बुधवार, 28 अगस्त 2013

विश्वगुरु बनने की क्षमता



















आज के तथाकथित रूप से विकसित कहे जाने वाले पश्चिमी सभ्यता के लोग ..... खुद के विकसित होने का चाहे कितना भी झूठा ढोल ना पीट लें..... परन्तु, सच के सामने आते ही..... हर झूठ उसी तरह साफ़ हो जाती है... जिस तरह , हिंदुत्व के जागरण पश्चात् .... इस्लाम का सफाया हो जाया करता है....!

आप यह जानकर शायद ख़ुशी से उछल ही पड़ेंगे कि ...... जिस समय अंग्रेजों के पूर्वज नंग-धडंग जंगलों में घूमा करते थे.... उस समय हम हिन्दू ..... क्रमांकन पद्धति का पूर्ण विकास कर चुके थे....!

यहाँ तक कि.... लाख प्रयासों के बाद भी..... आज तक अंग्रेज हमारी उस क्रमांकन और गणना पद्धति का पूर्ण नक़ल तक नहीं कर पाए हैं.....!

उदाहरण के लिए .. अगर पूछा जाए कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्या है तो.... उसे अंग्रेजों की भाषा में कहना होगा कि...... 150 मिलियन किलोमीटर ..!

परन्तु यदि .... यही बात किसी हिंदुस्थानी से पूछी जाए तो.... उसका जबाब होगा.... 1 .5 अरब किलोमीटर .

ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि.... अंग्रेजी की क्रमांकन और गणना पद्धति का उतना विकास आज तक नहीं हो पाया है.... जितना विकास हम हिन्दुओं ने हजारों साल पहले ही कर लिए थे....!

इसे ठीक से इस तरह समझ सकते हैं ......

जहाँ अमरीकी प्रणाली में .....100,000 .......100 हजार होते हैं.......... वही भारतीय गिनती में ............1,00,000 ........... एक लाख है

उसी तरह....... 10 ,000 ,000 ........ जहाँ अंग्रेजों के लिए.... 10 मिलियन ( दस दस लाख ) होते हैं ........... वही भारतीय गिनती में ये ..... एक करोड़ कहे जाते हैं....

और, हम भारतीयों के लिए.... ये कोई कठिन गिनती नहीं है...... क्योंकि, गिनती और क्रमांकन पद्धति का उल्लेख ..... हमारे यहाँ रामायण काल में भी हुआ है.....

जहाँ वानर राज सुग्रीव .... भगवान् राम को अपनी सेना के बारे में बताते हैं कि..... ""असंख्य बानर आ रहे हैं "".. अर्थात सेना में इतने बानर आ रहे हैं..... जिनकी गिनती नहीं की जा सकती ..!

दरअसल.... 1 , 10 , 100 , 1000 , 10000 इत्यादि के बढ़ते क्रम को ही दशमलव प्रणाली कहा जाता है.... क्योंकि, इसमें हर अलग अंक में..... पिछले अंक से 10 गुणा की बढ़ोत्तरी होती चली जाती है...!

इस दशमलव प्रणाली को बाल्मीकि रामायण में कुछ इस तरह समझाया गया है....

इक पानी का छींटा सहस्त्र आयुत लक्ष प्रयुत कोट्यः क्रमशः |
अर्बुदम अब्दम खर्व निखार्वं महापद्मं शंख्वः तस्मात् | |
निधिः चा अन्तम मध्यम परर्द्हम आईटीआई पानी का छींटा गुना उत्तरं संज्ञाह |
संख्याय स्थानानाम व्यवहार अर्थम् कृताः पूर्विः इति | |
[वाल्मीकि रामायण 3/39/44 ]

अर्थात....

एक = 1
1 दस = 10;
10 दस = 1 सौ;
10 सौ = 1 हजार (Ayut)
10 हजार
हजार 100 = 1 लाख
1 प्रयुतम = 10 लाख, = 1 मिलियन;
100 लाख = 1 कोटि = 1 करोड़;
100 करोड़ = 1 अर्बुद (अरब) = 1 अरब
100 अर्बुद = 1 वृन्दा
100 वृन्दा = 1 खर्व (खरब )
100 खर्व = 1 निखर्व (नील)
100 निखर्व = 1 महा पद्म (पद्म )
100 महा पद्म = 1 शंकु (शंख) = 1 लाख करोड़
100 शंकु = 1 समुद्र
100 समुद्र = 1 अन्त्य
100 अन्त्य = 1 मध्यम
100 मध्यम = 1 परार्ध
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इस तरह.... जिस गिनती को पश्चिमी देशों में हाल के वर्षों के सीखा है.... वो जानकारी हमारे हजारों -लाखों लाख पहले से ही मौजूद है....!

फिर भी.... हमारा दुर्भाग्य है कि...... हम खुद को और अपने धर्म ग्रंथों को पहचानने के बजाए.... अंग्रेजों की अंधभक्ति और अंधे अनुकरण में लगे हुए हैं.....!

जागो हिन्दुओं और पहचानो अपने आपको .....

हम विश्वगुरु थे..... और, फिर से दुनिया का विश्वगुरु बनने की क्षमता रखते हैं ....!!

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