कालका मन्दिर , लखना इटावा
अटूट आस्था का केन्द्र है लखना कालिका मंदि ( BY-मनोज तिवारी) जनपद इटावा के कस्बा लखना में स्थित काली देवी का मंदिर अपना एक विशेष महत्व है। इस मंदिर की स्थापना वर्ष 1857 में की गई थी। मालूम हो कि 1857 का स्वाधीनता आन्दोलन में अपना अलग ही महत्व है। इस मंदिर की लम्बाई करीब 400 फुट और चौड़ाई करीब 200 फुट है। इस देवी मंदिर की खास विशेषता ये है कि ठीक बगल में सैयद बाबा का कच्चा थान है। जो मुसलमानों के लिए श्रद्धा का केन्द्र तो है ही, साथ ही हिन्दुओं के लिए देवी मॉ के साथ ही बाबा के प्रति भी समान आस्था का केन्द्र है। हजारों लोग एक साथ दोनों की पूजा अर्चना करते है। लखना के इस कालका देवी मंदिर में वर्ष में दो मेले लगते है। एक चैत्र सुधि पूर्णमा को और दूसरा क्वार की नवरात्र में लगता है। दूर-दूर स्थानों से आने वाले लोग अपनी मनोतियां मानते है और पूरी होने पर झण्डा और घंटा चढ़ाते है। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण राजाराव जसवन्त सिंह ने कराया था। ऐसा सुना जाता है कि राजा नियमित यमुना नदी पार कर घार में स्थित देवी मंदिर के दर्शन करने जाते थे। एक दिन यमुना नदी में बहाव अधिक होने के कारण मल्लाओं ने भी नाव पार होना असुरक्षित बताया तो राजा बड़े मायूस हो गये और एक पेड़ की छांव में बैठकर दुखी होकर सोच-विचार करने लगे। अचानक देवीय रूप से आग जली और राजा जसवंत सिंह ने उसी स्थान पर देवी मंदिर का निर्माण शुरू करा दिया। सैयद बाबा के बगल में देवी की स्थापना के बाद एक और देवी मंदिर की स्थापना करने का मन बनाया लेकिन इससे पूर्व ही राजा का देहावसान हो गया और स्थापना के लिए मंगबाई गई मूर्ति ऊपर के कमरे में रखी हुई है, जिसकी पूजा अर्चना परिवारी जन करते है। मंदिर परिसर में ही सैयद बाबा की मजार है जिस पर चादर और कौढ़िया बताशे चढ़ाते है। चढ़ावा मुस्लिम खिदमतगार देता है। ऐसा मान्यता है कि महामाया तब तक मंनत मंजूर नहीं करती है जब तक सैयद बाबा को चढ़ावा नहीं मिलता है। मंदिर की देख-रेख लखना राज परिवार के लोग करते आ रहे है। इस मंदिर में दलित पुजारी ही वर्षों से पूजा करते आ रहे है। साथ ही मंदिर में बधाई डालने और ढोलक बजाने का कार्य दलित और कोरी जाति की महिलायें करती आ रही है। इसी प्रकार सैयद बाबा की मजार पर भी दूदे खान और गफफार खान की कई पीड़ियां इवादत करती आ रहीं है। इस मंदिर के प्रति जितनी आस्था जिले और आस-पास के जनपदों के लोगों की है उतनी ही आस्था डकैतों में भी रही है। पूर्व में अनेकों नामी गिरामी डकैतों ने पुलिस से बचते-बचाते झंडा चढ़ाने में कामयाब भी रहे। देवी मॉ की ऐसी कृपा रही कि पुलिस की व्यापक किले बन्दी भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकी। वेष बदलकर दस्यु मोहर सिंह गुर्जर, मलखान सिंह, छवि राम, घनश्याम उर्फ घन्सा बाबा, निर्भय गूजर और महिला दस्यु सुन्दरी फूलन देवी सभी यहां आकर झंडा और घंटा चढ़ा चुके है।
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