रविवार, 13 अक्टूबर 2013

वीर क्षत्राणी महारानी पद्मिनी साहस की अद्भुत मिशाल

















#BS विश्व इतिहास की सबसे साहसिक घटनाओं में से एक :-----> साहस की अद्भुत मिशाल , वीर क्षत्राणी महारानी पद्मिनी को कोटि -कोटि प्रणाम। दिल्ली के नरपिशाच बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने जब चित्तोड़ की महारानी पद्यमिनी के रूप की चर्चा सुनी ,तो वह रानी को पाने के लिए आतुर हो बैठा । उसने राणा भीम सिंह को संदेश भेजा की वह रानी पद्यमिनी को उसको सोंप दे वरना वह चित्तोड़ की ईंट से ईंट बजा देगा। अलाउद्दीन की धमकी सुनकर राणा भीम सिंह ने भी उस नरपिशाच को जवाब दिया की वह उस दुष्ट से रणभूमि में बात करेंगे। कामपिपासु अलाउद्दीन ने महारानी को अपने हरम में डालने के लिए सन १३०३ में चित्तोड़ पर आक्रमण कर दिया। भारतीय वीरो ने उसका स्वागत अपने हथियारों से किया। राजपूतों ने इस्लामिक नरपिशाचों की उतम सेना वाहिनी को मूली गाजर की तरह काट डाला। एक महीने चले युद्ध के पश्चात् अलाउद्दीन को दिल्ली वापस भागना पड़ा। चित्तोड़ की तरफ़ से उसके होसले पस्त होगए थे। परन्तु वह महारानी को भूला नही था।कुछसमय बाद वह पहले से भी बड़ी सेना लेकर चित्तोड़ पहुँच गया। चित्तोड़ के 10000 सैनिको के लिए इस बार वह लगभग १००००० की सेना लेकर पहुँचा। परंतु उसकी हिम्मत चित्तोड़ पर सीधे सीधे आक्रमण की नही हुई। उस पिशाच ने आस पास के गाँवो में आग लगवा दी,हिन्दुओं का कत्लेआम शुरू कर दिया। हिंदू ललनाओं के बलात्कार होने लगे। उसके इस आक्रमण का प्रतिकार करने के लिए जैसे ही राजपूत सैनिक दुर्ग से बहार आए ,अलाउदीन ने एक सोची समझी रणनीति के अनुसार कुटिल चाल चली। उसने राणा को संधि के लिए संदेश भेजा। राणा भीम सिंह भी अपनी प्रजा के कत्लेआम से दुखी हो उठे थे। अतः उन्होने अलाउद्दीन को दुर्ग में बुला लिया। अथिति देवो भवः का मान रखते हुए राणा ने अलाउद्दीन का सत्कार किया तथा उस वहशी को दुर्ग के द्वार तक छोड़ने आए। अलाउद्दीन ने राणा से निवेदन किया की वह उसके तम्बू तक चले । राणा भीम सिंह उसके झांसे में आ गए। जैसे हीवो उसकी सेना के दायरे में आए मुस्लमान सैनिकों ने झपटकर राणा व उनके साथिओं को ग्रिफ्तार कर लिया। अब उस दरिन्दे ने दुर्ग में कहला भेजा कि महारानी पद्यमिनी को उसके हरम में भेज दिया जाय ,अन्यथा वह राणा व उसके साथियों को तड़पा तड़पा कर मार डालेगा। चित्तोड़ की आन बान का प्रश्न था।कुछ चुनिन्दा राजपूतों की बैठक हुई। बैठक में एक आत्मघाती योजना बनी। जिसके अनुसार अलाउद्दीन को कहला भेजा की रानी पद्यमिनी अपनी ७०० दासिओं के साथ अलाउद्दीन के पास आ रही हैं। योजना के अनुसार महारानी के वेश मेंएक १४ वर्षीय राजपूत बालक बादल को शस्त्रों से सुसज्जित करके पालकी में बैठा दिया गया। बाकि पाल्किओं में भी चुनिन्दा ७०० राजपूतोंको दासिओं के रूप में हथियारों से सुसज्जित करके बैठाया गया। कहारों के भेष में भी राजपूत सैनिकों को तैयार किया गया। लगभग 2100 राजपूत वीर गोरा,जो की बादल का चाचा था, के नेत्र्तव्य में १००००० इस्लामिक पिशाचों से अपने राणा को आजाद कराने के लिए चल दिए। अलाउद्दीन ने जैसे ही दूर से छदम महारानी को आते देखा ,तो वह खुशी से चहक उठा। रानी का कारंवा उसके तम्बू से कुछ दूर आकर रूक गया। अलाउद्दीन के पास संदेश भेजा गया कि महारानी राणा से मिलकर विदा लेना चाहती हैं। खुशी मेंपागल हो गए अलाउद्दीन ने बिना सोचे समझे राणाभीम सिंह को रानी की पालकी के पास भेज दिया। जैसे ही राणा छदम रानी की पालकी के पास पहुंचे ,लगभग ५०० राजपूतों ने राणा को अपने घेरे में ले लिया,और दुर्ग की तरफ़ बढ गए। अचानक चारो और हर हर महादेव के नारों से आकाश गूंजा, बचे हुए १६०० राजपूत ,१००००० इस्लामिक पिशाचों पर यमदूत बनकर टूट पड़े।धोखेबाज इस्लामिक सैनिक हाय अल्लाह,मर गए अल्लाह और धोखा धोखा करते हुए चरों और भागने लगे। १६०० हिंदू वीरों ने अलाउद्दीन की लगभग ९००० की सेना को देखते ही देखते काट डाला। और सदा के लिए भारत माता की गोद में सो गए। इस आत्मघाती रणनीति में दो वीर पुरूष गोरा व बादल भारत की पोराणिक कथाओं के नायक बन गए। इस युद्ध में नरपिशाच अलाउद्दीन खिलजी भी बुरी तरह घायल हुआ। यह इतिहास की घटना विश्व इतिहास की महानतम साहसिक घटनाओं में से एक है। अच्छी लगी हो तो शेयर करे ताकि और लोग भी हमारी वीर क्षत्राणी की कहानी पढ़ सके .. जय हिन्द

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें