अपना पैसा डॉटकॉम के सीईओ हर्ष रूंगटा का कहना है कि लोन और क्रेडिट कार्ड से जुड़ी समस्याओं को लिखित में सुलझाना ज्यादा बेहतर विकल्प होता है। बदलते समय में अक्सर ग्राहक इन समस्याओं को फोन पर सुलझाने की कोशिश करते हैं। शिकायतों की लिखित शिकायत के जरिए पक्की लिखा-पढ़त करें और एक्नॉलिजमेंट जरुर लें। इन सब बातों में कुछ ज्यादा समय अवश्य लगता है लेकिन आप भविष्य में भारी परेशानी से बच सकते हैं।
अगर बैंक से लोन लिया है और दो ईएमआई के बीच अगर किस्त के भुगतान में कुछ देरी होती है तो इसे ब्रोकन पीरियड कहा जाता है। ब्रोकन पीरियड के दौरान बैंक कुछ पेनेल्टी लगाते हैं। इस रकम का भुगतान करना जरुरी होता है लेकिन ग्राहक इस चार्ज की पूरी जानकारी ले सकता है। अगर बैंक ये जानकारी देने से मना करता है तो इसके खिलाफ बैंकिंग एम्बुड्समैन में शिकायत की जा सकती है।
इसके अलावा अगर बैंक से लोन को समय से पहले बंद करते हैं तो बैंक कुछ अतिरिक्त शुल्क भी वसूलते हैं। इस रकम के बारे में भी सारी जानकारी देना जरूरी होता है। बैंक आपसे अनावश्यक चार्ज नहीं वसूल सकते हैं।
अक्सर कई ग्राहकों को बीमा पॉलिसी लेने और वापस करने के दौरान समस्या से जूझना पड़ता है अगर प्रीमियम का भुगतान क्रेडिट कार्ड के जरिए किया जा रहा है। हर्ष रूंगटा के मुताबिक अगर पॉलिसी बंद कराने या वापस करने के बाद भी क्रेडिट कार्ड कंपनी चार्ज वसूल रही हैं तो इसके खिलाफ लिखित में शिकायत दर्ज करें। जिस बैंक का क्रेडिट कार्ड है उसे दो हफ्ते के भीतर इस मामले की सारी जानकारी ग्राहकों को मुहैया कराना जरुरी है।
हर्ष रूंगटा के मुताबिक एक ही नाम पर एक बैंक से एक से ज्यादा क्रेडिट कार्ड इश्यू हो सकते है। अगर अनसिक्योर्ड कार्ड चाहते हैं तो आपके पहले के सभी भुगतान पूरे होने चाहिए। आपका क्रेडिट रिकॉर्ड अच्छा होना चाहिए। बैंक के ऊपर क्रेडिट कार्ड इश्यू से संबंधित कोई सीमा नहीं है। हालांकि ग्राहक को उसी सूरत में क्रेडिट कार्ड की संख्या बढ़ानी चाहिए अगर वाकई जरुरत हो।
केतुल शाह
एक चित्र है। यह 7 अगस्त का दिन है, लेकिन कुछ लापरवाह पार्टीबाजी के कारण आपके पास केवल 2,000 रुपए ही बैंक खाते में बचे हैं। अब भी यह महीना आधा बाकी है।
आपकी कार की किस्त (ईएमआ) 10 तारीख को 8,000 रुपए जानी है। आप इसे लेकर परेशान हैं। चैक बाउंस होने का मतलब है कि पेनाल्टी और ब्याज भरना होगा। आप पिताजी को फोन करते हैं, जो दूसरे शहर में रहते हैं। उनसे अपने खाते में चैक लगाने का आग्रह करते हैं। वह चैक लगाते हैं लेकिन क्या यह ईएमआई के पहले खाते में आ जाएगा।
कोई चैक कितना समय लेता है?
चैक की प्रोसेसिंग में लगने वाला समय कुछ बातों पर निर्भर करता है-
• लोकल क्लीयरिंग
• आउटस्टेशन क्लीयरिंग
• उसी शाखा में ट्रांसफर
• हाई वैल्यू क्लीयरिंग
आइए इन बातों को विस्तार से देखें
लोकल क्लीयरिंग
यह तब होती है जब आप उसी शहर की बैंक शाखा में कोई चैक जमा करते हैं। यानी समान शहर में बैंक खाता है तो लोकल क्लीयरिंग होती है।
लोकल चैक की प्रक्रिया इस प्रकार है:
पहला दिन : आप स्थानीय चैक अपने बैंक खाते में लगाते हैं।
दूसरा दिन : आपका बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के क्लीयरिंग हाउस में भेजता है। एक क्लीयरिंग हाउस बैंकों का एक एसोसिएशन है, जिसमें किसी शहर के विभिन्न बैंकों के चैक क्लीयर होते हैं।
क्लीयरिंग हाउस में बैंक चैक बटोरते हैं, जो उनकी किसी भी शाखा से ड्रा किए जाते हैं।
इन बैंकों का मुख्यालय चैक संबंधित शाखाओं को क्लीयरिंग के लिए भेजते हैं। इसे इनवर्ड क्लीयरिंग चैक भी कहा जाता है।
तीसरा दिन :आपके खाते में रकम आती है। अगर ग्राहक के खाते से बैंक रकम आपके खाते में ट्रांसफर करने में (किसी भी कारण से) सफल नहीं हो पाती है तो चैक फिर उसी बैंक के पास आ जाता है, जिसने चैक पेश किया था। (यह वह बैंक है जिसमें आपका खाता है।)
अपने खाते में जमा होने वाला चैक 2-3 दिन में क्रेडिट हो जाता है।
आउटस्टेशन क्लीयरिंग
नाम से ही स्पष्ट है कि आप एक ऐसा चैक जमा करते हैं, जो दूसरे शहर की बैंक शाखा का है। इसमें पहले जैसी ही प्रक्रिया होती है, केवल एक अंतर है। आपके खाते में रकम आने में ज्यादा समय लग जाता है। उसका कारण यह है कि फिजिकल चैक एक शहर से दूसरे शहर जाने में कुछ समय लग जाता है।
सामान्यतः आउटस्टेशन क्लीयरिंग में 7-10 दिन का समय लग जाता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि बैंक ब्रांच कहां है।
उसी शाखा में ट्रांसफर
जिस शाखा में आपका खाता है जब उसी में ड्रा होने वाला चैक लगाया जाता है तो इसमें सबसे कम समय लगता है। उसी दिन आपको अपने खाते में पैसा मिल जाता है।
हाई वैल्यू क्लीयरिंग
एक लाख रुपए या उससे ज्यादा राशि के चैक को हाईवैल्यू कहा जाता है। हाई वैल्यू क्लीयरिंग (एचवीसी) में आपका लोकल चैक उसी दिन क्लीयर हो जाता है। आपके खाते में अगली सुबह ही धन आ जाता है।
इसके लिए आपको सुबह कट आफ टाइम के पहले पैसा जमा करना चाहिए। ध्यान रहे कि चैक की प्रोसेसिंग एचवीसी के तहत हो।
स्मार्ट टिप 1: अपने बैंक की चैक कलेक्शन की नीति देख लें। रिजर्व बैंक के अनुसार सभी बैंकों को इस नीति का पालन करना पड़ता है। यह ग्राहकों को देखना चाहिए कि उनके खाते में रकम आने के लिए निर्धारित समय क्या है।
स्मार्ट टिप 2: आपके बैंक द्वारा लागू आउटस्टेशन क्लीयरिंग और एचवीसी शुल्क देख लें। आउटस्टेशन चैक के मामले में बैंक 15 से 500 रुपए तक वसूलते हैं। यह चैक की रकम और स्थान के हिसाब से लगाया जाता है। रिजर्व बैंक ने इन शुल्कों में कटौती का एक प्रस्ताव तो दिया है। इससे ग्राहकों को फायदा होगा। जहां तक एचवीसी का सवाल है शुल्क 20 से 50 रुपए के बीच लगते हैं। आजकल पढ़ाई के लिए छात्रों के साथ-साथ माता-पिता को भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। अपने बच्चों के उच्च शिक्षा के सपने को पूरा करने के लिए अभिभावकों को अच्छी खासी रकम की जरुरत होती है। इस काम को आसान करने के लिए बैंकों की तरफ से विद्यार्थियों के लिए एजुकेशन लोन प्रदान किए जाते हैं।
जानिए कि अपने बच्चों के शिक्षा के सपने को पूरा करने के लिए एजूकेशन लोन किस तरह मददगार साबित हो सकता है।
एजूकेशन लोन लेने के लिए सबसे पहले आपको भारतीय नागरिक होना चाहिए। 16-22 साल की आयु वर्ग के छात्र इस लोन को ले सकते हैं। हालांकि आयु के मामले पर अलग-अलग बैंकों का अलग हिसाब होता है। एजूकेशन लोन लेने के लिए विद्यार्थी का शैक्षणिक रिकॉर्ड अच्छा होना चाहिए।
आपके माता-पिता या अभिभावक के पास आय का नियमित स्त्रोत होना चाहिए ताकि जरुरत पड़ने पर वो लोन का भुगतान कर सकें। जिस संस्थान में पढ़ने के लिए आप एजूकेशन लोन मांग रहे हैं वह मान्यता प्राप्त होना चाहिए।
ज्यादातर नाबालिगों को एजूकेशन लोन नहीं मिलता है क्योंकि बैंक ये देखता है कि लोन चुकाने की क्षमता है या नहीं। लेकिन अगर आपके माता-पिता लोन चुकाने में सक्षम हैं तो आपको एजूकेशन लोन मिल सकता है।
एजूकेशन लोन को हासिल करने के लिए आपको एक गारंटर की जरुरूत होगी। अगर आप कर्ज चुकाने में सफल नहीं हो पाते हैं तो गारंटर को स्टूडेंट लोन चुकता करना होगा। ज्यादातर बैंक ऐसे लोगों को गारंटर मानते हैं जिनकी नेटवर्थ या सालाना आय एजूकेशन लोन की कुल पूंजी से ज्यादा हो।
4 लाख रुपये से ज्यादा के एजूकेशन लोन के लिए कोलैट्रल की जरुरत होती है, मसलन जितना लोन होता है उसके अनुपात में थर्ड पार्टी गारंटी की जरुरत हो सकती है। सह-लेनदार (माता-पिता या अभिभवक) को अपने बैंक खातों के स्टेटमेंट, पिछले 2 साल के टैक्स रिटर्न स्टेटमेंट एसेट और देनदारी के स्टेटमेंट और आय प्रमाण पत्र दिखाने पड़ सकते हैं। सामान्य तौर पर बैंक नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट, बॉन्ड, सोना-चांदी, वाहन, घर या प्रॉपर्टी को सिक्योरिटी के रुप में स्वीकार करते हैं।
4 लाख रुपये से लेकर 7.5 लाख रुपये तक के लोन के लिए थर्ड पार्टी गारंटी के रुप में कोलेट्रल की जरुरत हो सकती है। कुछ मामलों में बैंक थर्ड पार्टी गारंटर की बाध्यता समाप्त कर सकता है अगर सह लेनदार (माता-पिता) द्वारा मुहैया कराए गए दस्तावेज से बैंक संतुष्ट होता है।
7.5 लाख रुपये से ज्यादा की रकम के लिए कोलेट्रल के सिक्योरिटी के साथ थर्ड पार्टी गारंटी की जरुरत हो सकती है। इसके साथ ही एक दस्तावेज भी देना होता है जिसमें छात्र के भविष्य की आमदनी जिसके जरिए लोन की किस्तें चुकाई जाएंगी का ब्यौरा होता है।
आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग (कुल पारिवारिक आय सालाना 4.50 लाख रुपये से कम) के लिए मानव संसाधन विभाग की केंद्रीय योजनाओं के तहत कुछ प्रावधान हैं। इसके तहत भारत में तकनीकी और व्यावसायिक कोर्स के लिए एजूकेशन लोन के ब्याज पर सब्सिडी दी जाती है। ये पूंजी एक निश्चित समय के लिए दी जाती है। उदाहरण के लिए कोर्स खत्म होने के एक साल बाद तक या नौकरी मिलने के 6 महीने के भीतर जो भी पहले हो।
जब 1 लाख रुपये से ज्यादा का एजूकेशन लोन हो तो बैंक ज्यादातर उन विद्यार्थियों को लोन देना पसंद करते हैं जिनके पास लोन के बराबर या ज्यादा पूंजी का लाइफ इंश्योरेंस हो। ये एक सुरक्षा फीचर से ज्यादा कुछ नहीं है और इसे सहायक के रुप में भी जाना जा सकता है। अगर लेनदार को कुछ हो जाता है तो बैंक की पूंजी डूबेगी नहीं और इंश्योरेंस पॉलिसी के जरिए बैंक बचे हुए लोन को वसूल सकता है।
कुछ बैंको ने विशेष संस्थानों के खास कोर्स करने के लिए छात्रों को एजूकेशन लोन देने का करार किया है।
क्या एजूकेशन लोन के जरिए सभी खर्चों को कवर किया जाता है
• कॉलेज, स्कूल, हॉस्टल और टूयूशन फीस का खर्च
• परीक्षा शुल्क, लाइब्रेरी और लैबोरेटरी शुल्क
• किताबों, शैक्षणिक उपकरणों और यूनिफार्म का खर्च
• कॉशन मनी, बिल्डिंग फंड, रिफंडेबल डिपॉजिट इन सभी के साथ संस्थान के बिल और रसीदें की जरुरत होगी
• छात्र की विदेश यात्रा के लिए ट्रैवल अलाउंस
• अगर कोर्स पूरा करने के लिए कंप्यूटर खरीदना अनिवार्य हो
• पढ़ाई पूरी करने के लिए अन्य जरुरी खर्चें जैसे एजूकेशन टूर, थीसिस, प्रोजेक्ट वर्क आदि का खर्च
• कुछ बैंक छात्र का 50,000 रुपये तक का टू-व्हीलर खर्च भी उठाते हैं
निजी वित्तीय जानकार हर्ष रूंगटा के मुताबिक भारत में शिक्षा सेक्टर के बेहतर भविष्य के लिए एजूकेशन गारंटी फंड बनाना सही कदम होगा। एजूकेशन गारंटी फंड के जरिए शिक्षा सेक्टर को काफी मदद मिल सकती है। इसके अलावा वित्त मंत्रालय को एक एजूकेशन री-फाइनेंस कॉर्पोरेशन बनाने की योजना पर भी ध्यान देना चाहिए। ये मामला 4 साल से लटका हुआ ह