उठो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब केशव ना आयंगे !!
छोडो मेहँदी खड्ग संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो !
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि, हर तरफ तुम्हे मिल जायेंगे !!
उठो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब केशव ना आयंगे !
कब तक आस लगाओगी, तुम बिक़े हुए सरकारों से,
बहुत हो गया, निकल चलो अब, इन दुशासन दरबारों से !!
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं, वे क्या लाज बचायेंगे !
उठो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब केशव ना आयंगे !!
कल तक केवल अँधा था, अब राजा गूंगा बहरा भी है !
होठ सील दिए जनता के, कानों पर पहरा भी है !!
छोडो मेहँदी खड्ग संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो !
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि, हर तरफ तुम्हे मिल जायेंगे !!
उठो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब केशव ना आयंगे !
कब तक आस लगाओगी, तुम बिक़े हुए सरकारों से,
बहुत हो गया, निकल चलो अब, इन दुशासन दरबारों से !!
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं, वे क्या लाज बचायेंगे !
उठो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब केशव ना आयंगे !!
कल तक केवल अँधा था, अब राजा गूंगा बहरा भी है !
होठ सील दिए जनता के, कानों पर पहरा भी है !!