शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

हजारी महादेव


हजारी महादेवके प्रति‍ शि‍वभक्तों की है गहरी आस्था
 इटावा जनपद में अनेकों शि‍वालय हैं, लेकि‍न जि‍तनी श्रद्धा शि‍व भक्तों की अन्य प्रसि‍द्ध मंदि‍रों के प्रति‍ है, उससे कहीं ज्यादा शायद, ग्राम सरसईनावर में स्थित�हजारी महादेव� मंदि‍र के प्रति‍ भी है। एक हजार से ज्यादा शि‍वलिंग होने के चलते ही मंदि‍र का नामकरण �हजारी महादेव� पड़ा। यही नहीं अनेकों चमत्कारिक घटनाओं के चलते ही, यह शि‍वभक्तों में गहरी आस्था का केंद्र बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि‍ हजारी महादेव के इस शिवालय में सच्चे मन से आने वाले कि‍सी भी शि‍व भक्त को निराशा नहीं मिलती। भगवान के सबसे प्रि‍य माने जाने वाला श्रावणी माह और फरवरी/मार्च में मनाई जाने वाले महाशिवरात्रि पर्व पर बड़ी संख्या में शिव भक्त हजारी महादेव मंदि‍र पर कांवर चढ़ाने आते हैं। इस शि‍वालय के प्रति‍ ऐसी मान्यता है कि‍ एक शिव भक्त कांवर लेकर आ रहा था कि‍ उसका पेट खराब हो गया और मल त्याग हो गया,फलस्वरुप वह साथ चल रहे अन्य कांवरियों से बि‍छुड़ गया,लेकिन फि‍र भी वह कांवर लिये चलता ही रहा। इधर जब व
ह इस शि‍वालय 'हजारी महादेव' मंदिर पर पहुंचा तो काफी दूर तक लाइन लगी हुई थी, तभी अचानक एक आवाज सुनाई दी कि सबसे पहले �हग्गा� कांवर चढ़ायेगा। ऐसे में एक दूसरे कांवरि‍यों ने पीछे मुड़कर पूछा तब वही कांवरि‍यां सामने आया जि‍से उसके साथी �हग्गा� समझ कर छोड़ आये थे, आगे बढ़कर सबसे पहले उसी अवस्था में भगवान भोलेनाथ को सच्चे मन से खुशी-खुशी कांवर चढ़ाईं। हजारी मंदिर का निर्माण कब हुआ, कोई नहीं जानता, लेकिन इसके पीछे एक किवदंती प्रचलित है कि‍ ग्राम में एक सिद्ध पुरुष आये और शिवलिंग देखकर यहीं रुक गये। अर्थात इन्ही सि‍द्ध पुरुष गोपालदास को लोग मंदिर के निर्माण का श्रेय देते आयें हैं और अब उनकी पीढ़ि‍यां भी कुछ ऐसा ही बताते आ रहे हैं। कहा जाता है कि‍ मंदि‍र के निर्माण कार्य के दौरान यह सि‍द्ध पुरुष शिवलिंग के पास मौजूद कुंड में जाते थे और दीवारों को थपथपाते थे, ऐसा करने से जो पैसे जमीन पर गिरते थे, उसे वह कार्य करने वाले श्रमि‍कों को उनकी मजदूरी के बदले देते थे। क्षेत्रीय लोगों के अनुसार वह कुंड आज भी मंदिर परि‍सर में मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि उसी दौरान ही मंदिर में एक साथ एक हजार �शिवलिंग� की स्थापना करायी गई और तभी से मंदि‍र को �हजारी महादेव� कहा जाने लगा। यही नहीं जब सि‍द्ध पुरुष गोपालदास ने समाधि ली, तब उनकी मंदिर के प्रवेश द्वार पर समाधि बनवायी गई, इधर एक ओर चमत्कार तब होता है,जब कुछ समय बाद उसी स्थान पर एक पीपल का पेड़ नि‍कला, जो कई सदि‍यां बीत जाने के बाद आज भी हरा भरा खड़ा है,और कांवर लेकर कांवरिया जब श्रंगीरामपुर से आते हैं, तो सबसे पहले �गंगाजल� इसी पीपल के पेड़ पर चढ़ाते हैं। क्षेत्रीय लोगों में रामकुमार वाजपेयी ने बताया कि हजारी महादेव मंदि‍र के दर्शन करने बड़ी संख्या में शि‍वभक्त आते हैं। साथ ही कहा कि‍ भले ही शिवलिंगों की संख्या कम हो गयी हो, लेकि‍न मुख्य शिवलिंग में हजारों शिवलिंग की आकृतियां आज भी उभरी हुई हैं दि‍खाई पड़ती हैं, जि‍सके प्रति‍ शि‍वभक्तों की आस्था उन्हें इस मंदि‍र तक खींच ही ले ही आती है। (अगस्‍त 2012) फोटो- हजारी महादेव मंदि‍र का बाहरी दृश्‍य/ पीपल का वृक्ष और इंसेट में स्‍थापि‍त मुख्‍य शि‍वलिंग।
Repoter :- गुलशन कुमार Date :- 08 अगस्‍त 2012

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