते से होकर आसई में समाप्त हो जाती है। गांव के निकट पूर्व मध्यकाल में बने दुर्ग के अवशेष्ा बिखरे हुये हैं। यह किला 1018 ई0 में महमूद गजनवी ने न
आसई में पांचाल नरेश ने किया था अश्वमेघ यज्ञ आसई को आशानगरी भी कहा जाती है। आसई का अस्ितत्व बस्तुकत इटावा की प्राचीनता का द्योतक है। यमुना के बीहड़ों को काटकर बनाई गई पक्की सड़क एक सकरे से रास्ते से होकर आसई में समाप्त हो जाती है। गांव के निकट पूर्व मध्यकाल में बने दुर्ग के अवशेष्ा बिखरे हुये हैं। यह किला 1018 ई0 में महमूद गजनवी ने न
ष्ट किया था। इस टीले को स्थानीय भाषा में खेरा कहते हैं। इस खेरे को देखकर विश्वास नहीं होता कि पांचाल नरेश शोण सात्रवाह ने यहीं पर 6600 बख्तेबंद योद्धाओं के साथ अश्व मेघ यज्ञ किया था। आसई के अवशेषों के परीक्षण से स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन काल से मध्यकाल तक क्रमिक रूप से यह विपरीत अवस्था में बना रहा। आसई की पृष्ठभूमि इसे तपस्थल बनाने में अति महत्व पूर्ण है। यहां बैदिकोत्तर काल के काले ओर भूरे मृदभांड प्राप्त हुये हैं। आसई में महावीर स्वामी ने भी अपने कुछ वर्षाकाल व्यतीत किये। जैन ग्रन्थ विविध तीर्थकल्पस में इसका वर्णन है। वर्षाकाल (चतुर्मास) में एक ही रूथान पर रहकर चिन्तन एवं ध्यान की परम्परा रही हैं। यमुना नदी के सानिध्यी की नीरवता महावीर स्वामी के एकान्त-मनन-चितंन के लिये निश्िचत रूप से उपयुक्त रही होगी। इसीलिये आसई महावीर स्वामी को अत्यधिक प्रिय लगता रहा। जैन समाज के कहावत है-सौ बेर काशी, एक बेर आसई। जैन मूर्तिकला का असुरक्षित संग्रहालय जैसा है आसई आसई में नौवीं,दसवीं एवं बारहवीं शताब्दियों मे जैन तीर्थंकरों की मूर्तियॉं बड़ी मात्रा में स्थापित की गई। इन मूर्तियों पर मथुरा कला का स्पष्ट प्रभाव है। आज आसई अपने आपमें जैन मूर्तिकला का एक असुरक्षित संग्रहालय जैसा है। आसई के लगभग प्रत्येक मकान में टीले से निकली कोई मूर्ति अवश्य हैं। पौराणिक साहित्य में आसई को द्वैतवन के नाम से भी भी पुकारा गया हैं। पूर्व मध्यकाल में इटावा की राजनीति का वास्तविक केन्द्र आसई ही था। अत्वी की पुस्तक किताबुल-यामिनी के अनुसार 1018 ई0 में महमूद गजनवी ने जब आसई पर आक्रमण किया तब यहां का शासक चन्द्र पाल था। विदेशी आकाओं के लिये आसई एक महत्व पूर्ण केन्द्र था। यहॉ पर विजय प्राप्त किये बिना इटावा क्षेत्र पर अधिकार संभव न था। आसई के रक्षकों को यह सुविधा थी कि वे जल्द ही अपने को यहां बीहड़ों में छुपा लेते थे और गुरिल्ला युद्ध शुरू कर देते थे। 1173 ई0 से जब मुहम्मद बिन गोरी के आक्रमण भारत पर प्रारम्भ हुये तो आसई अछूता न रहा। 1193 ई0 में तराइन युद्ध के पश्चाजत कुतुबुद्दीन ऐवक ने आसई पर आक्रमण किया। यहां पर उस समय जय चन्द्र की चौकी थी। फरिश्ता के अनुसार ऐवक ने यहॉ आक्रमण करके किले और खजाने को लूटा।
सौ- इटावा लाइव
सौ- इटावा लाइव
बुधवार, 22 अगस्त 2012
रविवार, 19 अगस्त 2012
तुलसी के पौधे में औषधीय खूबियां
हिन्दू धर्म परंपराओं के मुताबिक हाल में शुरू हुआ अधिकमास भगवान विष्णु की भक्ति व उपासना से खुशहाल जीवन की कामना पूरी करने का काल है। माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी मानी गई हैं। हिन्दू धर्म के मुताबिक घर तुलसी का पौधा भी ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी का साक्षात स्वरूप है। इसलिए यह बड़ा ही पवित्र माना जाता है। यह भी मान्यता है घर के आंगन में तुलसी का पौधा कलह और दरिद्रता दूर करता है। धर्मग्रंथों में तुलसी को विष्णुप्रिया कहा गया है। पुराणों में भी भगवान विष्णु और वृंदा यानी तुलसी के विवाह का वर्णन मिलता है।
वहीं आयुर्वेद के नजरिए से तुलसी के पौधे में औषधीय खूबियां होती है। इससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है व कफ से पैदा होने वाले रोगों से बचाव होता है। इसलिए तुलसी के पत्तों को खाना फायदेमंद बताया गया है, पर इसके साथ ही तुलसी के पत्तों का सही तरीके से सेवन करने की नसीहत भी दी गई है। ऐसा न करने पर तुलसी के पत्ते नुकसान भी पहुंचा सकते हैं
वहीं आयुर्वेद के नजरिए से तुलसी के पौधे में औषधीय खूबियां होती है। इससे शरीर की प्रतिरोधक
क्षमता बढ़ती है व कफ से पैदा होने वाले रोगों से बचाव होता है। इसलिए तुलसी के पत्तों को खाना फायदेमंद बताया गया है, पर इसके साथ ही तुलसी के पत्तों का सही तरीके से सेवन करने की नसीहत भी दी गई है। ऐसा न करने पर तुलसी के पत्ते नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। तुलसी के पत्ते खाने का सही तरीका यही बताया गया है कि जब भी तुलसी के पत्ते मुंह में रखें, उन्हें दांतों से न चबाकर सीधे ही निगल लें। इसके पीछे विज्ञान यह है कि तुलसी के पत्तों में पारे की धातु के अंश होते हैं, जो चबाने पर बाहर निकलकर दांतों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे दांत और मुंह के रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। इस तरह अधिकमास में यह भी ध्यान रहे कि विष्णुप्रिया की आराधना कर धर्म लाभ तो पाएं लेकिन उसका सेवन सावधानी से कर स्वास्थ्य लाभ भी पाएं।
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
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